विकास सेक्टर में काम करने वाले जैसे कि जमीनी कार्यकर्ता, स्वास्थ्यकर्मी, शिक्षा और आपदा प्रबंधन से जुड़े लोग, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सीधे या परोक्ष रूप से प्रभावित होते हैं। वे अक्सर उन समुदायों के साथ काम करते हैं जो जलवायु संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं – जैसे किसान, मजदूर, महिलाएं और आदिवासी समूह। चरम मौसमी घटनाएं (हीटवेव, बाढ़, सूखा) न केवल उनके कामकाज पर असर डालती हैं बल्कि उनकी स्वयं की सुरक्षा, संसाधनों की उपलब्धता और काम की प्रभावशीलता को भी कम करती हैं। इसके अलावा, जलवायु संकट जमीनी कार्यकर्ताओं के काम की जटिलताओं में इजाफा भी करता है।
आमतौर पर, आपदा के समय फ्रंटलाइन और एनजीओ कार्यकर्ताओं पर काम का बोझ बढ़ जाता है। जलवायु परिवर्तन से बढ़ी स्वास्थ्य समस्याओं के कारण उन्हें ज्यादा दौरे, जानकारी जुटाने और जागरूकता फैलाने का काम करना पड़ता है। कई लोगों को लगातार आपदाओं, गरीबी और असुरक्षा के बीच काम करना पड़ता है, जिससे उनमें मानसिक थकावट और तनाव बढ़ सकता है। इतना ही नहीं, इस दौरान काम के लिए उन्हें कोई अतिरिक्त भुगतान भी नहीं मिलता है। इन सबके चलते विकास सेक्टर में काम करने वालों की भूमिका अब पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। उन्हें न सिर्फ जलवायु प्रभावों को समझना है, बल्कि समाधान खोजने में समुदायों का मार्गदर्शन भी करना है। इसके लिए सरकार, संस्थाओं और समाज को मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
इस वीडियो में जलवायु परिवर्तन की श्रमिकों पर पड़ने वाली चुनौतियों और उनके प्रभावों पर बात की गई है और, कोशिश की गई है कि जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियों की अलग-अलग परतों को समझा जा सके।
यह वीडियो आंशिक रूप से आईडीआर पर प्रकाशित अंग्रेजी लेख पर आधारित है जिसे वंदिता मोरारका, अर्शिया कोचर, कुहू तिवारी ने लिखा है।
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