क्यों मिज़ोरम के इस्कुट किसान न जैविक खेती कर पा रहे हैं ना रासायनिक? 

Location Icon आइज़ोल जिला, मिज़ोरम

मिज़ोरम इस्कुट ग्रोअर्स एसोसिएशन की स्थापना 1982 में सिहफिर गांव में हुई थी। बाद में, यह फर्म्स एंड सोसायटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट 1986 के तहत एक पंजीकृत संस्था बन गई। आज अलग-अलग गांवों और कस्बों में हमारी नौ शाखाएं हैं, लेकिन हमारा मुख्यालय अब भी सिहफिर में ही है। 

सिहफिर कभी इस्कुट (चायोट) की भरपूर पैदावार के लिए जाना जाता था। हर दिन 20-30 ट्रक असम के सिलचर में इसका निर्यात करते थे। लेकिन बीते एक दशक में इसकी उपज में बहुत गिरावट आई है। इस्कुट की पैदावार बारिश पर बहुत अधिक निर्भर होती है और बसंत के मौसम में पानी की कमी होते ही पौधे सूख जाते हैं। हाल के कुछ सालों में बारिश अनियमित और अप्रत्याशित हो गई है, जिससे दिक्कतें और बढ़ गई हैं। जिन किसानों के बगीचे झरनों के आसपास हैं और जिन्हें पशुपालन के चलते खाद उपलब्ध है, उनकी पैदावार अब भी अच्छी हो रही है। लेकिन हम में से ज्यादातर की किस्मत इतनी अच्छी नहीं है और हमारे बगीचे बंजर पड़े हैं। 

हमारी पहुंच ऐसे उर्वरकों (फर्टिलाइजर) तक भी नहीं है, जिनसे जमीन में जरूरी पोषक तत्वों की भरपाई हो सके। पहले बागवानी और कृषि विभाग इन्हें या तो मुफ्त या रियायती दरों पर उपलब्ध करवाया करते थे। लेकिन अब हम पूरी तरह से प्राइवेट डीलरों और एजेंट्स पर निर्भर हैं, जिनकी भारी-भरकम कीमतें अदा कर पाना हमारे बस की बात नहीं है। इसके अलावा, किसी और तरीके से उर्वरकों की उपलब्धता भी नहीं सुनिश्चित हो पाती है। सरकार से मान्यता प्राप्त एजेंट सिलचर से जो उर्वरक मंगवाते हैं, वे उन्हें मिज़ोरम पहुंचने के साथ ही म्यांमार के लिए रवाना कर देते हैं। 

मुझे मालूम है कि मिज़ोरम की तुलना में म्यांमार में इसकी मांग ज्यादा है। यहां सिहफिर में भी, जहां उर्वरकों का सबसे अधिक उपयोग होता है, कुल मांग म्यांमार की तुलना में बहुत कम है। ऐसे में स्टॉक बचा रह जाने से एजेंटों को नुकसान होता है। इसलिए व्यवसायिक नजरिए से उनका इसे म्यांमार भेजना देना उचित ही है। लेकिन किसानों के लिए उर्वरक उपलब्ध करवाना सरकार की जिम्मेदारी है। 

हमारे सामने खड़ी समस्याओं को सुलझाने के बजाय, सरकार जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है। हमें बस इतना पता है कि हमें इसे अपनाना है। लेकिन अब तक जैविक खेती से जुड़े न तो कोई ठोस दिशा-निर्देश दिए गए हैं और न ही यह बताया गया है कि किस तरह की फसलों पर विशेष जोर दिया जा रहा है। हालांकि जैविक खेती करने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन फिलहाल हम उसके लिए तैयार नहीं हैं। अगर हम पूरी तरह से केवल जैविक तरीकों पर ही निर्भर हो जाएंगे तो धीरे-धीरे हमारी उपज होना बंद हो जाएगी। 

जोसान्गलिआन तोचांग मिज़ोरम इस्कुट ग्रोअर्स एसोसिएशन के प्रमुख हैं।

जैसे मालसॉमदॉन्गलिआनी तारा, आईडीआर नॉर्थ-ईस्ट फेलो 2025-26 को बताया गया। 

​​इस लेख को अंग्रेजी में ​पढ़ें​। 

​​अधिक जानें: जानिए, क्यों एक डॉक्युमेंट्री फिल्म निर्माता ने हिंदी सीखने के लिए मिज़ोरम से असम की यात्रा की। 


और देखें


दिल्ली की फेरीवालियों को समय की क़िल्लत क्यों है?
Location Icon दिल्ली

जलवायु परिवर्तन के चलते ख़त्म होती भीलों की कथा परंपरा
Location Icon महाराष्ट्र

क्या अंग्रेजी भाषा ही योग्यता और अनुभवों को आंकने का पैमाना है?
Location Icon महाराष्ट्र

राजस्थान की ग्रामीण लड़की यूट्यूब का क्या करेगी?
Location Icon राजस्थान