लगभग डेढ़ महीने पहले, 22 अप्रैल, 2025 को पहलगाम की बैसरन घाटी में पर्यटकों पर आतंकी हमला हुआ जिसमें 26 लोगों की दुखद मौत हुई। घटना के बाद, इलाके में बहुत अशांति देखी गई। यहां कुछ आतंकी बताए जा रहे लोगों के घरों को गिरा दिया गया और बहुतों को हिरासत में भी ले लिया गया। इसके बाद कश्मीर के 87 में से 48 पर्यटन स्थलों पर जाना भी प्रतिबंधित कर दिया गया। इससे इलाके की स्थानीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है, जो ज्यादातर पर्यटन पर ही निर्भर है। हमले के बाद के हफ्तों में होटल बुकिंग और उड़ानें भी बड़ी संख्या में रद्द होने लगी हैं और बहुत से पर्यटक यहां से जा चुके हैं।
ऐसे में कोई और विकल्प न होने के चलते, कई होटलों को अपने कर्मचारियों को काम से निकालना पड़ रहा है। इनमें से ज्यादातर कश्मीर के छोटे शहरों से आने वाले प्रवासी हैं। श्रीनगर में एक होटल के मालिक, शौक़त अहमद बताते हैं कि हमले के बाद से कोई बुकिंग नहीं हुई है और सभी 26 कमरे खाली हैं। बुकिंग कैंसल होने पर उन्होंने लोगों के पैसे भी लौटा दिए हैं। इसके चलते, वह अब अपने 15 में से केवल तीन कर्मचारियों को ही रख पाने में समर्थ हैं। शौकत को लगभग 10 लाख रुपये का घाटा हुआ है। अभी उनके पास आय का कोई जरिया नहीं है और खर्चे लगातार जारी हैं।
इरफ़ान लोन, जो बारामूला जिले के पलहालन गांव से आने वाले प्रवासी श्रमिक हैं और श्रीनगर के ज़ाकुरा होटल में बतौर हाउसकीपर काम करते थे, हमले के कुछ समय बाद अपनी नौकरी गंवा बैठे। वह कहते हैं, “मैं बहुत असहाय महसूस करता हूं।” खानयार, श्रीनगर के एक होटल में वेटर की नौकरी करने वाले इम्तियाज़ आह बताते हैं कैसे उन्हें नौकरी छोड़ने के लिए कहा गया क्योंकि इलाके में पर्यटकों का आना कम हो गया है। अपने परिवार का एकमात्र कमाऊ सदस्य होने के चलते इम्तियाज़ इस मुश्किल समय में उनका भरण-पोषण करने में दिक्कतों का सामना कर रहे हैं।
लेकिन यह परेशानी सिर्फ होटल कर्मचारियों तक सीमित नहीं है।
सोनमर्ग के मोहम्मद आरिफ़ पर्यटकों के लिए घुड़सवारी की सुविधा मुहैया करवाते हैं। वे कहते हैं कि “मैं पर्यटकों को घोड़े पर बैठाकर घास के मैदानों में घुमाने का काम करता हूं। इससे मुझे रोजाना लगभग दो हजार रुपए की कमाई होती है। लेकिन फिलहाल मेरे पास कोई काम नहीं है और मैं घर पर बैठा हूं।”
श्रीनगर में मुगल गार्डन की तरफ जाने वाली बुलवार्ड रोड पर रेहड़ी लगाने वाले शाहनवाज़, जो डल झील के किनारे ग्राहकों का इंतजार कर रहे थे, बताते हैं कि, “मैं यहां बीते 10 सालों फलूदा आइस-क्रीम बेच रहा हूं, लेकिन मैंने पहले कभी ऐसा मंजर नहीं देखा है। पहले मैं लगभग 3000 रुपए रोज कमाता था। अब मैं केवल 500 रुपए ही कमा पाता हूं। इतने में बच्चों की स्कूल और ट्यूशन की फीस दे पाना और घर के बाकी खर्च चला पाना मुश्किल हो रहा है। मेरे परिवार में छह सदस्य हैं। मैं इन 500 रुपयों में क्या ही कर सकता हूं?” वे आगे कहते हैं कि, “मैं पर्यटकों से कहना चाहता हूं कि वे कश्मीर आएं और यहां घूमें, क्योंकि यह एक सुरक्षित और खूबसूरत जगह है। लेकिन फिर सोचता हूं कि मेरी बात का कितना ही असर हो पायेगा।”
एक हाउसबोट के मालिक, शबीर आह हमले के असर पर बात करते हैं। वह भारत और यहां तक कि विदेश से आने वाले मेहमानों द्वारा रद्द की जाने वाली बुकिंग का जिक्र करते हैं। उन्होंने बताया कि इससे इलाके के शिकारा और हाउसबोट मालिक अनिश्चितता का सामना कर रहे हैं। वह कहते हैं कि, “हम पूरी तरह पर्यटन पर ही निर्भर हैं।”
पहलगाम में हुए हमले ने कश्मीर के अनगिनत लोगों और परिवारों की आजीविका को प्रभावित किया है। यह इलाका अब भी इसके असर से जूझ रहा है। ऐसे में, सामान्य हालात की बहाली और पर्यटन को फिर से शुरू किया जाना बहुत जरूरी है।
इल्हाक अहमद तांत्रे और उमर फ़ारूक़ जरगर, स्वतंत्र पत्रकार हैं और श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर में रहते हैं।
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