सामाजिक सेक्टर की जानकारी रखने, ख़ासकर ज़मीनी नब्ज की पकड़ रखने वाले लोगों के लिए शंकर सिंह कोई अनसुना नाम नहीं है। राजस्थान के राजसमंद ज़िले से आने वाले शंकर सिंह एक जमीनी सामाजिक कार्यकर्ता, नाटककार, कहानीकार, मुखर वाचक की भूमिकाओं में दिखते हैं। सामाजिक सेक्टर में लगभग चार दशकों से अधिक का अनुभव रखने वाले शंकर जी ने देश के दिग्गज सामाजिक कार्यकर्ताओं अरुणा रॉय और निखिल डे के साथ मिलकर मजदूर किसान शक्ति संगठन की स्थापना की थी। यह संगठन देश में सूचना का अधिकार क़ानून लाने और लागू करवाने के अपने प्रयासों के लिए जाना जाता है।
हाशिये पर बैठे मजदूरों, किसानों की आय, रोजगार और उनके अधिकारों को लेकर लड़ने एवं उन्हें सशक्त करने का शंकर सिंह का अपना एक तरीका रहा है। उन्होंने कई सफल आंदोलनों, अभियानों की अगुआई की है। मनरेगा, सोशल ऑडिट जैसे संस्थागत माध्यमों को सशक्त करने में भी वे अहम भूमिकाओं में रहे हैं। कई बार उनके तरीक़े बहुत मनोरंजक, संगीतमय और कटाक्ष भरे भी होते हैं।
हाल ही में, आईडीआर ने शंकर सिंह से लंबी बातचीत की। इसमें उन्होंने अपने कामकाजी अनुभव, लोगों और समुदायों से जुड़ाव की बातें और अपने जीवन के अनगिनत किस्से-कहानियां साझा किए। बातचीत की इस पहली कड़ी में वे बता रहे हैं कि कैसे एक आंदोलन की दिशा तय की जाती है और कैसे उसे सफल बनाने का प्रयास किया जाता है। साथ ही, वे इस पर भी बात करते हैं कि जमीनी स्तर पर मुद्दे कैसे चुने जा सकते हैं और सरकार एवं लोगों के साथ काम करने के लिए बेहतर संवाद स्थापित करने के क्या तरीके अपनाए जा सकते हैं।
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