बारिश की देरी अब त्योहार में भी देरी की वजह बन रही है

Location Iconकोरापुट जिला, ओडिशा

ओडिशा के कोरापुट जिले में कई सालों तक मानसून और जाड़े ही दो मुख्य मौसम हुआ करते थे। लेकिन इस साल, पूरे एक महीने तक गर्मी का मौसम रहा। इस इलाके में जहां जून महीने से भारी बारिश होती है, वहां इस साल मानसून अगस्त में ही आ सका।

बारिश में आई इस देरी ने लोगों की सहज जीवनशैली को अस्त व्यस्त कर दिया है। इलाक़े के गांवों में लोगों द्वारा देसरी (गांव का पुरोहित) से मिलकर अपने त्योहारों के लिए शुभ समय और तिथि तय करने की परंपरा रही है। चूंकि पूरे साल होने वाली गतिविधियों की योजना खेती के विभिन्न मौसमों के आधार पर बनाई जाती है, इसलिए बारिश के आगे-पीछे होने से त्योहारों के इस कैलेंडर में भी तारीख़ें ऊपर नीचे होने लगी हैं। डोलियाम्बा गांव की रुक्मिणी देउलपाड़िया कहती हैं, ‘पहले हम खेतों की जुताई बैसाख यानी कि मार्च-अप्रैल महीने में करते थे। जून तक बुवाई पूरी हो जाती थी और मानसून के तुरंत पहले हम अच्छी फसल की प्रार्थना करते हुए उआंस नाम का एक पारंपरिक त्योहार मनाते थे। हर साल इस अनुष्ठान के लिए, हम चावल और हल्दी के उपयोग के अलावा, लकड़ी, केंदुकट और पत्तुआ जैसे फल और चारकोली के पत्ते इकट्ठा करते हैं। पहला प्रसाद गांव के देवता को चढ़ाया जाता है, उसके बाद किसान अपने खेतों पर जाकर प्रसाद चढ़ाते हैं। हम अपना यह त्योहार जून के महीने में मनाते थे। लेकिन इस साल अनुष्ठान के लिए चीजों को इकट्ठा करने का काम हमने अगस्त के महीने में शुरू किया।’

मौसम के मिजाज में आने वाला यह अप्रत्याशित बदलाव इस क्षेत्र के निवासियों के लिए कोई नई या हालिया घटना नहीं है। वे पिछले 10–12 वर्षों से बारिश में आई इस अनियमितता का अनुभव कर रहे हैं, जिसका उनकी उपज पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। जंगल से एकत्र किये गये खाद्य पदार्थ, जिसमें हरी पत्तियां, मशरूम, बांस के अंकुर, विभिन्न फल और जड़ें शामिल हैं, अनियमित वर्षा, उच्च तापमान के साथ ही लंबे समय तक पड़ने वाली गर्मी के कारण भी प्रभावित होता है। पोटपंडी की सुनीता मुदुली कहती हैं, ‘हमारे आहार में मुख्य खाद्य पदार्थ जैसे बाजरा और धान के साथ-साथ टमाटर, फूलगोभी और बीन्स जैसी सब्जियों पर भी असर पड़ा है। कई ऐसी सब्जियां हैं जिन्हें ख़रीदने के लिए हमें बाज़ार पर निर्भर रहना पड़ता है। हालांकि, बाज़ार में बिकने वाली सब्जियां महंगी होने के साथ-साथ हर किसी की पहुंच में नहीं होती हैं।’

इसके कारण महिलाओं की परेशानियां और अधिक बढ़ गई हैं। अक्सर उन्हें न्यूनतम संसाधनों में रोज का खाना पकाना पड़ता है। इन खाद्य पदार्थों की कमी से पूरे घर के स्वास्थ्य पर असर पड़ा है और उनके पोषण में कमी आई है। इसके अलावा, लंबे समय तक पड़ने वाली गर्मी के कारण आसपास के झरने और जल-स्रोत सूख रहे हैं। महिलाओं को अब पानी और जलावन के लिए लकड़ियां लाने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है।

जैसा कि सोसाइटी फॉर प्रमोटिंग रूरल एजुकेशन एंड डेवलपमेंट (स्प्रेड) के संस्थापक बिद्युत मोहंती के समर्थन से लिली गडबा, रैला गडबा, रुक्मणी देउलपाडिया और सुनीता मुदुली ने आईडीआर को बताया।

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें

अधिक जानें: इस लेख को पढ़ें और जानें कि ओडिशा के जंगलों को वहां के ग्रामीण आदिवासी कैसे पुनर्जीवित कर रहे हैं।


और देखें


दिल्ली की फेरीवालियों को समय की क़िल्लत क्यों है?
Location Icon पश्चिम दिल्ली जिला, दिल्ली

जलवायु परिवर्तन के चलते ख़त्म होती भीलों की कथा परंपरा
Location Icon नंदुरबार जिला, महाराष्ट्र

क्या अंग्रेजी भाषा ही योग्यता और अनुभवों को आंकने का पैमाना है?
Location Icon अमरावती जिला, महाराष्ट्र

राजस्थान की ग्रामीण लड़की यूट्यूब का क्या करेगी?
Location Icon अजमेर जिला, राजस्थान,जयपुर जिला, राजस्थान