January 29, 2025

प्रवासी श्रमिकों के सुरक्षित भविष्य की राह एक सुविचारित नीति से ही निकलेगी

कोविड महामारी के दौरान ही पता चल गया था कि प्रवासी श्रमिकों के मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए नीतियां, प्रक्रियाएं और प्रणालियां तत्काल तय किए जाने की ज़रूरत है।
10 मिनट लंबा लेख

साल 2020 में कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान, भारत में लगभग 26 लाख प्रवासी मजदूर अलग-अलग जगहों पर फंसे हुए थे। इस समय नियोक्ता और मकान मालिकों ने उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया था। सामाजिक सुरक्षा, चिकित्सा सुविधाएं और आपातकालीन सहायता की कमी के कारण करीब 10 लाख मजदूर किसी तरह अपने घर लौटे जिनमें से कई को राजमार्गों पर पैदल चलकर पहुंचना पड़ा। हमें प्रवासी श्रमिकों के मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए नीतियां, प्रक्रियाएं और प्रणालियां लागू करने के लिए, ऐसी ही किसी और आपदा के आने का इंतजार नहीं करना चाहिए। बड़ी प्रवासी आबादी वाले राज्यों को, अपने राज्य और अन्य राज्यों में रह रहे श्रमिकों की मदद के लिए एक व्यवस्थित ढांचा तैयार करना चाहिए।

भारत में साल 2011 में 45.6 करोड़ आंतरिक प्रवासी थे जो देश की कुल आबादी का लगभग 38 प्रतिशत है। इनमें से अधिकांश प्रवासी अपने गांवों से अन्य ग्रामीण क्षेत्रों या शहरों की ओर इसलिए जाते हैं क्योंकि उनके यहां संसाधनों, सेवाओं और अवसरों का वितरण एक समान नहीं है। इसके अलावा, वे हिंसा या गंभीर प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए भी पलायन करते हैं। भारत में आंतरिक प्रवासी अक्सर अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करते हैं और शोषण, उत्पीड़न और भेदभाव के शिकार होते हैं। उनके पास न तो बुनियादी आवास की सुविधा होती है, न ही सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य लाभ या आपातकालीन मुआवजा। उन्हें कम वेतन मिलता है और वे कामकाज की खतरनाक और असुरक्षित परिस्थितियों में काम करने को मजबूर होते हैं। संकट के समय, प्रवासी श्रमिकों को अपने घर लौटने के लिए जोखिम भरी यात्राओं का सामना करना पड़ता है।

आंतरिक प्रवास की दर में बदलाव तो हो सकता है लेकिन यह साफ है कि प्रवास खत्म होने वाला नहीं है। दरअसल, जलवायु संकट और खाने-पानी की कमी के कारण संकट के चलते होने वाला प्रवास और बढ़ सकता है। इसलिए यह जरूरी है कि हम उन श्रमिकों के लिए एक सुरक्षा व्यवस्था बनाएं जो अपनी जीविका के लिए पलायन करते हैं।

सुरक्षित, व्यवस्थित और नियमित प्रवास के लिए एक वैश्विक समझौता बनाने के लिए, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सितंबर 2016 में न्यूयॉर्क घोषणा को मंजूरी दी गई थी। भारत में भी अब समय आ गया है कि हम ऐसी पहलें शुरू करें, जो आंतरिक प्रवासियों की समस्याओं को कम करें और उन्हें श्रम कानूनों और सरकारी योजनाओं के तहत मदद पाने का आसान रास्ता दें।

फेसबुक बैनर_आईडीआर हिन्दी

साल 2020 में, पीएचआईए फाउंडेशन ने झारखंड में घर लौट रहे प्रवासियों के लिए एक नियंत्रण कक्ष शुरू किया था। इस पहल में कई नागरिक समाज संगठनों (सीएसओ) ने मदद की। बाद में, राज्य सरकार ने इस कॉल सेंटर के लिए अपनी टीम बनाई और राज्य प्रवासी नियंत्रण कक्ष (एसएमसीआर) की स्थापना की। एसएमसीआर से मिली जानकारी के आधार पर, झारखंड सरकार ने दिसंबर 2021 में सुरक्षित और जिम्मेदार प्रवासन पहल (एसआरएमआई) शुरू की। पीएचआईए फाउंडेशन ने इसे गुमला, दुमका और पश्चिम सिंहभूम जैसे जिलों में लागू किया।

एसआरएमआई ने कुछ महत्वपूर्ण बातें और बढ़िया तरीके बताए हैं जो देश में प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा और उनके लिए एक मददगार प्रणाली बनाने में मदद कर सकते हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

एक ही जगह सभी सुविधाएं

महामारी के समय, झारखंड के फंसे प्रवासियों के लिए शुरू की गई हेल्पलाइन पर मदद मांगने के लिए पहले ही दिन 6,000 कॉल आए। आज भी, इस पर रोजाना 330-400 कॉल आते हैं। एसएमसीआर प्रवासी श्रमिकों को उनकी कई समस्याओं का हल एक ही जगह देता है। यह श्रमिकों को हादसों और प्राकृतिक मौतों पर मुआवजा दिलाने, वेतन से जुड़े विवाद सुलझाने, और बंधुआ मजदूरी, बाल मजदूरी, मानव तस्करी जैसी मुश्किलों में राहत दिलाने में मदद करता है। कई बार प्रवासी श्रमिकों को ठेकेदारों से अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिक अधिनियम, 1979 के तहत अपने हक और सही वेतन की लड़ाई लड़ने के लिए कानूनी मदद चाहिए होती है। अगर कोई श्रमिक किसी आपदा में फंस जाए तो यह हेल्पलाइन उन्हें तुरंत मदद पहुंचाने का काम करती है।

एक केंद्रीकृत प्रणाली से प्रवासी श्रमिकों सरकारी योजनाओं, पहचान और पंजीकरण, ट्रेनिंग, कौशल विकास और नौकरी के मौके आसानी से पा सकते हैं। उदाहरण के लिए, सीएमसीआर श्रमिकों को भवन और अन्य निर्माण श्रमिक (बीओसीडब्लू) योजना में पंजीकरण कराने में मदद करता है।

घर से काम तक का डेटा

घरेलू प्रवासियों से जुड़े सटीक डेटा की कमी है। साल 2020 में, एसएमसीआर में हम ने एक सॉफ्टवेयर का उपयोग किया था जिससे सभी कॉल करने वालों की जानकारी पंजीकृत की गईं। समय के साथ, हमने स्रोत जिलों और ब्लॉकों—जहां से प्रवासी गए थे—और गंतव्य राज्यों—जहां वे काम के लिए गए थे—का डेटा एकत्रित किया। नियंत्रण कक्ष द्वारा एकत्रित किए गए डेटा के आधार पर, हमें यह पता चला कि 2020 में झारखंड से निकले लगभग 14.7 लाख प्रवासी फंसे हुए थे। ये आंकड़े हमें यह भी बताते हैं कि अधिकतर झारखंड के प्रवासी दुमका, गिरिडीह, हजारीबाग, गोदडा, पलामू, गढ़वा, और देवघर जिलों से बाहर जाते हैं और महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, दिल्ली, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, और उत्तर प्रदेश में काम करने के लिए जाते हैं। ये मुख्य रूप से निर्माण, निर्माण सामग्री, या कपड़ा उद्योग में श्रमिक के रूप में काम करते हैं, या फिर मशीन ऑपरेटर, दर्जी, ड्राइवर, बढ़ई, इलेक्ट्रीशियन आदि के रूप में काम करते हैं।

देशभर में प्रवासियों के बारे में डेटा इकट्ठा करना बहुत जरूरी है। स्रोत और गंतव्य का डेटा हमें बेहतर सिस्टम बनाने में मदद कर सकता है जिससे प्रवासियों को सही तरीके से सहायता प्रदान की जा सके। जब हम इस डेटा का विश्लेषण करते हैं तो हम यह जान सकते हैं कि कौन से क्षेत्रों को किस तरह की मदद चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर किसी क्षेत्र में ज्यादा लोग पलायन कर रहे हैं तो वहां होर्डिंग्स, दीवारों पर चित्र और पैम्पलेट्स के जरिए उनके अधिकारों के बारे में जानकारी दी जा सकती है। इसके अलावा, रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों पर जागरूकता डेस्क भी लगाई जा सकती हैं। अगर किसी क्षेत्र में खास कौशल वाले लोग हैं तो वहां के लिए कौशल विकास कार्यक्रम और रोजगार से जुड़ी योजनाएं बनाई जा सकती हैं। इस तरह के कदम प्रवासी श्रमिकों को पंजीकरण के लिए प्रेरित भी कर सकते हैं।

टेम्पो में चढ़े मजदूर_प्रवासी श्रमिक
राज्यों के बीच श्रमिकों का प्रवास कम अधिक होता रह सकता है लेकिन यह कभी ख़त्म नहीं होगा। | चित्र साभार: क्रिस जेएल / सीसी बीवाई

प्रवासी श्रमिकों का पंजीकरण

हमारे डेटा के अनुसार, केवल 20-25 प्रतिशत प्रवासी श्रमिक ही सरकार के साथ अपना पंजीकरण कराते हैं। इससे उनके मुद्दों का समाधान, अधिकारों और सरकारी योजनाओं तक पहुंच गंभीर रूप से प्रभावित होती है। यह उनकी आपातकालीन स्थिति में बचाव की संभावना को भी कम कर देता है।

सरकार की ओर से प्रवासियों और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के अधिकारों और कल्याण के लिए कई योजनाएं चलाई गई हैं। उदाहरण के तौर पर, अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिक अधिनियम यात्रा भत्तों, चिकित्सा सुविधाओं, मुफ्त आवास, बोनस, और ईएसआई और पीएफ जैसी सुविधाओं का प्रावधान करता है। लेकिन ज्यादातर लोग इन योजनाओं के बारे में नहीं जानते हैं। कुछ योजनाओं में प्रीमियम की आवश्यकता होती है जिसे कुछ समूह वहन नहीं कर सकते हैं। लेकिन अन्य योजनाओं के लिए श्रमिकों को केवल सरकार के साथ पंजीकरण करना होता है।

एक नियंत्रण कक्ष प्रवासियों को केंद्रीय सरकार के ई-श्रम पोर्टल या किसी राज्य विशेष के डेटाबेस, जैसे झारखंड सरकार की श्रमदान वेबसाइट पर पंजीकरण करने में मदद कर सकता है।

प्रवासी श्रमिकों के नियोक्ताओं से अनुपालन भी बढ़ाना जरूरी है। अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिक अधिनियम के तहत जो नियोक्ता या ठेकेदार पांच से अधिक श्रमिकों को काम पर रखता है, उसे कानूनी रूप से लाइसेंस प्राप्त करना और उन श्रमिकों का विवरण सरकार को देना आवश्यक होता है। इससे जिन राज्यों से श्रमिकों की भर्ती आमतौर पर होती है, उनकी सरकारें इस तरीके से मांग की जानकारी को एकत्रित कर सकती हैं और रोजगार के अवसरों में मदद कर सकती हैं।

प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों की जागरूकता

प्रवासी श्रमिकों में पंजीकरण के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए निरंतर समुदाय सहभागिता की आवश्यकता होती है। समुदाय, गांव काउंसिल, पंचायत राज संस्थान (पीआरआई) के सदस्य और गांव के पारंपरिक नेता सुरक्षित और जिम्मेदार प्रवासन पर बातचीत को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं। पंचायत राज संस्थान एक मार्गदर्शक के रूप में काम कर सकते हैं और ग्राम पंचायतें उन श्रमिकों का रिकॉर्ड रख सकती हैं जो काम के लिए पलायन करते हैं। पंचायतें प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित कर सकती हैं जो प्रवासी श्रमिकों को उनके कानूनी अधिकारों, कार्यस्थल नियमों और शोषण या भेदभाव के मामलों में समर्थन प्राप्त करने के रास्तों के बारे में जानकारी देती हैं। साथ ही, उन्हें सूचित निर्णय लेने में भी मदद करती हैं।

प्रवासी श्रमिकों के लिए संयुक्त प्रयास

भारत में प्रवासन के आकार, रूप और स्वभाव को देखते हुए, इसे सुरक्षित और जिम्मेदार बनाने के लिए सरकार और नागरिक समाज संगठनों (सीएसओएस) के बीच सहयोग अत्यंत आवश्यक है। झारखंड में एसएमसीआर के लिए, सरकारी तंत्र और नागरिक समाज को मिलकर, राज्य के विभिन्न हिस्सों में सहायता, काउंसलिंग और पुनर्वास की प्रक्रिया को सक्रिय करना पड़ा।

छोटे या सूक्ष्म संगठन प्रवासी श्रमिकों से जुड़ी समस्याओं पर प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं और खासकर संकट के समय उन्हें एक मंच पर लाया जा सकता है। स्थानीय सरकारें जानकारी फैलाने और डेटा इकट्ठा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। स्रोत और गंतव्य राज्यों के बीच समझौतों (एमओयूएस) से प्रवासी श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। महामारी के दौरान, पीएचआईए (पार्टनरिंग होप ईंटू एक्शन फाउंडेशन) ने झारखंड के मुख्य सचिव से यह अनुरोध किया था कि वे अन्य राज्यों के मुख्य सचिवों से संपर्क करें और फंसे हुए प्रवासियों की मदद करें। जिन राज्यों में प्रवासी श्रमिकों की बड़ी संख्या है, वहां की सरकारों को प्रवासियों के कल्याण के लिए उपसमिति बनानी चाहिए।

साल 2021 में, नीति आयोग ने प्रवासी श्रमिकों के लिए एक योजना बनाई। राष्ट्रीय कार्य योजना प्रवासी श्रमिकों के लिए, जो विभिन्न मंत्रालयों, विशेषज्ञों और नागरिक समाज संगठनों (सीएसओएस) की ओर से तैयार की गई, एक अधिकार-आधारित दृष्टिकोण को बढ़ावा देती है। हालांकि, यह काम लंबा है और इसके लिए कई पक्षों का मिलकर काम करना जरूरी है। केवल लगातार और बड़े पैमाने पर सहयोग ही प्रवासी श्रमिकों के लिए सेवाओं और सहायता को बेहतर बना सकता है।

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लेखक के बारे में
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जॉनसन टोपनो

जॉनसन टोपनो फिया फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक हैं और उन्होंने जेवियर समाज सेवा संस्थान, रांची से ग्रामीण प्रबंधन में एमबीए किया है। वे साझेदारी कार्यक्रम प्रबंधन, निगरानी और मूल्यांकन में विशेषज्ञ हैं। कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान, उन्होंने झारखंड में राज्य प्रवासी नियंत्रण कक्ष की स्थापना की, जिससे 10 लाख से ज्यादा प्रवासियों को सहायता मिली। इससे पहले वे, पीएसीएस-डीएफआईडी कार्यक्रम के राज्य प्रबंधक और दस सालों से भी ज्यादा समय से एफईएस के साथ आंध्र प्रदेश में कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों का हिस्सा रहे हैं।

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