May 2, 2024

भारत में हीट एक्शन प्लान कितने प्रभावी हैं?

जलवायु परिवर्तन से हीटवेव में हो रही बढ़ोत्तरी के लिए ज़रूरी है कि सरकार राष्ट्रीय स्तर की नीतियों में इससे निपटने के उपाय शामिल करे ताकि अर्थव्यवस्था और जनजीवन दोनों पर इससे पड़ने वाले असर को कम किया जा सके।
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अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम की एक रिपोर्ट में सामने आया है कि दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में अप्रैल में आई हीटवेव कई संवेदनशील और पिछले समुदायों के लिए काफी हानिकारक थी। इस रिपोर्ट में हीटवेव की वजह से आई समस्याओं का भी जिक्र किया गया है। इनमें हीट स्ट्रोक की वजह से अस्पताल में भर्ती होने की घटनाएं, जंगलों में आग लगने की घटनाएं और स्कूलों का बंद होना प्रमुख है।

इस साल की शुरुआत में ही भारत के मौसम विभाग ने फरवरी 2023 को 1901 से लेकर अभी तक सबसे गर्म फरवरी घोषित किया था। 2022 में साउथ एशिया में आई भयंकर हीटवेव के बाद की गई वर्ल्ड वेदर एट्रीब्यूशन की ओर से की गई एक स्टडी में जलवायु परिवर्तन के भारतीय हीटवेव पर प्रभावों का आकलन किया और पाया कि इस क्षेत्र में इंसानी गतिविधियों की वजह से भीषण हीटवेव की घटनाएं 30 गुना बढ़ गईं।

काउंसिल ऑफ एनर्जी, एन्वारनमेंट एंड वाटर (CEEW) में सीनियर प्रोग्राम लीड विश्वास चिताले बढ़ती हीटवेव के प्रभावों के प्रति चिंता जताते हुए कहते हैं, ‘जैसे-जैसे जलवायु संकट बढ़ रहा है हीट एक्शन प्लान को धारण करने और उन्हें लागू करने संबंधी जरूरतें भारत में काफी बढ़ रही हैं ताकि हीटवेव के प्रभावों को अच्छी तरह से कम किया जा सके।’ 

हीटवेव क्या है?

हीववेव को भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर अलग-अलग परिभाषित किया जाता है। मौसम विभाग के मुताबिक, मैदानी इलाकों में अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस या उससे ज्यादा होने पर उसे हीटवेव कहा जाता है। वहीं, तटीय इलाकों में अधिकतम तापमान 37 डिग्री सेल्सियस या ज्यादा होने पर उसे हीटवेव कहा जाता है। पहाड़ी इलाकों में यही आंकड़ा 30 डिग्री सेल्सियस या ज्यादा होने पर हीटवेव कहा जाता है। भारत में हीटवेव की परिस्थितियां आमतौर पर मार्च और जुलाई के बीच महसूस की जाती हैं। वहीं, भीषण हीटवेव अप्रैल से जून के बीच होती है।

फेसबुक बैनर_आईडीआर हिन्दी

हीटवेव प्राथमिक तौर पर उत्तर पश्चिमी भारत के मैदानों, मध्य और पूर्वी क्षेत्र और भारत के पठारी क्षेत्र के उत्तर हिस्से को प्रभावित करती है। पिछले कुछ सालों में भारत में ज्यादा तापमान की घटनाएं काफी ज्यादा हो गई हैं। यहां तक ऐतिहासिक रूप से कम तापमान वाले इलाकों जैसे कि हिमाचल प्रदेश और केरल में भी हीटवेव की घटनाएं ज्यादा हो रही हैं। साल 2019 में हीटवेव का असर 23 राज्यों में हुआ जबकि 2018 में 18 राज्य प्रभावित हुए थे। भारत और दुनिया के अन्य हिस्सों में रिकॉर्ड तोड़ हीटवेव की घटनाएं संवेदनशील समुदाय के लिए सेहत से जुड़ी गंभीर समस्याएं पैदा कर रहे हैं।

चिताले कहते हैं, ‘हीटवेव की समस्या का समाधान करने के लिए काफी बेहतर और प्रभावी हीट एक्शन प्लान की जरूरत है ताकि लोगों की जान बचाई जा सके और इसका असर कम किया जा सके। ये उपाय साथ-साथ काम करते हैं ताकि हीटवेव के समय लोग सुरक्षित और सेहतमंद रहें और उनकी सेहत बची रहे।’

हीट एक्शन प्लान (HAP) भीषण हीटवेव की घटनाओं के समय लोगों को सुरक्षित रखने और उनकी जान बचाने में अहम भूमिका निभाते हैं। अहमदाबाद के 2013 के हीट एक्शन प्लान से प्रेरणा लेते हुए भारत के शहरों, राज्यों और राष्ट्रीय स्तर पर हीट वार्निंग सिस्टम लागू करने और तैयारियों की योजना बनाने की दिशा में काम किया जा रहा है।

हीटवेव बढ़ने का भारत पर क्या असर हो रहा है?

भारत भीषण गर्मी के प्रति जितना संवेदनशील है उससे देश की अर्थव्यवस्था और लोगों की सेहत पर बुरा असर पड़ने की आशंका ज्यादा है। इसका असर गरीबों पर ज्यादा पड़ेगा और वही इसका अधिकतम नुकसान भी झेलेंगे। 2021 की एक रिसर्च बताती है कि गर्मी और उमस की परिस्थितियों की वजह से दुनियाभर में मजदूरों की कमी होगी और भारत इस मामले में शीर्ष 10 देशों में शामिल होगा जिसके चलते उत्पादकता पर असर भी पड़ेगा।

गर्मी और उमस की परिस्थितियों की वजह से दुनियाभर में मजदूरों की कमी होगी

भारत में काम करने वाले कामगारों का तीन चौथाई हिस्सा भीषण गर्मी वाले सेक्टर में काम करते हैं जिनका कि देश की कुल जीडीपी में आधे का योगदान होता है। अंतरराष्ट्रीय मजदूर संगठन का अनुमान है कि साल 2030 तक भीषण गर्मी के चलते काम के घंटे कम होने में 5.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी जो कि 3.4 करोड़ नौकरियों के बराबर है। इनमें बाहर के काम वाले सेक्टर जैसे कि कृषि, खनन और उत्खनन शामिल हैं। इसके अलावा, अंदर वाले काम जैसे कि मैन्युफैक्चरिंग, हॉस्पिटैलिटी और ट्रांसपोर्टेशन जैसे काम भी शामिल हैं।

स्वास्थ्य के मामले में देखें तो जून 2023 में AP News ने रिपोर्ट छापी थी कि उत्तर भारत के राज्य उत्तर प्रदेश में हीटवेव के चलते 119 लोगों की जान चली गई। ये लोग भीषण गर्मी के चलते बीमार पड़े थे। वहीं, पड़ोसी राज्य बिहार में भी 45 लोगों की मौत हुई है। इसी समय में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया और आर्द्रता 30 से 50 प्रतिशत के बीच रही।

भारत का उत्तरी हिस्सा गर्मी के मौसम दौरान तपती और भीषण गर्मी के लिए जाना जाता है। वहीं, भारत के मौसम विभाग ने बताया है कि सामान्य तापमान लगातार बढ़ा हुआ था और अधिकतम तापमान भी 43.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। नेशनल ओसेनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के हीट इंडेक्स कैलकुलेटर के मुताबिक, ये परिस्थितियां इंसान के शरीर के लिए 60 डिग्री सेल्सियस जैसी हो सकती हैं और ये गंभीर खतरे को दर्शाती हैं।

कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के रमित देबनाथ की अगुवाई में शोधार्थियों ने एक अप्रैल 2023 में एक स्टडी की। इस स्टडी में सामने आया कि भारत में 2022 में आई हीटवेव ने लगभग 90 प्रतिशत लोगों की स्वास्थ्य समस्याओं, खाने की कमी और मौत की आशंकाओं को बढ़ा दिया। PLOS क्लाइमेट जर्नल में प्रकाशित इस स्टडी में बताया गया कि हो सकता है कि भारत सरकार का ‘क्लाइमेट वलनेरेबिलिटी इंडेक्स’ देश के विकास के प्रयासों पर हीटवेव के असर को सही से न पकड़ सके।

बाज़ार की एक गली में अति जाती भीड़_हीटवेव
इंसानी गतिविधियों की वजह से भीषण हीटवेव की घटनाएं 30 गुना बढ़ गईं। | चित्र साभार: पिक्साबे

इन शोधार्थियों ने हीट इंडेक्स और वलनेरेबिलिटी इंडेक्स को मिलाया तो पाया कि देश के 90 प्रतिशत लोग आजीविका की क्षमता, खाद्य उत्पादन, बीमारियों के संक्रमण और शहरी सतत जीवन के प्रति काफी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।

यह स्टडी भारत की अर्थव्यवस्था पर हीट वेव के दुष्प्रभावों के बारे में भी आगाह करती है। यह बताती है कि भारत जलवायु संबंधी कई आपदाओं के मेल का सामना कर रहा है। इसके चलते साल भर मौसम की खराब परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। भीषण हीटवेव के चलते यह स्थिति देश की 140 करोड़ जनता में से 80 प्रतिशत जनता के सामने बड़ा खतरा पैदा कर रही है।

स्टडी में यह भी बताया गया है कि जैसे-जैसे एयर कंडीशनर और जमीन से पानी निकालने की जरूरत बढ़ रही है, वैसे-वैसे भारत की पावर ग्रिड पर ऊर्जा की मांग का दबाव भी बढ़ता जा रहा है।

बढ़ते तापमान की वजह से एयर कंडीशनर, पानी के पंप जैसे उपकरणों का इस्तेमाल बढ़ा है। इसके चलते बिजली की जरूरत बढ़ी है और इसका असर उन उद्योगों पर पड़ता है जो बिजली पर निर्भर होते हैं।

हाल ही में आई CRISIL की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले वित्त वर्ष की तुलना में इस साल भारत की ऊर्जा जरूरतों में 9.5 से 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी होने वाली है जो कि एक दशक में सबसे ज्यादा और पिछले 20 सालों के औसत से भी ज्यादा है।

चिताले ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, ‘अगले वित्त वर्ष में हम बिजली की मांग में काफी बढ़ोतरी देख सकते हैं क्योंकि गर्मियां सामान्य से ज्यादा होंगी और हीटवेव की संख्या भी बढ़ेगी। पिछले दो सालों में मजबूत बढ़ोतरी के बावजूद बिजली की डिमांड में 5.5 से 6 प्रतिशत की बढ़ोतरी होने वाली है और साल के पहले आधे हिस्से में तो यह बढ़ोतरी और भी ज्यादा होने वाली है।

हीट एक्शन प्लान क्या है?

हीट एक्शन प्लान एक नीतिगत दस्तावेज है जिसे हीटवेव के दुष्प्रभावों को समझने और उससे प्रभावी तरीके से निपटने की तैयारी की जा सके।

हीट एक्शन प्लान को सरकारी संस्थाओं की ओर से अलग-अलग स्तर पर तैयार किया जाता है और वे विस्तृत गाइड की तरह काम करती हैं। इनमें हीटवेव की घटनाओं के बारे में समझने, उनसे उबरने और उनसे निपटने संबंधी तैयारियां करने में मदद मिलती है।

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (CPR) में असोसिएट फेलो और हीट एक्शन प्लान के बारे में सीपीआर की रिपोर्ट के सहलेखक आदित्य वलीनाथन पिल्लई ने मोंगाबे इंडिया को बताया, ‘हीट एक्शन प्लान सलाह देने वाले एक ऐसा दस्तावेज है जिसे राज्य या स्थानीय सरकारों द्वारा तैयार किया जाता है। इनमें यह बताया जाता है कि हीटवेव के लिए कैसी तैयारियां की जानी चाहिए, हीटवेव की घोषणा किए जाने के बाद क्या किया जाना चाहिए। साथ ही, इनमें आपात स्थिति से निपटने के उपाय बताए जाते हैं और हीटवेव के अनुभवों से सीखने की सलाह दी जाती है ताकि हीटवेव एक्शन प्लान को बेहतर बनाया जा सके।’

हाल ही में और भी हीटवेव एक्शन प्लान में यह कोशिश की गई है कि हीटवेव की वजह से होने वाले आर्थिक नुकसान को कम किया जा सके।

इन प्लान का प्राथमिक उद्देश्य संवेदनशील जनसंख्या को सुरक्षित रखना और स्वास्थ्य सेवाओं, आर्थिक मदद सूचनाओं और मूलभूत सुविधाओं जैसे संसाधनों को निर्देशित करना होता है, ताकि भीषण गर्मी की स्थितियों में सबसे ज्यादा खतरा झेलने वालों को बचाया जा सके।

पिल्लई आगे कहते हैं, ‘ये प्लान अलग-अलग सेक्टर से जुड़े होते हैं। उन्हें लागू करने के लिए जरूरी होता है कि कई अलग-अलग सरकारी विभाग हीटवेव शुरू होने से पहले से ही काम करें। इनका मुख्य मकसद होता है कि भीषण गर्मी की परिस्थितियों में किसी की भी जान न जाए। हाल ही में और भी हीटवेव एक्शन प्लान में यह कोशिश की गई है कि हीटवेव की वजह से होने वाले आर्थिक नुकसान को कम किया जा सके।’

भारत की केंद्र सरकार हीटवेव से प्रभावित 23 राज्यों के और 130 शहरों और जिलों के साथ मिलकर देशभर में हीट एक्शन प्लान लागू करने का काम कर रही है। पहला हीट एक्शन प्लान साल 2013 में अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ने लॉन्च किया था और आगे चलकर इस क्षेत्र में यही टेम्पलेट बन गया।

हीट एक्शन प्लान अहम भूमिका निभाते हैं ताकि व्यक्तिगत और समुदाय के स्तर पर जागरूकता फैलाई जा सके और हीटवेव की स्थिति में लोगों को सुरक्षित रखने के लिए सही सलाह दी सके। इसमें, कम समय और ज्यादा समय के एक्शन का संतुलन रखा जाता है।

कम समय वाले हीट एक्शन प्लान प्राथमिक तौर पर हीटवेव के प्रति तात्कालिक उपाय देते हैं और भीषण गर्मी की स्थिति में त्वरित राहत दिलाते हैं। इनमें आमतौर पर स्वास्थ सहायता, जन जागरूकता अभियान, कूल शेल्टर और दफ्तर या स्कूल के समय में बदलाव जैसे उपाय शामिल होते हैं ताकि लोग कम गर्मी के संपर्क में आएं। वहीं, दूसरी तरफ लंबे समय वाले हीट एक्शन प्लान सतत रणनीतियों पर जोर देते हैं जिनका असर एक हीटवेव सीजन से आगे भी होता है। ये प्लान गर्मी के खतरों की अहम वजहों का खात्मा करने और भविष्य में आने वाले हीट वेव के प्रति तैयारियों पर जोर देते हैं। 

इन हीट एक्शन प्लान में हीटवेव चेतावनी सिस्टम को भी शामिल किया जाता है ताकि संवेदनशील जनता तक समय से अलर्ट पहुंच सके। वे अलग-अलग सरकारी विभागों के बीच समन्वय करते हैं, सेहत से जुड़ी जरूरतों को पूरा करने के प्रयास करते हैं, काम के घंटों में बदलाव करते हैं और व्यावहारिक बदलाव के लिए रणनीतियां लागू करते हैं। हीट एक्शन प्लान में आधारभूत ढांचों में निवेश, जलवायु के प्रति लचीली खेती और सतत शहरी योजनाएं लागू करने, ग्रीन कॉरिडोर बनाने और ठंडी छतें बनाने जैसे उपायों पर भी जोर देते हैं।

हीट एक्शन प्लान के तहत कम और ज्यादा समय के उपाय लागू करने के साथ ही सरकारें इंसानों के जीवन और अर्थव्यवस्था पर हीटवेव के असर को कम कर सकती हैं। हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इन एक्शन प्लान को कहां तक लागू किया जा रहा है।

कितने प्रभावी हैं मौजूदा हीट एक्शन प्लान?

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च ने एक विस्तृत मूल्यांकन किया है जिसमें 18 राज्यों को 37 हीट एक्शन प्लान का विश्लेषण किया गया है। इसमें स्वास्थ्य से जुड़े खतरों और संवेदनशील जनसंख्या के साथ-साथ कृषि पर इसके असर के बारे में पता चला है। सीपीआर की रिपोर्ट में कहा गया है कि हीटवेव की समस्याओं से निपटने और इसके दुष्प्रभाव से बचने के लिए हीट एक्शन प्लान को प्रभावी बनाने की जरूरत है।

इस रिपोर्ट में सामने आया है कि इनमें से कुछ प्लान में कई खामियां हैं जो दिखाती हैं स्थानीय स्तर पर इनका ख्याल नहीं रखा जाता है, फंडिंग कम मिलती है और संवेदनशील समूहों की टारगेटिंग खराब होती है। साल 2023 के शुरुआती महीनों में आई हीटेवव ने इसकी खराब परिस्थितियों के प्रति भारत की तैयारियों की ओर ध्यान खींचा था।

पिल्लई के मुताबिक, ‘हमने कुल 37 हीट एक्शन प्लान का विश्लेषण किया है इन सभी में ऐसी कमियां मिली हैं जिनकी वजह से इनका असर कम होता है। उदाहरण के लिए, सिर्फ दो प्लान ऐसे थे जिनमें संवेनदशीलता का आकलन किया जाता है जबकि हीटवेव को सहने में अक्षम लोगों की मदद करने और उनकी पहचान करने के लिए यह सबसे जरूरी चीज है।’

वह आगे कहते हैं, ‘यह भी चिंताजनक बात है कि 37 प्लान में से सिर्फ 3 ही ऐसे थे जिनके तहत सुझाए गए उपायों के लिए फंडिंग मिल पाई। यह चिंताजनक इसलिए क्योंकि ज्यादातर हीट एक्शन प्लान में मूलभूत ढांचों में बदलाव, सिटी प्लानिंग और इमारतों को लेकर महंगे सुझाव दिए गए थे।’

हाल में आई हीटवेव के प्रति भारत के हीट एक्शन प्लान की अनुकूलता कितनी प्रभावी है इसका आकलन अभी तक किया जा रहा है। साथ ही, कड़ी से कड़ी जोड़ने वाले सबूत जुटाए जा रहे हैं जो इन्हें लागू करने और इनके प्रभावों से जुड़े अलग-अलग स्तर के सुझाव देते हैं।

पिल्लई के मुताबिक, ‘इन प्लान का असर करने के लिए इनका विस्तृत अध्ययन और मूल्यांकन किए जाने की जरूरत है। फिलहाल, बहुत कम डेटा उपलब्ध है जिससे यह समझा जा सके कि ऐसे कौन से हीट एक्शन प्लान हैं जो प्रभावी ढंग से काम कर रहे हैं और हीटवेव की वजह से आने वाली चुनौतियों का सही समाधान दे पा रहे हैं.’

हीट एक्शन प्लान को लागू करने से संबंधी और इसके लागू करने से पहले और बाद के किसी भी कारण से होने वाली मृत्यु की दर के बारे में अध्ययन करने की जरूरत है।

वह इस बात पर भी जो देते हैं कि हीट एक्शन प्लान को लागू करने से संबंधी और इसके लागू करने से पहले और बाद के किसी भी कारण से होने वाली मृत्यु की दर के बारे में अध्ययन करने की जरूरत है। ऐसी स्टडी से पता चल सकता है कि ये प्लान कितने प्रभावी हैं और गर्मी की वजह से होने वाली मौतों को ये कितना कम कर पा रही हैं। पिल्लई आगे कहते हैं, ‘कई क्षेत्रों, राज्यों और स्थानीय सरकारों में हीट एक्शन प्लान के काफी नया होने की वजह से इनके बारे में विस्तार से से नहीं समझा जा सका है कि ये प्लान कैसे काम करते हैं और वे कुल मिलाकर कितने प्रभावी होते हैं।’

हीट एक्शन प्लान के मौजूदा प्रभावों को सुनिश्चित करने के लिए उनके विस्तार और शहरों और राज्यों में उन्हें लागू किए जाने की मॉनीटरिंग जरूरी है। इन हीट एक्शन प्लान का असर और प्रभाव समझने के लिए कठोर मूल्यांकन वाली स्टडी की जरूरत है ताकि यह समझा जा सके कि भीषण गर्मी की स्थितियों के समय आने वाली चुनौतियों के प्रति ये कितनी असरदार हैं। इससे नीति निर्माताओं और अन्य हिस्सेदारों को अहम जानकारी मिलेगी जिससे वे हीट एक्शन प्लान को सुधारकर उसे और बेहतर बना सकेंगे, ताकि भारत में हीटवेव के असर को कम से कम किया जा सके।

क्या प्रभावी बनाए जा सकते हैं हीट एक्शन प्लान?

इस सवाल का जवाब देते हुए पिल्लई कई प्रयासों को सूचीबद्ध करते हैं ताकि अलग-अलग चुनौतियों को हल करने के लिए कई रास्ते अपनाए जाएं और हीटवेव के खिलाफ इन्हें प्रभावी बनाया जा सके। वह कहते हैं कि पर्याप्त फंडिंग, एक कानूनी आधार बनाने और जिम्मेदारी तय करने, भागीदीरी को बढ़ावा देने और हीट एक्शन प्लान के बारे में दूरगामी सोच लेकर चलने से इन्हें मजबूत किया जा सकता है।

वह आगे कहते हैं कि हीट एक्शन प्लान को सफलतापूर्वक लागू करने और उनके तहत सुझाए गए सुझावों को अपनाने के लिए पर्याप्त फंड जारी किए जाने की जरूरत है। इसके बाद हीट एक्शन प्लान को लेकर कानूनी अनिवार्यता करने से इनके कार्यन्यवन, प्रभाव और असर की मॉनिटरिंग की जा सकेगी। साथ ही, संवेदनशील समूहों और हिस्सेदारों को शामिल करने जैसे समीक्षा के तरीकों से पारदर्शिता और जिम्मेदारी को सुनिश्चित किया जा सकता है।

हीट एक्शन प्लान के विकास और उनको फिर से जांचने में प्रभावित होने वाले लोगों के समूहों और हिस्सेदार समुदायों के इनपुट और उनका निर्देशन लेने से ज्यादा भागीदारी वाला और समावेशी दृष्टिकोण सुनिश्चित होता है।

हीट एक्शन प्लान में लंबे समय की जलवायु के अनुमानों को और हीटवेव की चुनौतियों का हल निकालने वाले मॉडल को शामिल किया जाना चाहिए। पिल्लई आगे कहते हैं कि मौजूदा समय के साथ-साथ भविष्य की योजनाएं तय करना जरूरी है ताकि बढ़ते तापमान के साथ बढ़ती चुनौतियों को कम किया जा सके।

यह आलेख मूलरूप से मोंगाबे पर प्रकाशित हुआ था जिसे आप यहां पढ़ सकते हैं।

लेखक के बारे में
ज़ोया अदा हुसैन-Image
ज़ोया अदा हुसैन

जोया अदा हुसैन एक लेखिका और पत्रकार हैं।

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