मैं बिहार के बक्सर जिले से हूं, लेकिन काम के सिलसिले में अक्सर राज्य से बाहर रहता हूं। गंगा के किनारे बसे बक्सर और इससे सटे केशवपुर, मानिकपुर, राजपुर, राजापुर और रामपुर जैसे कई गांव हमेशा से पानी के लिए इस पर निर्भर रहे हैं। बक्सर और आस-पास के गांवों में पहले कभी भी पीने के पानी की समस्या नहीं थी। लेकिन जब से मैं गांव लौटा हूं तो यहां लगभग हर क्षेत्र के परिवार को पीने के पानी की समस्या का सामना करते देख रहा हूं।
ये हालात तब हैं जब हर घर में चापाकल (हैंड पंप) लगे हुए हैं। बिहार सरकार की हर घर नल जल योजना के तहत बहुत से घरों में नलों की व्यवस्था भी है। दो दशक पहले तक हम सार्वजनिक जल व्यवस्था का उपयोग करते थे। जैसे पीने का पानी कुएं से भरना और सींचाई के लिए गंगा नदी पर निर्भरता। बारिश में कमी होने और गंगा में मिलने वाली सोन नदी में मध्य प्रदेश, झारखंड, और उत्तर प्रदेश से पानी कम होने के कारण गंगा के जल स्तर में भी कमी आ रही है, इसलिए लोग भूजल पर ज्यादा निर्भर हो गए। राज्य सरकार की योजना के तहत बक्सर जिले के ग्रामीण और शहरी इलाकों में पाइप लाइन डाली गई और कुओं को बंद कर दिया गया। कुछ सालों तक तो पाइप लाइन में पानी आया भी लेकिन फिर वह भी कम होने लगा, तो लोगों ने घरों में बोरिंग करवाना शुरू किया।
पहले 100—150 फीट बोरिंग के बाद ही मिलने वाला पानी, कुछ सालों बाद अब 400 से 500 फीट की गहराई पर मिलता है। इतनी गहराई में पानी तो मिला लेकिन उसका स्वाद पहले जैसा नहीं रहा, अब इसका स्वाद खारा हो गया है। पानी पीने के बाद पेट भारी भी रहता है और बार—बार प्यास लगती रहती है। पहले लगा यह केवल भ्रम है पर जब अक्सर पेट खराब रहने लगा तो जिला अस्पताल जाना पड़ा।
वहां जाकर पता चला कि मैं जिस पानी का उपयोग पीने के लिए कर रहा हूं उसमें आर्सेनिक की मात्रा बहुत ज्यादा है, जिसकी वजह से पेट संबंधी समस्याएं आ रही हैं। डॉक्टर ने बताया कि यह दिक्कत केवल मेरे साथ नहीं है बल्कि बक्सर जिले में आए दिन लोग पानी की खराब गुणवत्ता के कारण बीमार होकर अस्पताल पहुंच रहे हैं। मरीजों में अधिकांश बच्चे और युवा हैं। आर्सेनिक युक्त भूजल का उपयोग करने से जिले में कैंसर के मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है।
इस मामले में राज्य सरकार ने साल 2023 में भू—जल सर्वेक्षण भी करवाया है। इसकी रिपोर्ट के अनुसार बक्सर के साथ भोजपुर और भागलपुर जिलों के कई गांवों के भूजल में आर्सेनिक की मात्रा 1 हजार 906 माइक्रोग्राम प्रति लीटर हो गई है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पानी में आर्सेनिक की अधिकतम मात्रा 10 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। मेरे इलाके के बुजुर्ग कहते हैं कि जब तक हम लोग प्राकृतिक पानी का इस्तेमाल कर रहे थे तब तक सब ठीक था। हम बारिश के पानी को कुएं और पोखरों में जमा करते थे। गंगा नदी का पानी भी उपयोग करते थे। लेकिन समय के साथ लोग सार्वजनिक व्यवस्था से हटकर निजी व्यवस्था और सुविधाओं पर ध्यान देने लगे। अब हर घर में पानी के लिए खुदाई की जा रही है और इसका असर पानी की गुणवत्ता पर दिख रहा है।
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