स्मरिणीता शेट्टी

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स्मरिणीता शेट्टी आईडीआर की सह-संस्थापक और सीईओ हैं। इसके पहले, स्मरिणीता ने दसरा, मॉनिटर इंक्लूसिव मार्केट्स (अब एफ़एसजी), जेपी मॉर्गन और इकनॉमिक टाइम्स के साथ काम किया है। उन्होनें नेटस्क्राइब्स – भारत की पहली नॉलेज प्रोसेस आउटसोर्सिंग संस्था – की स्थापना भी की है। स्मरिणीता ने मुंबई विश्वविद्यालय से कम्प्युटर इंजीनियरिंग में बीई और वित्त में एमबीए की पढ़ाई की है।




स्मरिणीता शेट्टी के लेख


भारत के वॉटरमैन राजेंद्र सिंह_जल संरक्षण

October 26, 2022
आईडीआर इंटरव्यूज । राजेंद्र सिंह
‘वाटरमैन ऑफ़ इंडिया’ कहे जाने वाले राजेंद्र सिंह ने आईडीआर से हुई इस खास बातचीत में जलवायु परिवर्तन, जल संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण और ग्राम विकास पर विस्तार से बात की है। यहां उनसे जानिए कि कैसे सिर्फ पानी बचाकर गांव आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकते हैं।
कैमरे की तरफ़ पीठ की हुई एक महिला खेत में खड़े होकर अपने हाथ में सिंचाई वाली एक पाइप पकड़े हुए _ खेती किसान

October 19, 2022
छोटे और पिछड़े किसानों के लिए खेती को सहज बनाना
स्वयं शिक्षण प्रयोग और प्रदान जैसे संगठन यह दिखा रहे हैं कि लगातार आसान और नए उपाय अपनाकर छोटी जोत वाली खेती को व्यावहारिक बनाया जा सकता है।
बेज़वाड़ा विल्सन का चित्रण-दलित समुदाय

September 28, 2022
आईडीआर इंटरव्यूज । बेज़वाड़ा विल्सन 
सफ़ाई कर्मचारियों द्वारा मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रथा के विरुद्ध ताउम्र संघर्ष करनेवाले बेज़वाड़ा विल्सन दलितों के नेतृत्व में ज़मीनी स्तर पर तैयार किए जाने वाले आंदोलन की बात करते हैं। वह चाहते हैं कि यह आंदोलन इस अमानवीय प्रथा का अंत करने में मददगार साबित हो और इस प्रथा के शिकार लोगों को इससे मुक्ति मिल सके।
खेत की कटाई करती महिलाएं_फ़्लिकर-महिला किसान

June 30, 2022
महिलाओं के नेतृत्व को पहचानने के अवसर में तब्दील एक संकट
स्वयं शिक्षण प्रयोग की संस्थापक प्रेमा गोपालन से हुई बातचीत जिसमें वे महिलाओं के लिए आजीविका के स्थायी साधन के रूप में खेती की भूमिका पर बात कर रही हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता, आरटीआई अधिनियम और मनरेगा की प्रेरक शक्ति, और मैगसेसे पुरस्कार विजेता अरुणा रॉय का चित्रण

June 1, 2022
आईडीआर इंटरव्यूज | अरुणा रॉय
जानीमानी सामाजिक कार्यकर्ता और आरटीआई और मनरेगा जैसे विभिन्न अधिनियमों के लिए किए गए आंदोलनों के पीछे एक प्रेरणा शक्ति के रूप में काम करने वाली अरुणा रॉय हमें बता रही हैं कि वास्तव में सहभागी आंदोलनों को टिकाऊ बनाए रखने के लिए क्या करना पड़ता है। और असहमति के अपने लोकतान्त्रिक अधिकार के लिए हमें क्यों लड़ना चाहिए।