मैं पिछले दस से भी ज्यादा सालों से राजस्थान के उदयपुर जिले में श्रम सारथी संस्था के साथ काम कर रहा हूं। हम मजदूर परिवारों की वित्तीय साक्षरता और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर काम करते हैं। प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना शुरू होने पर, असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को इससे राहत मिलने की आस थी। हमारे साथ जुड़े कई श्रमिक इस योजना के दायरे में आते हैं लेकिन योजना से मिलने वाली मदद हासिल कर पाना एक जटिल प्रक्रिया है।
प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना का उद्देश्य है कि अगर किसी व्यक्ति की दुर्घटना में मृत्यु हो जाए या वह विकलांग हो जाए, तो उसके परिवार को कुछ आर्थिक सहायता मिल सके। यह योजना 18 से 70 वर्ष की आयु के लोगों के लिए है और इसका सालाना प्रीमियम मात्र 20 रुपये है, जो सीधे व्यक्ति के बैंक खाते से कट जाता है।
काम के दौरान ऐसे कई मामले सामने आए जहां लोगों ने बीमा के लिए आवेदन किया, लेकिन उन्हें महीनों तक कोई उत्तर नहीं मिला। कई बार कागज जमा करने के बावजूद नए दस्तावेजों की मांग की गयी। सबसे बड़ी परेशानी यह है कि अमूमन लोगों को इस पूरी प्रक्रिया की जानकारी ही नहीं होती है। उन्हें न तो बैंक से कोई स्पष्ट जानकारी मिलती है और न ही बीमा कंपनी से।
अक्सर जनधन खाता खुलवाते समय बैंक उसमें बीमा पॉलिसी भी जोड़ देता है। इन बीमा कंपनियों की प्रक्रिया अलग होती है, जिसकी पूरी जानकारी आमतौर पर बैंकों के पास भी नहीं होती है। जब कोई क्लेम आता है तो बैंक केवल बीमा कंपनी को ईमेल भेजता है और फिर उनके जवाब का इंतजार किया जाता है। क्लेम के लिए कोई अलग वेबसाइट या सार्वजनिक ट्रैकिंग प्रणाली नहीं है, जिससे आवेदनकर्ता को जानकारी मिल सके। ग्रामीण इलाकों में रहने वालों के लिए एक ई-मेल आधारित प्रक्रिया को समझना बेहद चुनौतीपूर्ण है।
मई 2023 में सूरजगढ़ गांव की फूला बाई खदान में काम करते हुए हादसे का शिकार हो गई थीं। एफआईआर, पोस्टमार्टम और अन्य जरूरी कागजात तैयार कर उनके नॉमिनी प्रभु लाल ने यूनियन बैंक में सभी दस्तावेज जमा करवाये। इसके बावजूद बैंक कभी नए कागज मांगता रहा, तो कभी कहा गया कि “पैसे अब तक नहीं आए हैं।” प्रभु लाल ने अलग-अलग शाखाओं में जाकर कई बार पूछताछ की। उन्होंने अखबार में भी अपनी बात रखी, लेकिन अब तक उन्हें कोई ठोस उत्तर नहीं मिला है।
इससे पहले जून 2022 में भी एक मामला सामने आया। जसवंतगढ़ गांव के नारायण सिंह की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। उनकी पत्नी, जो उसी हादसे में खुद गंभीर रूप से घायल हुई थी, ने बीमा का दावा किया। उन्होंने भी कई बार बैंक के चक्कर लगाए, लेकिन उन्हें सिर्फ यही बताया गया कि मामला विचाराधीन है और अभी पैसे नहीं आए हैं।
हमारी संस्था ने अब तक 24 आवेदनकर्ताओं के क्लेम को पूरा करवाने में समर्थन दिया है। लेकिन फूला बाई और नारायण सिंह जैसे कई मामले आज तक लंबित हैं। इस अनुभव से हमें यह समझने में मदद मिली है कि सरकारी योजनाओं की प्रक्रिया किस हद तक जटिल हो सकती है।
किशन गुर्जर श्रम सारथी में ब्रांच सर्विस मैनेजर हैं।
इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ें।
—
अधिक जानें: कचरा बीनने वाले श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा का महत्व।
अधिक करें: किशन के काम को बेहतर समझने और समर्थन देने के लिए उनसे [email protected] पर संपर्क करें।