
ओडिशा के कोरापुट जिले में स्थित बैपारीगुड़ा ब्लॉक की आठ ग्राम सभाएं राज्य सरकार से आने वाली एक आधिकारिक अधिसूचना का इंतजार कर रही हैं। यह अधिसूचना उन्हें स्वतंत्र रूप से केंदू पत्तों का व्यापार करने की अनुमति देगी, जो इलाके की परंपरागत आजीविका का एक मुख्य स्रोत है। केंदू पत्ते, जिन्हें हरा सोना भी कहा जाता है, मुख्य रूप से बीड़ी उद्योग में इस्तेमाल किए जाते हैं। ये इस इलाके की वन-आधारित आजीविका का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
केंदू पत्तों को वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत लघु वनोपज माना गया है जिन पर वन निवासी समुदायों का अधिकार होता है। इसका मतलब है कि समुदायों को केंदू पत्ते जैसी उपज को इकट्ठा करने, उपयोग करने और उनका प्रबंधन करने का अधिकार मिला हुआ है।
वन अधिकार अधिनियम में 2012 में किए गए संशोधन से यह साफ हो गया था कि ग्राम सभा और ग्राम समितियां केंदू पत्तों के लिए परिवहन परमिट जारी कर सकती हैं। इसके साथ ही वे इनके भंडारण, प्रसंस्करण और बिक्री जैसे काम भी कर सकती हैं। इस प्रावधान का उद्देश्य, सरकारी प्रक्रिया से होने वाली देर को कम करना और राज्य स्तर पर अतिरिक्त अनुमतियों की जरूरत खत्म करना था। लेकिन व्यवहारिक स्तर पर अभी भी इन अधिकारों का इस्तेमाल करने के लिए सरकारी मंजूरी पर निर्भरता बनी हुई है। ओडिशा में वन निवासी समुदायों को पारंपरिक नीलामी प्रक्रिया से हटकर सीधे व्यापारियों को केंदू पत्ते बेचने के लिए राज्य सरकार से एक डिरेगुलेशन लेटर चाहिए होता है। इसके बगैर समुदाय सरकारी व्यवस्था पर ही निर्भर रह जाते हैं, जिससे उनकी स्वायत्तता और आमदनी दोनों प्रभावित होते हैं।
एक बार ग्राम सभाओं को यह मंजूरी मिल जाए, तो वे खुली बोली के जरिए सीधे खरीदारों से सौदा कर सकती हैं। इससे पूरी प्रक्रिया से बिचौलिए हट जाते हैं और लोगों को सीधे पूरा भुगतान मिलता है। इस प्रक्रिया में कई बार अर्जित कीमत राज्य सरकार द्वारा तय न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक भी हो सकती है।
लेकिन इस सीजन में कोई खरीदार गांवों में नहीं आया है, क्योंकि डिरेगुलेशन नोटिस के बगैर खरीदारी करने पर सरकार केंदू पत्ते को जब्त कर लेती है। ऐसे में लोगों के पास बहुत कम दामों पर केंदू पत्ता बेचने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है। केंदू पत्तों की बिक्री इस इलाके की आजीविका का अहम हिस्सा है, विशेषकर उन महिलाओं के लिए जो इन पत्तों को इकट्ठा करने का काम करती हैं।
बीते साल, सभी औपचारिकताएं पूरी करने और सरकारी अधिकारियों के साथ बैठक करने के बाद भी, डिरेगुलेशन लेटर जारी नहीं किया गया था। इसके चलते लगभग 36 लाख रुपए के केंदू पत्ते बारिश में खराब हुए, जिससे समुदाय को भारी नुकसान उठाना पड़ा था।
बिद्युत मोहंती ओडिशा में सामुदायिक वन अधिकारों पर काम करते हैं।
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