डिब्रूगढ़, असम के लाहोवाल ब्लॉक में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित मोथोला गांव एक आपदा-संभावित क्षेत्र है। इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति और मौसमी परिस्थितियां बाढ़, मिट्टी के कटाव और भूस्खलन का प्रमुख कारण हैं। बाढ़ आने पर इस इलाके में पानी के ऊपर केवल पेड़ों का ऊपरी हिस्सा ही दिखाई पड़ता है और लोगों के घरों की छत तक पानी में डूबी होती है।
मोथोला की आबादी 500 से अधिक है, फिर भी यहां के सबसे नजदीकी प्री-प्राइमरी और प्राइमरी स्कूल लगभग 5-10 किमी की दूरी पर हैं। 1990 के दशक में बना यहां का पहला आंगनबाड़ी केंद्र भूस्खलन और मिट्टी के कटाव के कारण नष्ट हो गया। साल 2006 में, सरकार ने ब्रह्मपुत्र के बांध के पास एक और आंगनबाड़ी केंद्र बनाने का आदेश पारित किया। लेकिन 2019 में, मानसून के कारण जब गांव में बाढ़ आई तब बांध का आकार बढ़ाने के लिए इस केंद्र को ध्वस्त कर दिया गया। इसके बाद समुदाय के लोगों ने एक वैकल्पिक केंद्र बनाने का फैसला किया।
2021 में, डिब्रूगढ़ के मोथोला टी स्टेट में काम करने वाली निकी कर्माकर ने अपने एक-मंज़िला घर की बालकनी में एक आंगनबाड़ी केंद्र स्थापित करने का फैसला किया। निकी ने हमें बताया कि हर साल लगभग छह महीने तक, जल स्तर में वृद्धि के कारण क्षेत्र में कोई भी स्कूल काम नहीं कर पाता है। वे बताती हैं कि ‘मेरे घर के बनकर तैयार होने के बाद मुझे लगा कि इस बालकनी वाली जगह का इस्तेमाल बच्चों को पढ़ाने के लिए किया जा सकता है। जब तक कोई नया केंद्र बनकर तैयार नहीं हो जाता तब तक मुझे जगह देने में खुशी होगी।’ हर दिन सुबह नौ बजे उनकी छोटी सी बालकनी में जूट के बोरों से बनी चटाई पर बच्चे इकट्ठा हो जाते हैं। आशा कर्मचारी आरती सोनोवाल मिड-डे भोजन के साथ वहां आती हैं। वे बच्चों को पढ़ाने के लिए चार्ट और किताबों का इस्तेमाल करती हैं। इसके बाद, भोजन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे बच्चों में मिड-डे मील वाला खाना बांटती हैं।
निकी इस बात से खुश हैं कि बच्चों को शिक्षा मिल रही है लेकिन वह यह भी जानती हैं कि यह वैकल्पिक व्यवस्था स्थायी नहीं है। ‘चाहे मैं कितना भी प्रयास क्यों ना कर लूं, मेरा घर एक आंगनबाड़ी केंद्र नहीं हो सकता है। घर में किसी दिन कोई समस्या खड़ी हो जाने या आशा कर्मचारी के अनुपस्थित होने की स्थिति में स्कूल नहीं चल सकता है।’
वे आशा करती हैं कि जल्द ही नया स्कूल गांव के भीतर ही ऊपरी इलाक़े में बन जाएगा, फिर बाढ़ या जलवायु संबंधी अन्य आपदाओं के कारण शिक्षा में किसी तरह की बाधा नहीं पहुंचेगी।
अत्रेयी दास एक महत्वाकांक्षी पत्रकार और सामाजिक प्रभाव के लिए काम करने वाली कार्यकर्ता हैं।
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