मेरा नाम राहुल है और मैं मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले का रहने वाला हूं। विकास सेक्टर में काम करते हुए मुझे लगभग 10 वर्ष हो चुके हैं। इस दौरान मैंने अलग-अलग संस्थाओं में रहते हुए अलग-अलग मुद्दों पर काम किया है। मसलन, बच्चों के अधिकारों, पिछड़े समुदाय, ग्रामीण विकास एवं महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों पर काम किया है। वर्तमान में मैं बच्चों की शिक्षा पर काम करने वाली संस्था में कार्यकर्ता के तौर पर जुड़ा हूं। मेरा मुख्य कार्य आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं एवं स्कूल शिक्षकों के साथ पाठ्यक्रम से जुड़ी गतिविधियों में प्रशिक्षण से लेकर कार्यान्वयन के लिए फॉलो-अप करना तथा अभिभावकों के साथ संवाद बनाए रखना होता है।
इतने वर्षों से मैं अपना अधिकतर काम स्थानीय स्तर पर समुदाय के साथ ही करता आया हूं। अब तक के, अपने अनुभव के आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि बात चाहे समुदाय के साथ जुड़कर काम करने की हो या फिर स्थानीय अधिकारियों के साथ बैठकें वगैरह करने की, मुझे ये सब काम करना आता है। अब तो आसान भी लगता है।
लेकिन मेरी मुश्किलें तब अधिक बढ़ जाती हैं जब मुझे अपने काम के दौरान अंग्रेजी भाषा से जूझना पड़ता है।
मैं स्थानीय स्तर पर समुदाय के साथ काम करता हूं जिसमें आम बोलचाल की भाषा हिन्दी या फिर स्थानीय भाषा मालवी ही रहती है। लेकिन मेरी संस्था में कम्युनिकेशन ज्यादातर अंग्रेजी भाषा में ही रहता है तथा हमें ऊपर से जो भी निर्देश लिखित या मौखिक मिलते हैं, वे अंग्रेजी भाषा में ही आते हैं। यह सब समझने में मुझे काफी परेशानी होती है।
अंग्रेजी भाषा से मेरा संघर्ष सुबह से ही शुरू हो जाता है। सुबह उठकर, हमें अपनी संस्था के व्हाट्सएप ग्रुप में मैसेज डालना होता है कि आज हम अपने फील्ड में कौन-कौन सी गतिविधियां करेंगे। मैं बता नहीं सकता कि यह सब अंग्रेजी में सोचकर लिखना मेरे लिए कितनी बड़ी परेशानी बन जाती है। कभी-कभी तो ग्रुप में अंग्रेजी लिखते समय मैं इसी में अटक जाता हूं कि वाक्य में मीट (Meet) शब्द का इस्तेमाल करूं या फिर मीटिंग (Meeting)? यही वह सबसे बड़ी वजह है जिससे अक्सर काम के दौरान मेरा मनोबल गिर जाता है और अंग्रेजी समझने में मुश्किल की वजह से मैं खुद को असहज महसूस करता हूं।
इसका एक और उदाहरण आपके साथ साझा करता हूं। अभी कुछ दिन पहले, हमारे टीम लीडर की तरफ से हमें काफी देर तक सर्वे को लेकर अंग्रेजी में कुछ समझाया जा रहा था जो मुझे समझ में नहीं आ रहा था। मुझे समझने में मुश्किल आई तो मुझे यह चिंता होने लगी कि जल्दी ही इसके बारे में किसी से पूछना होगा वरना काम कैसे करूंगा। उसके बाद मैंने अपने सहयोगी से पूछा की हमें इसमें करना क्या है?
उसने मुझे सरल भाषा में सब समझा दिया कि हमें एक सर्वे करना है, कब करना है, कितना करना है, कहां करना है। यह सब सुनकर मैं सोच रहा था कि अगर इतनी सी बात हमें सिर्फ हिन्दी में बोलकर समझा दी जाती तो इतनी मुश्किल न होती। ये सब काम करना तो मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं है।
संस्था में ज्यादातर बातचीत अंग्रेजी में ही होती है तो इसलिए मुझे बताने में संकोच होता है कि मेरे लिए अंग्रेजी समझना और लिखना कितना मुश्किल काम है। मुझे इस बात का हमेशा डर सताता है कि मेरी अंग्रेजी में कम समझ की वजह से मेरी योग्यता को कम न आंका जाए। लगभग यही स्थिति मेरे कुछ अन्य सहयोगियों की भी रहती है लेकिन सब अपने हिसाब से मैनेज कर लेते हैं। इसलिए मैं भी जैसे-तैसे रिपोर्ट अथवा ई-मेल के जवाब देने के लिए किसी से पूछकर अथवा गूगल ट्रांसलेटर वगैरह की मदद से काम चलाने की कोशिश करता हूं। लेकिन मुझे मालूम है कि उसमें फिर भी गलतियां रह जाती हैं।
इतने वर्षों के अनुभव के बाद, मैंने यह महसूस किया है कि अंग्रेजी आना बहुत जरूरी है तथा इसे बोलने और समझने वाले लोगों का रुतबा अलग ही होता है और उन्हें बड़े सम्मान से भी देखा जाता है। लेकिन मुझे बस यही लगता है कि जब किन्हीं भी वजहों से संस्थाओं का काम प्रभावित हो तो उसका कोई सरल विकल्प नहीं ढूंढा जा सकता क्या?
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