पहली नजर में भारत विज्ञान और इससे संबंधित क्षेत्रों में लैंगिक समानता के मामले में एक वैश्विक अपवाद जैसा प्रतीत होता है। वर्ष 2024 में देश में स्टेम (साइंस/विज्ञान, टेक्नोलॉजी/प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग/अभियांत्रिकी और मैथ्स/गणित) डिग्रियों में महिलाओं की हिस्सेदारी कुल 43 प्रतिशत थी। लेकिन इस विषय का गहराई से विश्लेषण करने पर पता चलता है कि यह संतुलन ठीक वहीं टूटता नजर आता है, जहां देश को सबसे अधिक प्रतिभा की आवश्यकता है। यानी अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) के क्षेत्र में। देश के प्रतिष्ठित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) में महिला छात्रों को प्रथम वर्ष की कुल सीटों में हर पांच में से केवल एक सीट मिलती है। पूरे देश के इंजीनियरिंग कॉलेजों में भी महिलाओं की हिस्सेदारी औसतन एक-तिहाई के आसपास ही रहती है।
यह प्रवृत्ति विद्यालय स्तर पर भी स्पष्ट दिखायी देती है। देशभर के 650 जवाहर नवोदय विद्यालयों, जो आर्थिक रूप से वंचित वर्गों और ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले प्रतिभाशाली विद्यार्थियों के लिए सरकार द्वारा संचालित आवासीय विद्यालयों का एक नेटवर्क है, के आंकड़ों के आधार पर यह पाया गया कि कक्षा 10 के बाद केवल 37 प्रतिशत छात्राएं भौतिकी, रसायनशास्त्र और गणित (पीसीएम) के विषयों का चयन करती हैं। इनमें से आधी से भी कम छात्राएं जेईई के लिए पंजीकरण करती हैं। जेईई पूरे भारत में आयोजित होने वाली एक मानकीकृत परीक्षा है, जिसके माध्यम से छात्रों को इंजीनियरिंग सहित विभिन्न तकनीकी स्नातक पाठ्यक्रमों में दाखिला मिलता है।
यद्यपि जवाहर नवोदय विद्यालय देश के सबसे प्रतिभाशाली और अकादमिक रूप से उन्नत छात्रों को तैयार करते हैं, जिनमें बड़ी संख्या में प्रथम पीढ़ी के शिक्षार्थी भी शामिल हैं, फिर भी वहां स्टेम विषयों के चयन में लैंगिक अंतर स्पष्ट रूप से दिखायी देता है। इसलिए सवाल केवल यह नहीं है कि लड़कियां बीच में पढ़ाई क्यों छोड़ देती हैं? सवाल यह भी है कि वे शुरुआत से ही स्टेम से जुड़े विषयों में दाखिला क्यों नहीं लेती हैं और उनके इस निर्णय के पीछे कौन से कारण होते हैं?
छात्राएं इंजीनियरिंग से दूर क्यों नजर आती हैं?
छात्राओं के शैक्षणिक निर्णय शायद ही कभी किसी एक कारण से प्रभावित होते हैं। अवंति फेलोज में हमने यह देखा है कि जब लड़कियां कक्षा 9 में वरिष्ठ माध्यमिक शिक्षा में प्रवेश करती हैं, तो व्यक्तिगत और सामाजिक धारणाएं, कक्षा में उनके अनुभव और पारिवारिक जिम्मेदारियों जैसे तमाम पहलू मिलकर उनके जीवन में एक जटिल प्रभाव पैदा करते हैं, जो यह तय करता है कि वे उच्च शिक्षा की दिशा में किस ओर आगे बढ़ेंगी।

अवंती फेलोज सरकारी विद्यालयों के छात्रों के साथ काम करता है, ताकि उन्हें स्नातक स्तर पर स्टेम पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने में सहयोग मिल सके। पिछले तीन वर्षों में हमने छात्राओं के लिए विशेष कार्यक्रम शुरू किए हैं, जिनका उद्देश्य स्टेम शिक्षा प्राप्त करने की उनकी राह में आने वाली विशिष्ट चुनौतियों को समझना और उनका समाधान करना है। कक्षा 9 से 12 की छात्राओं के साथ हमारे संवाद के आधार पर हमने पाया है कि इसके पीछे कुछ प्रमुख कारण हैं:
1. गणित और भौतिकी (फिजिक्स) को अमूमन अवास्तविक और काल्पनिक विषयों के रूप में देखा जाता है
कक्षा 9 की छात्राओं के साथ हमारी फोकस ग्रुप चर्चाओं में अधिकांश ने यह माना कि वे गणित और भौतिकी के विषयों में लड़कों जितनी ही सक्षम हैं, लेकिन उन्हें जीवविज्ञान (बायोलॉजी) अधिक रोचक लगता है। इस रुचि के पीछे मुख्य कारण यह था कि भौतिकी उन्हें ‘बहुत काल्पनिक’ लगती है। हमने देखा कि जब छात्राएं अचानक अत्यधिक सैद्धांतिक विषयों से रूबरू होती हैं, तो वे सहज रूप से जीवविज्ञान जैसे विषयों की ओर मुड़ जाती हैं, जिन्हें वे अधिक व्यावहारिक या धरातल से जुड़ा मानती हैं। स्टेम क्लबों में भाग लेने के दौरान कक्षा 9 की कई छात्राओं ने हमें बताया कि किसी विषय में उनकी रुचि ही उनके लिए भविष्य के अध्ययन क्षेत्र को चुनने का मुख्य आधार होती है। नतीजतन, भौतिकी और गणित में रुचि की कमी उन्हें कॉलेज में इंजीनियरिंग पढ़ने से रोक देती है।
2. इंजीनियरिंग को चिकित्सा की तुलना में कम ‘सार्थक’ माना जाता है
हमारे अनुभव में तकरीबन वे सभी लड़कियां जो डॉक्टर बनने की इच्छा रखती हैं, ने बताया कि वे ऐसा इसलिए करना चाहती हैं ताकि अपने समुदाय की मदद कर सकें। अरुणाचल प्रदेश की एक छात्रा बताती हैं, “हमारे गांव में स्वास्थ्य सेवाओं की बहुत कमी है। मैंने देखा है कि लोग अक्सर ऐसी बीमारियों से अपनी जान गंवा देते हैं, जिनका सही सुविधाओं के साथ इलाज या रोकथाम संभव है। मेरे लिए डॉक्टर बनना केवल एक व्यक्तिगत लक्ष्य नहीं है। यह मेरे अपने लोगों को एक स्वस्थ और लंबा जीवन देने का माध्यम भी है।” इस तरह की आकांक्षाएं अक्सर गहराई से व्यक्तिगत अनुभवों से जुड़ी होती हैं। इसके साथ ही वे उन चुनौतियों को सुलझाने की इच्छा से भी प्रेरित होती हैं, जिन्हें छात्राएं अपने रोजमर्रा के जीवन में करीब से देखती हैं।
इसके अलावा ऐसी महिलाओं की अनुपस्थिति, जो समान सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आती हैं और वर्तमान में स्टेम क्षेत्रों में कार्यरत हैं, छात्राओं के लिए इंजीनियरिंग को एक प्रेरणादायक विकल्प के रूप में देखना कठिन बना देती है। उन्हें तकनीकी क्षेत्र में अपने जैसा कोई रोल मॉडल दिखाई नहीं देता और इसलिए वे खुद को भी उस दुनिया का हिस्सा नहीं मान पाती हैं।
शोध से यह भी पता चलता है कि महिलाएं अधिकतर ऐसे पेशों की ओर आकर्षित होती हैं, जिनसे उन्हें यह अनुभव होता है कि वे समाज के प्रति देखभाल और सहयोग के मूल्यों को पूरा कर सकें। इंजीनियरिंग को इस दृष्टि से अक्सर कमतर माना जाता है। यह धारणा इस बात से भी गहराई से जुड़ी है कि बचपन से ही लड़कियों का समाजीकरण ऐसे ढंग से किया जाता है, जहां उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे देखभाल, उपचार और सेवा जैसी भूमिकाओं को प्राथमिकता दें। सामाजिक और पारिवारिक अपेक्षाएं, मीडिया में महिलाओं की छवि और शिक्षा संबंधित अनुभव जैसे कई पहलू मिलकर लड़कियों को चिकित्सा, शिक्षण या समाजसेवा जैसे पेशे अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं, जिन्हें पालन-पोषण और सेवा भाव से जुड़ा माना जाता है। हमारे फोकस ग्रुप में भी यही प्रवृत्ति स्पष्ट दिखाई दी। छात्राएं चिकित्सा को ‘समाज सेवा’ के रूप में वर्णित करती हैं। वहीं वे इस पर बहुत कम विचार करती हैं कि इंजीनियरिंग भी तकनीकी नवाचारों, आधारभूत संरचना के विकास और सतत समाधानों के माध्यम से समाज पर गहरा सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
3. अभिभावक सुरक्षा और सामाजिक प्रतिष्ठा को प्राथमिकता देते हैं
कर्नाटक के एक ग्रामीण विद्यालय की एक छात्रा ने हमें बताया कि उसके माता-पिता ने उससे कहा, “अस्पतालों में हर जगह डॉक्टरों की जरूरत होती है। लेकिन फैक्ट्रियां अक्सर दूर होती हैं और असुरक्षित भी।” अभिभावकों के लिए अमूमन अपनी बेटियों की सुरक्षा और सफर से जुड़ी कठिनाइयों के साथ-साथ कुछ और पहलू भी जरूरी होते हैं। उदाहरण के लिए, ऐसी हमउम्र महिलाओं से पहले से जान-पहचान होना, जो समान करियर का चयन करती हैं। ये सभी बातें मिलकर लड़कियों को जीवविज्ञान या सिविल सेवाओं जैसे कैरियर विकल्पों की ओर प्रेरित करती हैं, जहां वे इंजीनियरिंग कॉलेजों से जुड़े तथाकथित जोखिमों से दूर रहती हैं।
4. कक्षा के अनुभव लड़कियों को जीवविज्ञान की ओर मोड़ते हैं
आमतौर पर यह देखा जाता है कि विषय चयन के फॉर्म भरने से कहीं पहले ही बहुत सी लड़कियां यह संदेश आत्मसात कर चुकी होती हैं कि विज्ञान के क्षेत्र में उनकी उचित जगह कहां है। उदाहरण के लिए, कक्षाओं में शिक्षक अक्सर लड़कियों की सराहना इस बात पर करते हैं कि उन्होंने कोशिका (सेल) का चित्र कितनी सुघड़ता से बनाया, जबकि लड़कों को उनकी ‘तार्किक गणितीय सोच’ के लिए प्रशंसा मिलती है। शिक्षकों द्वारा रोबोटिक्स जैसे प्रोजेक्ट या जटिल भौतिकी प्रश्नों के हल ढूंढने के लिए भी अधिकतर लड़कों को ही प्रोत्साहित किया जाता है। यह संभव है कि ये सभी छोटे-छोटे संकेत अक्सर अनजाने में दिए जाते हैं। लेकिन हमें इसे लड़कियों के बीच अन्य महिला रोल मॉडल की अनुपस्थिति और अभिभावकों द्वारा सुरक्षित करियर विकल्पों को प्राथमिकता दिए जाने जैसी बातों से जोड़कर देखना चाहिए। नतीजतन, लड़कियों को जीवविज्ञान एक ऐसा विकल्प लगता है जिसमें उनके सफल होने की संभावना अधिक है।
हमारी एक पहल
साल 2022 में अवंती फेलोज ने निरंतर सीखने और अनुभव के आधार पर एक लक्षित स्टेम सहभागिता कार्यक्रम की शुरुआत की। इसकी शुरुआत 20 घंटे के एक जीवन कौशल कार्यक्रम से हुई, जिसका उद्देश्य छात्राओं में आत्मविश्वास और निर्णय लेने की क्षमता विकसित करना था, ताकि वे करियर से जुड़े विकल्पों के बारे में जान-समझकर एक सशक्त निर्णय ले सकें। दूसरे वर्ष में इस कार्यक्रम को आठ विद्यालयों की 450 छात्राओं तक ले जाया गया। इस चरण में हमने जेंडर-संवेदनशील चर्चाओं को एक मिश्रित कार्यक्रम के हिस्से के रूप में शामिल किया। हालांकि छात्राओं ने आत्मविश्वास में वृद्धि की बात स्वीकार की, परंतु इसका प्रभाव उनके कक्षा 11 के विषय चयन पर स्पष्ट रूप से नहीं दिखा।

इस महत्वपूर्ण सीख ने तीसरे वर्ष में हमें अपने दृष्टिकोण में बदलाव करने के लिए प्रेरित किया। हमने स्टेम क्लब शुरू किए, जिनका उद्देश्य इस सवाल को समझना और उसका समाधान करना था कि कक्षा 11 में लड़कियां गणित से दूरी क्यों बना लेती हैं। हमने कोडिंग और इलेक्ट्रॉनिक्स वर्कशॉप, समस्या-समाधान सत्र, डेटा एनालिटिक्स मॉड्यूल और इंजीनियरों के साथ सार्थक संवाद के माध्यम से स्टेम को इस तरह प्रस्तुत किया कि छात्राएं उसे अधिक व्यावहारिक, सुलभ और वास्तविक जीवन से जुड़ा हुआ मान पायें।
क्या सफल रहा और क्या नहीं
1. विषय की अनुभवात्मक सीख मददगार होती है
पांच जवाहर नवोदय विद्यालयों में संचालित स्टेम क्लबों के अंतर्गत लगभग 60 प्रतिशत छात्राओं ने हमें बताया कि डेटा एनालिटिक्स, आर्किटेक्चर, अर्बन प्लानिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स और कोडिंग जैसे विभिन्न करियर विकल्पों का प्रत्यक्ष अनुभव मिलने से उन्हें अपने करियर चयन पर पुनर्विचार करने का मौका मिला। भौतिकी और गणित का उपयोग करने वाली गतिविधियां, जैसे एलईडी बल्ब से ग्रीटिंग कार्ड बनाना, ने छात्राओं को खुद को ‘निर्माता’ और ‘रचनाकार’ के रूप में देखने का अवसर दिया।
2. शुरुआती परिचय रुचि जगाता है लेकिन निर्णय लेने के लिए मार्गदर्शन आवश्यक है
हमारे अनुभव से यह स्पष्ट हुआ कि कक्षा 9 की कई छात्राएं, विशेष रूप से एक वर्ष तक स्टेम क्लबों से जुड़े रहने के बाद, इंजीनियरिंग में गहरी रुचि व्यक्त करने लगी और उसे एक संभावित करियर के रूप में देखने लगी। लेकिन जब कक्षा 11 में गणित को विषय के रूप में चुनने का समय आया, तब उनका यह शुरुआती उत्साह मंद नजर आया।
इसी कारण समय पर मार्गदर्शन और हस्तक्षेप अत्यंत आवश्यक होता है, विशेषकर जब छात्राएं वरिष्ठ माध्यमिक स्तर पर अपने विषयों का चयन करती हैं। इस चरण में करियर परामर्श (काउंसलिंग) एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है, जिससे छात्राएं अपने निर्णय आत्मविश्वास और समझदारी के साथ ले सकती हैं।
गणित से खुलने वाले अवसरों पर व्यापक चर्चा, उपलब्ध पाठ्यक्रमों, कॉलेजों और रोजगार संभावनाओं से जुड़ी स्पष्ट व तथ्यात्मक जानकारी प्रदान करना अत्यंत प्रभावी हो सकता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इंजीनियरिंग पढ़ रही या इस क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं के साथ ऑनलाइन या निजी संवाद छात्राओं के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन का महत्वपूर्ण स्रोत बन सकता है।
3. अंकों की खाई पाटने के लिए केवल रुचि और आत्मविश्वास काफी नहीं
स्टेम क्लब भले ही छात्राओं में रुचि और उत्साह जगाने में सहायक रहे हैं, परंतु यह अकेले अकादमिक अंतर की भरपाई के लिए पर्याप्त नहीं हैं। यह बात विशेषकर प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के संदर्भ में लागू होती है। उदाहरण के लिए, हमने पाया कि जिन जवाहर नवोदय विद्यालयों में हम काम कर रहे थे, वहां कक्षा 12 की छात्राओं और छात्रों के जेईई के परिणामों में औसतन पांच अंकों का अंतर था। यह अंतर इस बात का संकेत देता है कि समान आवासीय वातावरण, समान परीक्षा-तैयारी और करियर मार्गदर्शन मिलने के बावजूद लड़कियां, लड़कों की तुलना में जेईई में कम अंक प्राप्त कर रही थी।
यहां तक कि जब लड़कियां कक्षा 11 में समान शुरुआती अंकों के साथ प्रवेश करती हैं, तब भी अंतिम परीक्षा तक आते-आते वे पीछे रह जाती हैं। यह इस बात पर बल देता है कि कक्षा में शिक्षण की प्रक्रिया ऐसी होनी चाहिए, जो समान नतीजों की दिशा में सक्रिय रूप से काम करे। शिक्षकों को कक्षा में अवधारणाओं के अनुप्रयोग को स्पष्ट रूप से समझाना चाहिए, छात्राओं को बोलने और प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए और परीक्षण डेटा का उपयोग कर सीखने से जुड़ी कमियों की पहचान व समाधान पर काम करना चाहिए। इस डेटा के आधार पर छोटे समूहों में नियमित परामर्श सत्र आयोजित किए जा सकते हैं, जहां छात्राओं को लक्षित फीडबैक और सहयोग मिले ताकि वे आत्मविश्वास के साथ अपनी पढ़ाई में निरंतरता बनाए रख सकें।
हमने स्टेम क्लब शुरू किए, जिनका उद्देश्य इस सवाल को समझना और उसका समाधान करना था कि कक्षा 11 में लड़कियां गणित से दूरी क्यों बना लेती हैं।
जब हमने छात्राओं से पूछा कि उनके अनुसार सफलता के लिए क्या आवश्यक है, तो उन्होंने अपनी कुछ विशिष्ट जरूरतें साझा की। वे चाहती हैं कि शिक्षक पढ़ने के दौरान समय-समय पर रुककर यह सुनिश्चित करें कि सभी छात्र शिक्षण सामग्री को समझ पा रहे हैं। उन्होंने बताया कि शिक्षकों को पाठ्यक्रम पूरा करने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। वे यह भी चाहती हैं कि शिक्षक ऐसे उदाहरण अधिक दें, जो फार्मूला या सूत्रों को वास्तविक जीवन की परिस्थितियों से जोड़ते हों। कई छात्राओं ने यह भी बताया कि मिश्रित (सह-शिक्षा) अध्ययन परिवेश में कभी-कभी वे प्रश्न पूछने में संकोच महसूस करती हैं। उन्हें डर लगता है कि कहीं गलत उत्तर देने पर उनका मजाक न बन जाए या उन्हें जज न किया जाए। ऐसे में वे छोटे समूहों या कक्षा के बाद अलग से अपने प्रश्न पूछने में अधिक सहज महसूस करती हैं।
छात्राएं उन शिक्षकों की विशेष सराहना करती हैं जो गलतियों को सीखने का हिस्सा मानते हैं और जिज्ञासा को प्रोत्साहन देते हैं। एक छात्रा कहती हैं, “जब शिक्षक हमारे किसी साधारण से सवाल के लिए भी यह कहते हैं कि हमने ‘अच्छा प्रश्न’ किया है, तो हमें और प्रश्न पूछने का मन होता है।”
वर्ष 2025–26 में हमारी टीम ने शिक्षकों के लिए एक रूपरेखा और मार्गदर्शिका तैयार की है, जिसका उद्देश्य यह है कि वे अपनी कक्षाओं में छात्राओं की विशिष्ट जरूरतों को पहचानने और पूरा करने में सक्षम बन सकें। इसमें शिक्षकों के साथ जेंडर-आधारित परीक्षा परिणाम डेटा साझा करना और उन्हें छात्रों के साथ छोटे समूहों में परामर्श सत्र आयोजित करने का प्रशिक्षण देना शामिल है।
4. अभिभावकों की निर्णायक भूमिका
अब तक ‘गर्ल्स इन स्टेम’ कार्यक्रम में हमारा मुख्य काम सीधे छात्राओं पर केंद्रित रहा है। इस प्रक्रिया के दौरान हमें यह भी स्पष्ट रूप से समझ आया कि अभिभावक अपनी बेटियों की आकांक्षाओं, आत्मविश्वास और अंततः उनके विषय व करियर से जुड़े निर्णयों को आकार देने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमने यह भी देखा कि हमारे कार्यक्रमों में शामिल लड़कियों पर अभिभावकीय प्रभाव, लड़कों की तुलना में कहीं अधिक गहरा होता है। इस अनुभव के आधार पर अब हम अभिभावकों के साथ और नजदीकी से काम करने की योजना बना रहे हैं। इसके लिए कार्यशालाओं और ऑनलाइन सत्र, दोनों का आयोजन किया जाएगा। इन सत्रों का उद्देश्य अभिभावकों में करियर विकल्पों के प्रति जागरूकता और समझ बढ़ाना होगा। साथ ही, उच्च शिक्षा और स्टेम विषयों से जुड़ी आम भ्रांतियों को भी दूर किया जाएगा। इन चर्चाओं में इस बात पर भी विशेष ध्यान दिया जाएगा कि बेटियों की शिक्षा यात्रा में अभिभावकों का समर्थन कितना महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, अगर छात्राओं को अपने घर से दूर जाकर पढ़ाई करने का विकल्प चुनना हो, तो उनके लिए यह समर्थन बहुत जरूरी है।
यात्रा जारी है, और सीख भी
हमारे पास अभी सारे उत्तर नहीं हैं। पिछले तीन वर्षों में हमारा काम प्रयोग और खोज की निरंतर प्रक्रिया से गुजरा है।
यह कहना कठिन है कि लड़कियां इंजीनियरिंग क्यों नहीं चुनती हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि इसका कोई एक कारण नहीं है। इन निर्णयों को कई परस्पर जुड़ी हुई बातों से आकार मिलता है, जैसे शैक्षणिक प्रदर्शन, कक्षा का माहौल, माता-पिता की अपेक्षाएं, साथियों का व्यवहार, अवसरों का अभाव और आत्म-संदेह। ये सभी बातें अक्सर एक-दूसरे को सुदृढ़ करती हैं। इनमें से केवल किसी एक बाधा को अलग से दूर करना काफी नहीं है। स्थायी परिवर्तन के लिए एक समग्र दृष्टिकोण आवश्यक है, जिसके जरिए कई चुनौतियों पर एक साथ काम किया जा सके। इसके लिए विभिन्न तौर-तरीकों को आजमाना और यह समझना जरूरी है कि कौन-से उपाय सबसे प्रभावी ढंग से बदलाव ला सकते हैं।
हमने शुरुआत जीवन-कौशल आधारित दृष्टिकोण से की थी, फिर जेंडर और आकांक्षा-निर्माण की दिशा में काम किया और आखिरकार व्यावहारिक स्टेम क्लबों के माध्यम से आत्मविश्वास और जिज्ञासा को प्रोत्साहित करने की कोशिश की। इस प्रक्रिया में हमने महसूस किया कि कक्षा 11 और 12 जैसे तनावपूर्ण शैक्षणिक स्तर के दौरान छात्रों की रुचि को बरकरार रखना बेहद अहम है।
वर्तमान में हमारा ध्यान वरिष्ठ माध्यमिक स्तर के हस्तक्षेपों पर है। हम यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि क्या कक्षा 11 की शुरुआत में एक सशक्त और केंद्रित करियर परामर्श कार्यक्रम अधिक लड़कियों, विशेषकर विज्ञान विषय की छात्राओं, को गणित न छोड़ने के लिए प्रेरित कर सकता है। हम अभिभावकों के साथ भी अधिक गहन संवाद कर रहे हैं ताकि इंजीनियरिंग को एक आकर्षक और सुलभ विकल्प के रूप में देखा जा सके। इसके साथ ही, शिक्षकों की क्षमता-वृद्धि भी आवश्यक है ताकि वे लड़कियों और लड़कों दोनों के लिए समान परिणाम सुनिश्चित कर सकें। इस दिशा में हम शिक्षकों के साथ मिलकर छोटे समूहों में मार्गदर्शन सत्र आयोजित कर रहे हैं, जिनका उद्देश्य छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में सहयोग देना है। इन सत्रों में छात्रों को दीर्घकालिक लक्ष्यों की स्पष्टता विकसित करने, बोर्ड परीक्षाओं और जेईई/नीट की तैयारी के बीच संतुलन बनाकर तनाव को प्रबंधित करने, और आत्म-चिंतन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। छोटे समूहों में होने वाली इन चर्चाओं में समय प्रबंधन सुधारने, माता-पिता और साथियों जैसे सहयोग तंत्र का उपयोग करने, शैक्षणिक अंतराल की भरपाई करने और सतत प्रेरणा बनाए रखने पर ध्यान दिया जाता है।
यह समझते हुए कि दृष्टिकोण और सोचने के तरीके अकादमिक प्रदर्शन और दीर्घकालिक सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, हम कक्षा 11 और 12 में वाइज इंटरवेंशन (मनोवैज्ञानिक रणनीति) का पायलट कार्यक्रम चला रहे हैं। इसका उद्देश्य यह जानना है कि क्या मनोवैज्ञानिक बाधाओं को संबोधित करने से छात्रों का अकादमिक प्रदर्शन बेहतर हो सकता है और क्या इससे वे अधिक महत्वाकांक्षी विषयों और करियर विकल्पों को अपनाने के लिए प्रेरित हो सकते हैं?
आत्म-चिंतन और आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए जरूरी परिवेश तैयार करने के पीछे हमारा लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी छात्र, विशेषकर लड़कियां, चुनौतियों का सामना कर सकें और उच्च शिक्षा की दिशा में आगे बढ़ें। यह यात्रा अभी समाप्त नहीं हुई है। लेकिन प्रत्येक पहल के साथ हम यह समझने के थोड़ा और करीब पहुंच रहे हैं कि स्टेम के क्षेत्र में वास्तविक समानता लाने के लिए क्या आवश्यक है।
इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ें।
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