साल 2025 की गणतंत्र दिवस परेड में कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने ‘स्वर्णिम भारत: विरासत और विकास’ थीम पर अपनी झांकियां प्रस्तुत कीं। इस थीम को बुंदेलखंड में एक अनोखे तरीके से साकार किया जा रहा है। यहां 8वीं से 17वीं शताब्दी के बीच बने पारंपरिक जलाशयों का पुनरोद्धार कर विरासत और प्रगति की नई कहानी लिखी जा रही है। ये ऐतिहासिक जल संरचनाए न केवल जल संरक्षण का प्रतीक हैं, बल्कि क्षेत्र के सतत विकास का मार्ग भी प्रशस्त कर रही हैं।
विरासत
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 14 जिलों में फैला बुंदेलखंड एक जल-संकटग्रस्त क्षेत्र है, जहां नियमित सूखा पड़ने का इतिहास रहा है। इसकी पथरीली भू-संरचना के कारण यहां बारिश का पानी तेजी से बह जाता है, जिससे भूजल भंडारण की संभावना सीमित रहती है। इस चुनौती से निपटने के लिए 8वीं से 17वीं शताब्दी के बीच बुंदेला और चंदेला शासकों ने बारिश के पानी को संचित करने के लिए जल-संग्रहण संरचनाएं विकसित की, जिसका उपयोग पूरे वर्ष किया जा सकता था।
लेकिन बीते कुछ दशकों में ये संरचनाएं उपेक्षा और जर्जरता का शिकार हो गयी थी। हालिया समय में जलवायु संकट के गहराने और क्षेत्र में जल-सुरक्षा की बढ़ती चिंताओं के बीच यही पारंपरिक तालाब अब स्थानीय समुदाय के लिए समाधान के रूप में उभर रहे हैं।
2019 से सेल्फ-रिलायंट इनिशिएटिव्स थ्रू जॉइंट एक्शन (सिरीजन) ने हिंदुस्तान यूनिलीवर फाउंडेशन (एचयूएफ) के सहयोग से इस क्षेत्र के सात जिलों में 149 तालाबों और संबंधित संरचनाओं का पुनरोद्धार किया है। 2018 में सबसे पहले मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के अलोपा और मुदारा गांवों के तालाबों की गाद निकालने (डीसिल्टिंग) का काम शुरू किया गया था। पायलट प्रोजेक्ट शुरू होने से पहले ये तालाब कुछ ऐसे दिखते थे।


पांच महीने बाद पायलट परियोजना पूर्ण होने पर तालाब पानी से भरे गए।


यह पहल पारंपरिक और स्थानीय ज्ञान को उपयुक्त तकनीक और वैज्ञानिक समझ के साथ जोड़ती है। समुदाय की सक्रिय भागीदारी और स्वामित्व के साथ, टीकमगढ़ जिले के अलोपा, मुदारा और कुदार जैसे गांवों के तालाब अब इस क्षेत्र के गांवों के लिए जीवनरेखा बन गए हैं।


विरासत और विकास का संगम
इस पहल के तहत, पारंपरिक सामुदायिक ज्ञान को आधुनिक तकनीक के साथ जोड़कर न केवल अलग-अलग तालाबों का, बल्कि कई तरह की बनावट और संरचनाओं वाले जल निकायों की श्रृंखलाओं का भी पुनरोद्धार किया गया।

स्थानीय समुदाय के सदस्यों ने इन जल संरचनाओं का इतिहास और उनके उपयोग से जुड़ी जानकारी साझा की और उनके मानचित्रण में भी सहयोग किया। इस ज्ञान से सशक्त होकर, सिरीजन टीम ने भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) और रिमोट सेंसिंग तकनीक का उपयोग करके जलग्रहण क्षेत्र (कैचमेंट एरिया) और जल विभाजक (वाटरशेड) का भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण किया।

टीम ने अध्ययन में पाया कि रखरखाव की कमी के कारण अधिकांश पारंपरिक तालाबों में गाद जमा होकर सख्त हो गयी थी। इसका सीधा असर पानी के रिसाव और तालाबों की जल भंडारण क्षमता पर पड़ा, जिससे वे अपनी मूल भूमिका निभाने में असमर्थ हो गए।
इस कार्यक्रम के तहत पुराने तालाबों की गाद निकालने के लिए जेसीबी खुदाई मशीन मुहैया करायी गयी। वहीं, स्थानीय किसानों ने स्वयं पहल करते हुए अपने ट्रैक्टरों से गाद परिवहन का खर्च उठाया और इसे अपने खेतों में पुनः उपयोग कर मिट्टी की उर्वरता बढ़ायी।


सामुदायिक स्वामित्व
तालाबों के प्रबंधन के लिए सहभागी दृष्टिकोण अपनाया जाता है। स्थानीय समुदाय के सदस्य तालाब प्रबंधन समिति (टीएमसी) का गठन करते हैं, जिसमें महिलाओं की भागीदारी पर विशेष जोर दिया जाता है। यह समिति तालाबों और जलग्रहण क्षेत्र के लिए नियम तय करती है और गांव में संतुलित जल वितरण की योजना बनाती है। इसके अलावा, यह हर पंद्रह दिन या महीने में होने वाली बैठकों में जल की मांग और उपयोग का बजट भी तैयार करती है।

जल स्तर की निगरानी और सामुदायिक सहमति
कुओं और तालाबों के जल स्तर पर करीबी निगरानी रखी जाती है। जब पानी एक निश्चित स्तर से नीचे चला जाता है, तो तालाब प्रबंधन समिति (टीएमसी) किसानों से जल दोहन कम करने का अनुरोध करती है। चूंकि टीएमसी स्थानीय लोगों से बनी होती है, जिनका समुदाय में विश्वास और सम्मान है, किसान उनकी सिफारिशों को मानते हैं। वे जल उपलब्धता के आधार पर यह तय करते हैं कि कौन-सी फसल उगानी है और साल में कितनी बार खेती करनी है।

तालाबों के पुनरोद्धार ने बुंदेलखंड के इन जिलों में जल सुरक्षा सुनिश्चित की है, जिससे कृषि, पेयजल, घरेलू आवश्यकताओं और पशुपालन के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध हो पा रहा है। इससे होने वाली बेहतर पैदावार, अधिक फल-बागानों और सब्जी की खेती के कारण प्रवासन में कमी आयी है। महिलाओं को अपने प्राकृतिक केंद्र संचालित करने का प्रशिक्षण दिया गया है, जहां वे किसानों के लिए जैविक खाद और प्राकृतिक कृषि उत्पाद तैयार करती हैं और जैविक खेती को बढ़ावा देती हैं। फसल चक्र और प्राकृतिक खेती से मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार हुआ है और भूजल पुनर्भरण भी बढ़ा है।

इस पुनरोद्धार और पुनर्जीवन के मॉडल को समुदाय खुद आगे बढ़ा सकता है, जिससे यह एक स्थायी प्रणाली बन सके। यदि यह पहल जारी रहती है, तो बुंदेलखंड का यह उदाहरण देशभर के अन्य क्षेत्रों के लिए प्रेरणा बन सकता है, जहां विरासत और विकास साथ-साथ चलते हैं।
इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें।
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