हिमाचल प्रदेश में बढ़ते पर्यटन और उसके लिए लगातार चल रहे निर्माण कार्य का असर अब दिखाई देने लगा है। मेरे ज़िले सोलन और उसके आसपास के इलाक़ों में भूमि के कटाव की वजह से यहां पेड़ों की संख्या कम होती जा रही है। अब इन सबका असर जिले में बढ़ते औसत तापमान से महसूस भी किया जाने लगा है।
मैं और मेरे कुछ मित्र, पिछले कुछ सालों से अपने गांव के आसपास के जंगलों में पौधे लगाते आ रहे हैं। हमारी कोशिश यही है कि एक नया घना जंगल तैयार हो सके। इसके लिए हम हर साल पौधों की व्यवस्था वन विभाग के माध्यम से करते हैं। पौधे रोपने के समय हम गांव के बच्चों की मदद लेते हैं ताकि वे भी इसका महत्व और जरूरत समझ सकें।
लेकिन इलाक़े की कुछ परंपराएं और मान्यताएं हमारी राह की बाधा बनने लगी हैं। जैसे पीपल के पेड़ की पूजा किए जाने के अलावा, उसके युवा हो जाने पर उसका विवाह भी किया जाता है। धूमधाम से भारी खर्चे में किए जाने वाले इस विवाह की ज़िम्मेदारी उसी व्यक्ति को उठानी पड़ती है जिसने वह पौधा रोपा हो। इसी वजह से, भारी ज़रूरत के बाद भी इलाक़े में लोग पीपल का पौधा लगाने से बचते हैं। मैं और मेरे कुछ साथी, लगातार इस प्रयास में रहते हैं कि पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए जितने संभव हों उतने पेड़ लगाए जा सकें। अब इस प्रयास में इस तरह की चुनौतियों से निपटना भी शामिल हो गया है।
इंद्रेश शर्मा, आईडीआर हिन्दी की संपादकीय टीम का हिस्सा हैं तथा लगभग 13 वर्षों से विकास सेक्टर से जुड़े हैं।
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