हाशिए पर धकेले गए समुदाय अक्सर आत्म-संदेह, सामाजिक रूढ़ियों और अकेलेपन से जूझते हैं। उन्हें ऐसे परिवेश की जरूरत है, जहां वे खुलकर अपनी बात रख पायें और उनकी आवाज लगातार सुनी जाए।
सरकारी व्यवस्थाओं के साथ काम करने वाली गैर-लाभकारी संस्थाओं के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों के मानकीकरण और संदर्भीकरण के बीच संतुलन बनाना, हमेशा एक बड़ा सवाल बना रहता है।
सामुदायिक संसाधनों पर चर्चा और जागरुकता बनाए रखने के लिए ग्राम-सभाओं को सशक्त बनाना और उनके एजेंडे को कॉमन्स और समुदाय की जरूरतों पर केंद्रित करना जरूरी हो गया है।
विकास सेक्टर में काम करते हुए फील्ड विजिट्स कभी कम नहीं हो सकती हैं लेकिन उनका बजट होता रहता है, इसलिए इस बार संस्थाओं से मुलाकात से ज्यादा सफर के खर्चे की चिंता है।
जलवायु प्रयासों में अक्सर स्थानीय समुदायों और साझा संसाधनों की भूमिका अनदेखी रह जाती है जबकि इन्हें शामिल करना सामाजिक और न्यायिक नजरिए से जरूरी लगने लगा है।
इस सरल कोश में कोहोर्ट की शाब्दिक परिभाषा के साथ हम यह भी बताएंगे कि यह शब्द कहां से आया और विकास क्षेत्र में इसका प्रयोग किन संदर्भों में किया जाता है।
विकास सेक्टर के जमीनी कार्यकर्ता जलवायु परिवर्तन के असर से अछूते नहीं हैं, यह जीवन के साथ-साथ उनके काम की निरंतरता और प्रभावशीलता को भी बुरी तरह प्रभावित करता है।
बढ़ते दबावों के बीच गैर-लाभकारी संस्थाओं की सबसे बड़ी ताकत उनकी विविधता है, जिसका प्रभावी उपयोग भारत के सामाजिक क्षेत्र के अस्तित्व और भविष्य की कुंजी साबित होगा।