April 26, 2024

‘एक मैनेजर अपनी टीम को क्या-क्या नहीं दे सकता पर उसे चाहिए, बस छुट्टी!’

यह मैनेजर की डायरी पूरी तरह से काल्पनिक है और विकास सेक्टर में काम करने वाले उन तमाम मैनेजर्स को समर्पित है जो चाहे-अनचाहे अपनी टीम के सदस्यों की छुट्टियां मंज़ूर कर ही देते हैं।
2 मिनट लंबा लेख

22 मई 2023, रात 11:43 बजे

रात के बारह बजने को हैं और मुझे नींद नहीं आ रही है। मैं अब भी अपनी टीम के बारे में सोच रही हूं। सोचो तो कितना सीमित समय होता है हमारे पास दुनिया को थोड़ा बेहतर करने और उसमें कुछ बदल देने के लिए। हफ़्ते के सिर्फ़ पांच ही दिन… तो काम करते हैं हम। फिर भी, मेरी टीम से हर दिन कोई न कोई छुट्टी लेने के लिए तैयार रहता है। इन्हें देने कि लिए कितना कुछ है मेरे पास…मेरे अपने अनुभव, सेक्टर की समझ और सबसे ज़रूरी मेरा मार्गदर्शन लेकिन इन्हें क्या चाहिए? बस… छुट्टी!

11 जून 2023, सुबह 8:47 बजे

अगर मुझसे कोई कहे कि दुनिया से एक चीज ख़त्म करनी है तो मैं चाहूंगी कि यह जब-तब छुट्टियां लेने का चलन ख़त्म हो जाए। लेकिन फिर सोचती हूं कि ग़रीबी, असमानता, शोषण और महामारी वग़ैरह में से किसी एक को चुनना ज़्यादा सही और समझदारी भरा होगा। कल शाम ही अचानक पता चला था कि हेड ऑफिस से कुछ लोग आज विज़िट के लिए आएंगे और आज सुबह ही टीम के आधे लोग छुट्टी पर चले गए हैं। ऐसी-ऐसी इमरजेंसी आती है लोगों को कि क्या कहूं? इन बहानों को ना निगलते बनता है और ना उगलते। कई बार तो एकदम साफ़-साफ़ दिख रहा होता है कि बहाना मारा जा रहा है। लेकिन मना करूं भी तो कैसे? आख़िर, कभी-कभी तो मुझे भी छुट्टी चाहिए होती है। और फिर, समानुभूति… अरे वही एम्पैथी, हमारी संस्था के सबसे ज़रूरी मूल्यों में से एक है। और, फिर मैं भी तो एक अच्छी इंसान हूं। कम से कम अपनी नज़रों में सही।

14 अगस्त 2023, दोपहर 1:00 बजे

मुझे लगा था कल आज़ादी का दिन है तो काम से भी थोड़ी आज़ादी मिल जाएगी। लेकिन, टीम में एक साथ कई लोग बीमार हो गये हैं। एक बार को तो मैं डर गई कि कहीं दफ़्तर के वाटर कूलर में तो कोई दिक़्क़त नहीं आ गई है जिससे ख़राब हुआ पानी लोगों को बीमार बना रहा है। फिर मुझे ख़्याल आया कि 12- 13 अगस्त वीकेंड था और कल है 15 अगस्त यानी कि स्वतंत्रता दिवस। ऐसे में बस आज भर की छुट्टी लेने पर लोगों को लगातार चार दिन की छुट्टी मिल जाएगी। एक ही दिन कई लोगों को बुख़ार आने और पेट ख़राब होने की वजह समझते ही मुझे थोड़ी राहत मिली। ईमानदारी से कहूं तो थोड़ा ग़ुस्सा भी आया। ऐसे मौक़ों पर सोचती हूं मैनेजर बनने से पहले की ही ज़िंदगी अच्छी थी, ऐसे बहाने जो बना सकती थी। ख़ैर टीम के बीमार पड़े लोगों के हिस्से काम भी अब मुझे करना पड़ेगा… पड़ेगा क्या, करना ही पड़ रहा है…. अरे, कर ही रही हूं।

17 अक्टूबर 2023, शाम 5:12 बजे

कभी-कभी मुझे अपनी समझदारी पर शक होने लगता है। हुआ यह कि कई महीनों से एक प्लान पर काम चल रहा था। एक-एक जन को मैंने अलग-अलग तरह की ज़िम्मेदारियां दे रखीं थीं। अब जब एक-एक करके उन सभी कामों को ख़त्म करने की तारीख़ नज़दीक आई है, तो लोगों ने छुट्टियों की मांग शुरू कर दी है। ये क्या बात हुई भला कि डेडलाइन मिस हो रही है तो छुट्टी पर चले जाओ। किसी ने तो मुझे यह तक कहा कि फ़लां ने छुट्टी ली ही इसलिए है ताकि वो अपना काम खत्म कर सकें। ना.. ना.. ना! मैं नहीं मान सकती। कोई मुझे बताए जो काम वर्किंग डेज़ में ना हुआ छुट्टियों में हो जाएगा? ये मुझे समझते क्या हैं! आख़िर मैं भी एक ही दिन में यहां थोड़े पहुंच गई हूं…ख़ैर छुट्टी तो सबका हक़ होता है और फिर वही बात कि मैं हूं भी तो एक अच्छी इंसान।

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14 जनवरी 2024, सुबह 11:00 बजे

छुट्टियों को लेकर मेरी पॉलिसी पक्की है। छुट्टी के दौरान ऑफिस के फोन-मैसेज से किसी को ना तो परेशान करना अच्छा लगता है मुझे और ना ही ख़ुद परेशान होना। आख़िर इंसान छुट्टी लेता क्यों है, इन्हीं सबसे ब्रेक लेने के लिए ना! लेकिन अब मैं ख़ुद अपनी ही बनाई पॉलिसी को निभा नहीं पा रही। अब छुट्टी के दौरान भी लोगों को परेशान करना मेरी मजबूरी हो गई है। दरअसल छुट्टी पर जाने से पहले लोग अपना काम समय पर ख़त्म करके या उसकी सही स्थिति बताकर नहीं जाते हैं और मुझे ना चाहते हुए भी उनसे पूछना पड़ जाता है। आख़िरी काम तो नहीं रुकता ना उसे तो होना ही है भले चाहे मैं ही क्यों ना छुट्टी पर चली जाऊं। लेकिन साथ ही मुझे इस बात का अहसास होने लगा है कि इस कारण से मैं अपनी टीम के सामने विलेन बनती जा रही हूं। मैंने टीम से कहा भी कि ऐसा मत किया करो पर कोई सुनता नहीं। मेरी हालत शोले के ठाकुर जैसी हो गई है और मेरे सामने इनकी हरकतों को देखने और उन्हें झेलने के अलावा और कोई चारा नहीं बच रहा है!

लेखक के बारे में
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अंजलि मिश्रा

अंजलि मिश्रा, आईडीआर में हिंदी संपादक हैं। इससे पहले वे आठ सालों तक सत्याग्रह के साथ असिस्टेंट एडिटर की भूमिका में काम कर चुकी हैं। उन्होंने टेलीविजन उद्योग में नॉन-फिक्शन लेखक के तौर पर अपना करियर शुरू किया था। बतौर पत्रकार अंजलि का काम समाज, संस्कृति, स्वास्थ्य और लैंगिक मुद्दों पर केंद्रित रहा है। उन्होंने गणित में स्नातकोत्तर किया है।

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कुमारी रोहिणी

कुमारी रोहिणी आईडीआर हिन्दी में संपादकीय सलाहकार हैं। वे पेंगुइन रैंडम हाउस और रॉयल कॉलिन्स जैसे प्रकाशकों के लिए एक फ़्रीलांसर अनुवादक के रूप में काम करती हैं और मिशेल ओबामा की बिकमिंग सहित विभिन्न पुस्तकों का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया है। इसके अलावा वे दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया में कोरियाई भाषा एवं साहित्य पढ़ाती हैं। रोहिणी ने दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से कोरियाई भाषा एवं साहित्य में एम और पीएचडी किया है और इस क्षेत्र में पीएचडी करने वाली वे पहली शोधार्थी हैं।

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