अक्टूबर 2025 में सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 को लागू किए जाने 20 वर्ष पूरे हो रहे हैं। यह एक ऐतिहासिक कानून है, जो पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग करने वाले जमीनी आंदोलन का परिणाम था। इस अधिनियम के तहत प्रत्येक भारतीय नागरिक को सार्वजनिक प्राधिकारियों के पास उपलब्ध सूचनाओं तक पहुंचने का अधिकार प्राप्त है। उनके द्वारा मांगी जाने वाली सूचनाओं का दायरा व्यापक है, जिसमें केवल कुछ सीमित अपवाद रखे गए हैं। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता और व्यापारिक गोपनीयता से संबंधित जानकारी आदि।
वर्तमान में आरटीआई आवेदन दायर करने की प्रक्रिया काफी हद तक सरल हो चुकी है, विशेषकर ऑनलाइन आवेदन की सुविधा के कारण। फिर भी विभिन्न राज्यों के पोर्टल में उल्लेखनीय अंतर स्पष्ट नजर आते हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में आरटीआई दाखिल करने के दौरान मैंने पाया कि आवेदन शुल्क, पहचान दस्तावेज (जैसे आधार) जमा करने की अनिवार्यता, प्रिंटिंग शुल्क और अपील प्रक्रिया से जुड़ी लागतों में काफी अंतर है। इस कारण कई बार सूचना तक पहुंचना कठिन हो जाता है, जिससे अधिनियम की मूल भावना प्रभावित होती है।
इन विविध राज्य पोर्टलों का उपयोग करते हुए मैंने अपने अनुभव से कुछ ऐसे पहलुओं को समझा है, जो आवेदन प्रक्रिया को अधिक सरल और सुगम बनाते हैं। इसके साथ ही मैंने कुछ ऐसी कमियां भी देखी हैं, जो आरटीआई प्रक्रिया में चुनौतियां पैदा करती हैं। इस आधार पर मैं कुछ ऐसे उपाय साझा करना चाहती हूं, जिनसे आवेदन करते समय अधिक सटीक और उपयोगी उत्तर प्राप्त किए जा सकते हैं।
राज्य-स्तरीय आरटीआई पोर्टलों में अंतर
राज्य-स्तर पर आरटीआई आवेदन दाखिल करने के पोर्टलों की उपयोगिता और सुगमता में काफी भिन्नता देखने को मिलती है। जिन 12 राज्यों में मैंने आरटीआई दायर की, उनमें कुछ ने ऐसी सुविधाएं लागू की हैं जो आवेदन करने और उन्हें ट्रैक करने की प्रक्रिया को कहीं अधिक सरल बनाती हैं।
1. एसएमएस या ई–मेल अपडेट: दिल्ली, बिहार और राजस्थान जैसे राज्य आवेदकों को तब सूचित करते हैं, जब उनके आवेदन पर उत्तर प्राप्त हो जाता है। इसे वे पोर्टल पर जाकर देख सकते हैं। वहीं हरियाणा में आवेदक को उत्तर सीधे ई-मेल के माध्यम से भेजा जाता है। जिन राज्यों में ऐसी एसएमएस या ई-मेल सूचनाएं नहीं भेजी जाती हैं, वहां आवेदकों को नियमित रूप से पोर्टल पर जाकर स्वयं जांच करनी पड़ती है कि उत्तर प्राप्त हुआ है या नहीं।
2. ट्रैकिंग डैशबोर्ड: एकीकृत डैशबोर्ड की सुविधा से आवेदक अपने सभी आरटीआई आवेदनों की स्थिति एक ही जगह पर देख सकते हैं। जहां यह सुविधा नहीं है, वहां प्रत्येक आवेदन को अलग-अलग रेफरेंस संख्या से ट्रैक करना पड़ता है, जिसमें अधिक समय लगता है और फॉलो-अप करना कठिन हो जाता है। वर्तमान में केवल छह राज्य—बिहार, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश—ऐसे डैशबोर्ड प्रदान करते हैं।
3. ऑनलाइन उत्तर अपलोडिंग: जब संबंधित प्राधिकारी अपने उत्तर सीधे पोर्टल पर अपलोड करते हैं तो आवेदकों को डाक से उत्तर आने की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती है। यह न केवल प्रक्रिया को तेज बनाता है, बल्कि एक डिजिटल रिकॉर्ड भी तैयार करता है, जिसे व्यवस्थित रखना आसान होता है। वर्तमान में केवल पांच राज्य—हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश—डिजिटल माध्यम से उत्तर साझा करते हैं। उदाहरण के तौर पर, हिमाचल प्रदेश सरकार अपने उत्तर पोर्टल पर अपलोड करती है, हरियाणा ई-मेल के माध्यम से जवाब भेजता है, जबकि पंजाब सरकार व्हाट्सऐप के जरिए दस्तावेज साझा करती है। वहीं अन्य राज्यों में अभी भी डाक प्रणाली पर निर्भरता बनी हुई है।
4. लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ) की संपर्क जानकारी: संबंधित लोक सूचना अधिकारी की संपर्क जानकारी उपलब्ध कराना आवेदकों के लिए सीधे संपर्क और फॉलो-अप को आसान बनाता है। इससे उत्तरों की गुणवत्ता और गति, दोनों में सुधार आता है। जिन 12 राज्यों में आवेदन दायर किए गए, उनमें से आधे राज्यों ने यह सुविधा प्रदान की है, जिससे आवेदक फाइलिंग करते समय इन विवरणों को नोट कर सकते हैं।
5. सहायता और मार्गदर्शन: स्पष्ट रूप से लिखे गए अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू), नमूना आवेदन पत्र और उपयोगकर्ता मार्गदर्शिका जैसी सुविधाएं पोर्टलों के इस्तेमाल को अधिक सहज बनाती हैं। ये संसाधन भ्रम कम करते हैं, सामान्य गलतियों को रोकते हैं और अधिक से अधिक लोगों को आरटीआई का प्रभावी उपयोग करने में सक्षम बनाते हैं। अधिकांश पोर्टल ऐसे संसाधन उपलब्ध कराते हैं। हालांकि, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और पंजाब के पोर्टलों में मार्गदर्शन से जुड़ी जानकारी स्पष्ट रूप से उपलब्ध नहीं है।
इन विविधताओं से यह स्पष्ट होता है कि यद्यपि आरटीआई अधिनियम एक समान कानूनी ढांचा प्रदान करता है, परंतु इस अधिकार का जमीनी अनुभव इस बात पर निर्भर करता है कि प्रत्येक राज्य अपना पोर्टल किस प्रकार डिजाइन, संचालित और प्रबंधित करता है। जहां भी आवश्यक विवरण आसानी से उपलब्ध नहीं हैं या प्रणाली का उपयोग जटिल है, वहां नागरिकों की सूचना तक पहुंच सीमित हो जाती है।

आरटीआई प्रक्रिया में चुनौतियां
1. सूचना की अपारदर्शिता
अक्सर यह स्पष्ट नहीं होता कि मांगी गई जानकारी किस प्राधिकरण या विभाग के पास उपलब्ध है, जिसके कारण आवेदन एक विभाग से दूसरे विभाग में बार-बार स्थानांतरित होते रहते हैं। कई बार ऐसी सूचनाएं, जो राज्य की प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआईएस) में आसानी से उपलब्ध होनी चाहिए, के उत्तर प्राप्त करने में भी लंबा समय लग जाता है। कई मामलों में मेरे आवेदन का उत्तर मिलने से पहले ही उसे अन्य विभागों को स्थानांतरित कर दिया गया।
अधिनियम के अनुसार ऐसे स्थानांतरण पांच दिनों के भीतर किए जाने चाहिए। लेकिन व्यवहार में ये अक्सर काफी देर से होते हैं। कई बार आवेदन को 30 दिनों की निर्धारित जवाबदेही अवधि के पास आकर स्थानांतरित कर दिया जाता है। इससे यह अनिश्चितता उत्पन्न होती है कि अवधि का चक्र फिर कब से शुरू होता है और अपील दायर करने का सही समय कौन-सा है।
2. अतिरिक्त शुल्क और ऑनलाइन भुगतान प्रणाली की कमी
जब मांगी गई सूचना लंबी होती है तो संबंधित प्राधिकरण अक्सर अतिरिक्त भुगतान की मांग करते हैं (आमतौर पर प्रति पृष्ठ 2 रुपए)। यह अधिनियम के तहत वैध है, परंतु अधिकांश राज्य पोर्टलों (राजस्थान को छोड़कर) में अतिरिक्त शुल्क के लिए ऑनलाइन भुगतान की सुविधा नहीं है। कई राज्यों में अब भी डिमांड ड्राफ्ट या पोस्टल ऑर्डर के माध्यम से भुगतान करने पर जोर दिया जाता है। चूंकि 30 दिनों की वैधानिक अवधि तब तक रुकी रहती है जब तक भुगतान प्राप्त नहीं हो जाता, आधिकारिक भुगतान स्वीकृति के अभाव में नागरिक यह समझ नहीं पाते हैं कि उनकी अपील की समय-सीमा की शुरूआत कब से मानी जाएगी।
3. सीमित भाषा विकल्प
केवल अंग्रेजी में सीमित पोर्टल नागरिकों के लिए सूचना के अधिकार को कठिन बना देते हैं। हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश के पोर्टलों पर हिंदी में स्विच करने का कोई स्पष्ट विकल्प उपलब्ध नहीं है। गुजरात, कर्नाटक और पंजाब के पोर्टल द्विभाषी हैं (अंग्रेजी और स्थानीय भाषा), परंतु हिंदी में सुविधा नहीं देते हैं। इससे भाषाई विविधता वाले समूहों के लिए इन पोर्टलों का उपयोग कठिन हो जाता है।
4. अधूरी या गलत पोर्टल अपडेट
कुछ राज्यों में आरटीआई आवेदन जैसे ही किसी अन्य विभाग को स्थानांतरित किया जाता है, उसे ‘पूर्ण’ चिह्नित कर दिया जाता है, भले ही आवेदक को उस नए विभाग से कोई उत्तर प्राप्त न हुआ हो। अन्य स्थानों पर आवेदन को ‘रिजॉल्व्ड’ दिखाया जाता है, लेकिन वास्तविक उत्तर पोर्टल पर अपलोड नहीं किया जाता। एक राज्य के अधिकारियों ने अनौपचारिक बातचीत में स्वीकार किया कि उन्हें स्वयं ऑनलाइन प्रणाली में कठिनाई होती है और वे अब भी कागजी आरटीआई आवेदन प्राप्त करना पसंद करते हैं।
5. अपील प्रक्रिया में अस्पष्टता और असमानता
पहली अपील दर्ज करने की प्रक्रिया में भी राज्यों के बीच काफी भिन्नता देखने को मिलती है। कुछ राज्य, जैसे बिहार, अपील दर्ज करने के लिए शुल्क वसूलते हैं। वहीं मध्य प्रदेश जैसे कुछ राज्य ऑनलाइन अपील दाखिल करने की अनुमति नहीं देते हैं। यह आवेदकों के लिए अतिरिक्त भार बन जाता है, विशेष रूप से तब जब अपील का कारण स्वयं सरकार की ओर से 30 दिनों की समय-सीमा के भीतर उत्तर न देना हो।
समय-सीमा को लेकर भी अस्पष्टता बनी रहती है। कई बार आरटीआई आवेदन पांच दिनों की सीमा पार होने के बाद ही सही प्राधिकारी को स्थानांतरित किए जाते हैं। इससे आवेदक यह तय नहीं कर पाते कि उन्हें स्थानांतरण की तारीख से अगले 30 दिन प्रतीक्षा करनी चाहिए या तुरंत अपील दायर करनी चाहिए। राज्य पोर्टलों के नियम भी अलग-अलग हैं। उदाहरण के लिए, पंजाब में अपील केवल उस तारीख से 30 दिन बाद ही की जा सकती है जब आवेदन किसी लोक सूचना अधिकारी को आवंटित किया गया हो, न कि आवेदन दाखिल करने की मूल तारीख से। ऐसी असंगतियां भ्रम उत्पन्न करती हैं और कई बार आवेदकों को अपील प्रक्रिया से हतोत्साहित कर सकती हैं।
इन पहलुओं के अतिरिक्त, कुछ अन्य राज्य-स्तरीय शर्तें भी आरटीआई प्रक्रिया को और जटिल बना देती हैं। उदाहरण के लिए, गुजरात में प्रति आवेदन 20 रुपए शुल्क लिया जाता है, जबकि बिहार और पंजाब जैसे राज्यों में आधार विवरण जमा करना आवश्यक बताया गया है। गौरतलब है कि अधिनियम के तहत ये अनिवार्य नहीं है।
इन व्यवस्थागत कमियों के बीच भी कुछ ऐसे व्यावहारिक उपाय हैं, जिनके माध्यम से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि आरटीआई के उत्तर समय पर और सटीक रूप से प्राप्त हों।

बेहतर आरटीआई उत्तर प्राप्त करने के उपाय
आरटीआई आवेदन का परिणाम अक्सर इस बात पर निर्भर करता है कि प्रश्न किस तरह से पूछा गया है। अपने अनुभव के आधार पर मैं कुछ व्यावहारिक तकनीकें साझा कर रही हूं, जो उत्तरों की गुणवत्ता को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं।
1. अस्पष्ट सवालों से बचें
केवल ‘हां’ या ‘ना’ वाले प्रश्न आमतौर पर उपयोगी जानकारी प्रदान नहीं करते हैं। इसके बजाय, प्रश्नों को स्पष्ट, विशिष्ट और समयावधि सहित इस प्रकार तैयार करें कि अधिकारी को ठीक-ठीक पता चले कि आप किस जानकारी की मांग कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, “क्या वर्ष 2019 के बाद से जिला X में स्वास्थ्य परिणाम बेहतर हुए हैं?” पूछने के बजाय यह पूछें, “कृपया वर्ष 2019 से वर्तमान तक जिला X में शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर की जानकारी प्रदान करें।”
2. अपनी लागत और प्रयास को रणनीतिक रूप से प्रबंधित करें
जहां भी संभव हो, संबंधित प्रश्नों को कई अलग-अलग आवेदनों की जगह एक ही आवेदन में शामिल करें। उदाहरण के तौर पर, यदि आप किसी सामाजिक कल्याण योजना के तहत आवंटन और व्यय दोनों से जुड़ी जानकारी जानना चाहते हैं, तो एक ही आवेदन में दोनों सूचनाएं मांगी जा सकती हैं। इससे शुल्क और समय दोनों की बचत होती है, फॉलो-अप करना आसान होता है और अधिकारियों के लिए भी उत्तर देना सरल हो जाता है।
3. राज्य-विशिष्ट आरटीआई नियमों की जानकारी रखें
यद्यपि आरटीआई अधिनियम एक समान कानूनी ढांचा प्रदान करता है, लेकिन प्रत्येक राज्य अपने अलग नियम बना सकता है, जो केंद्र के नियमों से भिन्न हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, कर्नाटक सूचना का अधिकार नियम, 2005 के अनुसार, एक आवेदन केवल एक ही विषय पर होना चाहिए और 150 शब्दों से अधिक नहीं होना चाहिए। इसलिए, यदि आपके प्रश्न कई विषयों से संबंधित हैं, तो आपको प्रत्येक विषय के लिए अलग-अलग आवेदन दायर करने होंगे।
4. अनुरोध स्थानांतरण से बचने के लिए सही विभाग की पहचान करें
आवेदन करने से पहले यह पता लगाएं कि आपके द्वारा मांगी गई जानकारी किस विभाग के पास उपलब्ध होने की संभावना है और आवेदन सीधे उसी विभाग को संबोधित करें। इसके लिए राज्य सरकार की वेबसाइट या संबंधित योजना के दिशा-निर्देश देखे जा सकते हैं। यह प्रक्रिया स्थानांतरण की संभावना को कम करती है, जिससे विलंब से बचा जा सकता है।
5. व्यवस्थित रहें और संवाद बनाए रखें
अपने सभी आरटीआई आवेदनों का एक ट्रैकर रखें, जिसमें आवेदन संख्या, आवेदन दायर करने की तिथि और उत्तरों का विवरण दर्ज हो। यह विशेष रूप से तब उपयोगी है जब आप विभिन्न विभागों या राज्यों में कई आवेदन कर रहे हों। केवल पोर्टल सूचनाओं पर निर्भर न रहें। एसएमएस या ई-मेल अलर्ट मिलने के बावजूद बहुत से जरूरी अपडेट छूट सकते हैं। नियमित रूप से पोर्टल पर लॉग-इन कर यह देखें कि उत्तर अपलोड हुआ है या स्थिति में कोई बदलाव हुआ है या नहीं। इसके अतिरिक्त, संबंधित लोक सूचना अधिकारी का संपर्क विवरण नोट कर लें (यदि उपलब्ध हो) और आवश्यकता पड़ने पर फोन या ई-मेल के माध्यम से फॉलो-अप करें।
इन सभी उपायों से आवेदकों को अधिक सटीक और उपयोगी जानकारी प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। फिर भी, यह अत्यंत आवश्यक है कि सरकारें स्वयं आरटीआई पोर्टलों को अधिक सुगम, पारदर्शी और उपयोगकर्ता-केंद्रित बनाएं, जहां स्पष्ट दिशा-निर्देश, सटीक जानकारी और समय पर उत्तर उपलब्ध हों।

सूचना तक पहुंच में सुधार: आगे की राह
वर्तमान समय में सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम न केवल विधायी बल्कि प्रक्रियागत चुनौतियों का भी सामना कर रहा है। इसके साथ ही, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम द्वारा आरटीआई अधिनियम में किए गए संशोधनों ने भी नई चिंताएं उत्पन्न की हैं। इस संशोधन से पहले, व्यक्तिगत जानकारी को केवल तब रोका जा सकता था जब वह किसी सार्वजनिक गतिविधि या हित से संबंधित न हो, या उसका खुलासा किसी व्यक्ति की निजता का उल्लंघन करता हो। यहां तक कि ऐसे मामलों में भी, यदि लोक सूचना अधिकारी को यह लगता था कि जानकारी सार्वजनिक हित में आवश्यक है, तो उसे जारी करना अनिवार्य था। लेकिन संशोधन के बाद यह सुरक्षा समाप्त कर दी गई है और “व्यक्तिगत जानकारी” के लिए एक व्यापक छूट दी गई है, बिना इस शब्द की स्पष्ट परिभाषा के। व्यवहार में इसका अर्थ यह है कि अब अधिकारियों को जानकारी न देने की अधिक स्वतंत्रता होगी, जिससे नागरिकों के सूचना पाने के अधिकार सीमित हो सकते हैं।
इस बीच मौजूदा आरटीआई प्रणाली के भीतर मौजूद खामियां यह संकेत देती हैं कि इस पूरी प्रक्रिया को अधिक सुलभ और प्रभावी बनाने के लिए तत्काल सुधारों की आवश्यकता है।
1. ऑनलाइन भुगतान की सुविधा सुनिश्चित करना: सभी आरटीआई पोर्टलों पर अतिरिक्त शुल्क के लिए ऑनलाइन भुगतान की व्यवस्था होनी चाहिए। इससे विलंब और अनिश्चितता की स्थिति दूर होगी तथा डिमांड ड्राफ्ट या डाक द्वारा भुगतान जैसी जटिल प्रक्रियाओं पर निर्भरता समाप्त होगी।
2. डिजिटलीकरण को सुदृढ़ करना: संबंधित प्राधिकारी को उत्तर सीधे पोर्टल पर अपलोड करने चाहिए या डिजिटल प्रतियां उपलब्ध करानी चाहिए, ताकि आवेदक अपने आवेदन की स्थिति को ट्रैक कर सकें। नियमित और सुगम डिजिटलीकरण से न केवल आवेदकों को सुविधा मिलेगी, बल्कि अधिकारियों का कार्यभार भी घटेगा। उन्हें प्रिंट, फोटोकॉपी, डाक से उत्तर भेजने या डिमांड ड्राफ्ट जैसे कार्यों में कम समय बिताना पड़ेगा।
3. विभागीय जिम्मेदारियों और अपील नियमों में स्पष्टता लाना: प्रत्येक सरकारी वेबसाइट या पोर्टल पर यह स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए कि किस विभाग या अधिकारी के पास किस प्रकार की जानकारी उपलब्ध है और आरटीआई आवेदन किस नोडल प्राधिकारी को संबोधित किया जाना चाहिए। इसी तरह, अपील की समय-सीमा और नियम, जैसे कि दिनों की गिनती आवेदन दाखिल करने की तारीख से होगी या स्थानांतरण की तारीख से, भी स्पष्ट रूप से समझाए जाने चाहिए। इससे गलत विभागों को आवेदन भेजने, अनावश्यक स्थानांतरण, अमान्य अपीलों और व्यवस्थागत असंगतियों से बचा जा सकेगा।
सूचना का अधिकार अधिनियम पारदर्शिता और जवाबदेही के जिन मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित है, उन्हें सशक्त बनाने के लिए न केवल कानून की भाषा को स्पष्ट और सुदृढ़ करने की आवश्यकता है, बल्कि ऐसी सार्वजनिक अवसंरचना भी विकसित करनी होगी जो सूचना तक पहुंच को अधिक प्रभावी, पारदर्शी और लोकतांत्रिक बनाए।
इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ें।
—



गोपनीयता बनाए रखने के लिए आपके ईमेल का पता सार्वजनिक नहीं किया जाएगा। आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *