परिवार को चलाने के लिए महिलाओं की भूमिका भी उतनी ही अहम

Location Iconरोहतास जिला, बिहार
मशीन के साथ काम करती दो महिलायें_ आर्थिक विकास
महिलाएं अब फेरो सीमेंट तकनीक से होने वाले निर्माण कार्यों में काम करने के लिए जाती हैं | चित्र साभार: अमरेन्द्र किशोर

सोन तट का तिलौथू प्रखण्ड कभी मिर्ची, गन्ना और दलहन की खेती के लिए जाना जाता था। एक समय पर, यहां के डालमियानगर में जैन उद्योग समूह होने के चलते रोजगार की कमी नहीं थी। इस उद्योग समूह की एक चीनी उत्पादन इकाई थी जिसके कारण गन्ने की खेती के लिए भी ठीक-ठाक मजदूरी मिल जाती थी। इसके अलावा भी कमाई के कुछ और अवसर मौजूद थे। बाद में, जैन उद्योग समूह के बंद हो जाने के बाद लोगों ने यहां से पलायन शुरू कर दिया। यही वह समय था जब राज्य की राजधानी से 152 किलोमीटर दूर, रोहतास जिले में बसा यह इलाका मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझने लगा।

तिलौथू महिला मंडल की अध्यक्ष रंजना सिन्हा बताती हैं कि इन परिस्थितियों को देखते हुए उन्होंने गांव की महिलाओं के साथ मिलकर कुछ नया करने का निर्णय लिया। तिलौथू महिला मण्डल, पिछले कई वर्षों से महिलाओं से जुड़कर आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने का काम कर रहा है।

बीते कुछ समय से तेजी से बढ़ते सड़कों निर्माण के चलते रोहतास जिले में प्रशिक्षित मानवश्रम की कमी महसूस की जा रही थी। इलाक़े में मूलभूत ढांचों (इंफ्रास्ट्रक्चर) की बढ़ती मांग के पूरा होने की संभावनाएं मजबूत हो रही थीं लेकिन इसके लिए कुशल श्रमिकों की आवश्यकता पूरी नहीं हो रही थी। इसीलिए आधारभूत सुविधाओं से जुड़े कामकाज को ध्यान में रखकर इस महिला मंडल ने महिलाओं के लिए राजमिस्त्री, बढ़ई, इलैक्ट्रिशियन, और प्लंबर जैसे कौशलों से संबंधित प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए।

रंजना बताती हैं कि समाज की रूढ़िवादी सोच और पारिवारिक दबाव की वजह से इन महिलाओं के लिए घर की चौखट से बाहर निकल पाना इतना आसान नहीं था। उन्हें महिलाओं की आर्थिक आत्मनिर्भरता का महत्व समझाना बहुत जरूरी था। शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र की प्रमुख रत्ना चौधरी इस बात में जोड़ती हैं कि “घर में अगर महिलाएं एक दूसरे का साथ देती हैं, तो काम का माहौल बनता है।” उनके मुताबिक़ ससुराल में बुजुर्ग महिलाओं ने जब चाहा तभी बहुएं काम सीखने बाहर निकल पाईं या फिर दो वक्त की रोटी कमाने की लाचारी में ही महिलाएं निकल सकीं थीं। 

महिलाओं की आर्थिक स्वायत्तता को प्राथमिकता देते हुए सबसे पहले आसपास के स्वयं-सहायता समूहों की कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया गया। दर्जनों गांवों में, घर-घर घूमकर महिलाओं की सास, पतियों और परिवार के अन्य सदस्यों को जागरूक किया गया। ख़ासतौर पर घर के बुजुर्गों को उदाहरणों के साथ बताया गया कि महिलाओं का काम करना कितना ज़रूरी है। लेकिन इस काम में कोई महत्वपूर्ण सफलता मिलने में सालों लग गए।

तिलौथू की हसीना खातून अपने समाज की महिलाओं को समझाने में सफल रहीं कि एक महिला भी कमाकर अपने घर को खुशहाल रखने में भूमिका निभा सकती है। इसकी सारी जिम्मेदारी केवल शौहर पर ही क्यों डाली जाए? हसीना खातून उन महिलाओं में से एक हैं जिनके पति की आमदनी कम है और अब दोनों के कमाने से घर की व्यवस्था संतुलित हो गई है।

अब महिलाएं फेरो सीमेंट तकनीक (जिसमें मिट्टी, बालू, औद्योगिक अपशिष्ट वाली राख और सीमेंट का इस्तेमाल होता है) से होने वाले निर्माण कार्यों में काम करने के लिए जाती हैं। निर्माण कार्य पूरा होने के बाद कारपेंटर, प्लम्बर और इलेक्ट्रीशियन वग़ैरह की जरूरत पड़ती है।

उर्मिला कुमारी रोहतास जिले के बांदू गांव की हैं और प्लम्बर का काम करतीं हैं। उनके मुताबिक़ “अब गांवों में भी लोग बेहतर जीवन-शैली में रहना चाहते हैं। यहां अभी प्रशिक्षित पुरुष प्लम्बर नहीं मिलते हैं। इसलिए हमें काम मिलने लगा है।” ​वे अपनी खुशी जाहिर करते हुए बताती हैं कि “हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि कभी हम भी ऐसे काम सीखकर कमाने लगेंगे।”

सीता देवी इलेक्ट्रीशियन का काम करती हैं। हालांकि कुछ लोगों को लगता है कि महिला होने की वजह से वे यह काम अच्छे से नहीं कर पायेंगी तो इसलिए उन्हें लोगों से अभी सीधे तौर पर उतना काम नहीं मिल रहा है। सीता देवी ने स्थानीय अकबरपुर बाजार की एक दूकान से संपर्क साधा, जहां बिजली का ज्यादातर सामान बिकता है। अब वहीं से इन्हें ग्राहकों से सीधे तौर पर इलेक्ट्रीशियन का काम मिल रहा है। 

राजमिस्त्री के तौर पर काम करने वाली बसंती कुंवर कहती हैं कि “हमने समाज की दकियानूसी सोच पर ध्यान नहीं दिया और इस काम से हमें एक अलग पहचान मिली है।”

अमरेन्द्र किशोर एक स्वतंत्र पत्रकार हैं और दिल्ली में रहते हैं। वे ​कुदरती संसाधनों और ​स्थानीय समुदायों के बीच ख़त्म होते रिश्ते और उभरती चुनौतियों के समाधान की वकालत करते रहे हैं​।​

अधिक जानें: इस लेख में जानें कि भारत में कामकाजी महिलाएं क्या और क्यों चाहती हैं।

अधिक करें: लेखक के काम को विस्तार से जानने और अपना समर्थन देने के लिए उनसे [email protected] पर सम्पर्क करें।


और देखें


दिल्ली की फेरीवालियों को समय की क़िल्लत क्यों है?
Location Icon पश्चिम दिल्ली जिला, दिल्ली

जलवायु परिवर्तन के चलते ख़त्म होती भीलों की कथा परंपरा
Location Icon नंदुरबार जिला, महाराष्ट्र

क्या अंग्रेजी भाषा ही योग्यता और अनुभवों को आंकने का पैमाना है?
Location Icon अमरावती जिला, महाराष्ट्र

राजस्थान की ग्रामीण लड़की यूट्यूब का क्या करेगी?
Location Icon अजमेर जिला, राजस्थान,जयपुर जिला, राजस्थान