February 28, 2024

समाजसेवी संगठनों में कारगर प्रतिभा प्रबंधन कैसे किया जा सकता है?

क्या एक समाजसेवी संस्था सीमित संसाधनों में एक बेहतरीन और मज़बूत टीम संस्कृति विकसित कर सकती है, इस सवाल का जवाब अर्पण की प्रतिभा प्रबंधन की रणनीतियां देती हैं।
16 मिनट लंबा लेख

किसी भी समाजसेवी संगठन में एक मज़बूत टीम संस्कृति विकसित करने के लिए किन चीजों की ज़रूरत होती है? जब आपको बजट और संसाधनों के लिए संघर्ष करते रहना पड़े तो आप इस काम को कैसे कर सकते हैं? और, आपको अपने टीम के सदस्यों को प्राथमिक शेयरधारकों के बराबर महत्व क्यों देना चाहिए? इन्हीं जैसे कुछ सवालों का जवाब खोजने के लिए आइये हम अर्पण की प्रतिभा प्रबंधन की यात्रा के बारे में जानते हैं। आज इस लेख में हम उनकी यात्रा की शुरुआत, आज वे जहां हैं वहां तक कैसे पहुंचे, और उनकी सफलता का कारणों के बारे में जानेंगे।

अर्पण मुंबई स्थित एक समाजसेवी संगठन है जो बाल यौन शोषण की रोकथाम के लिए काम करता है। क़रीब 15 वर्ष (2007 में) पहले जब उन्होंने इसकी शुरुआत की थी तब उनकी टीम में केवल तीन ही लोग थे। अगले छह सालों (2013 तक) में, टीम में कुल 18 लोग हो गये थे और संगठन में किसी भी तरह की ठोस एचआर प्रक्रिया या नीति का अभाव था। हालांकि, अंतिम 10 सालों में, उन्होंने 120 अन्य सदस्यों (टीम के आकार को लगभग 140 तक पहुंचाकर) को जोड़ने के साथ ही अपने बजट को 14 गुना बढ़ा दिया है जो 2013 में 1.2 करोड़ रुपये से 2023 में लगभग 16.5 करोड़ रुपये तक हो गया।

इस विकास के केंद्र में वह ख़ास निवेश है जो उन्होंने सोच-समझकर लोगों में किया है।

पूजा तपारिया (संस्थापक, सीईओ) कहती हैं कि एचआर की अवधारणा टीम के सदस्यों की ओर से ही आई थी। ‘जब हमारी टीम बढ़नी शुरू हो गई थी तब 2011 में हम लोगों ने एचआर के बारे में थोड़ा-बहुत सोचना शुरू कर दिया था। हमें किसी ना किसी तरह की प्रक्रिया की ज़रूरत महसूस होने लगी थी, टीम हमसे सवाल कर रही थी, लेकिन हमारे पास उन सवालों के जवाब नहीं थे। मुझे नहीं लगता है कि उन दिनों हमारे पास किसी तरह की उचित मूल्यांकन प्रणाली भी थी।’

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यही वह समय था जब हेमेश शेठ (निदेशक, सपोर्ट ऑपरेशन) हमसे जुड़े। वे 2013 में संगठन में शामिल हुए और गंभीरता से एचआर और वित्त विभाग की ज़िम्मेदारी सम्भाली। उसके पहले तक कुछ सहायकों की मदद से पूजा अकेले ही इन चीजों को सम्भाल रही थीं।  हेमेश के आने से टीम का विकास हुआ, प्रक्रियाओं को स्वरूप मिला, नीतियां मज़बूत हुईं और हमारे काम के प्रभाव को विस्तार मिला जो अन्यथा संभव नहीं था। (अर्पण को लगातार पांच सालों तक काम करने के लिए सबसे अच्छी जगह का प्रमाणपत्र भी मिल चुका है।)

आइये जानते हैं कि इसके लिए उन्होंने क्या-क्या किया।

बुनियादी बातों को शामिल करना और जल्दी शुरुआत करना

बुनियादी स्तर पर ही, अर्पण ने यह सुनिश्चित किया कि वे देश के सभी क़ानूनों का पालन करेंगे। पूजा कहती हैं कि जैसे-जैसे देश में कानून बदले, संगठन ने उन सभी को शामिल कर लिया। उदाहरण के लिए, जब गर्भावस्था और पितृत्व से संबंधित क़ानूनों में बदलाव हुआ – वेतन के साथ मातृत्व अवकाश को तीन महीने से बढ़ाकर छह महीने किया गया, और पितृत्व अवकाश और गर्भपात लाभ कानून की शुरूआत की गई – तब अर्पण ने इन बदलावों को अपनी एचआर नीतियों में शामिल कर लिया। संगठन के पास पीओएसएच समिति और बाल संरक्षण नीति भी है जो कि अर्पण की तरह काम करने वाली किसी भी टीम के लिए क़ानूनी रूप से अनिवार्य और महत्वपूर्ण दोनों है।

हालांकि, एचआर से जुड़े क़ानूनों का पालन करने के अलावा, अर्पण को अन्य संगठनों से अलग करने वाली चीज विवेक और भरोसे पर दिये जाने वाले वे लाभ हैं जो संस्था अपने टीम के सदस्यों को प्रदान करती है। सभी कर्मचारियों को वार्षिक प्रशिक्षण भत्ता दिया जाता है ताकि वे अपने कौशल का विकास कर सकें। इसके अलावा, संगठन उन्हें चिकित्सीय भत्ता भी देता है जिसका निवेश वे अपने स्वास्थ्य को बेहतर करने में कर सकते हैं। ज़्यादातर अन्य संगठनों द्वारा सोचने से बहुत पहले अर्पण ने इन दोनों ही प्रावधानों को अपनाया और अब ये दोनों ही प्रावधान पिछले एक दशक से संगठन की नीतियों का हिस्सा हैं।

अर्पण द्वारा किए जाने वाले कठिन कामों के कारण कर्मचारियों में बर्नआउट की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए वे चिकित्सीय भत्ता देते हैं।

हेमेश कहते हैं कि पूजा, मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को समझती हैं और इस पर ज़ोर देती हैं और इसी का परिणाम है कि टीम के स्वास्थ्य की बेहतरी और उनके कौशल विकास पर दिया जाने वाला विशेष ध्यान दिया जाता है। ‘वे हमारी क्वाटर्ली समीक्षाओं में भी काउंसिलिंग को बढ़ावा देती हैं। अब प्रत्येक तीन महीने में हम इस बात पर निगरानी बनाए रखते हैं कि कितने लोग इस भत्ते का लाभ उठा रहे हैं और उससे उन्हें किस तरह का लाभ मिल रहा है। इस पूरी प्रक्रिया में निश्चित रूप से हम उनकी पहचान की गोपनीयता का पूरा ध्यान रखते हैं।’ अर्पण, टीम के प्रत्येक सदस्य को चिकित्सीय भत्ता के रूप में प्रति माह 1500 रुपये देता है।

पूजा कहती हैं कि अर्पण द्वारा किए जाने वाले कामों की प्रकृति कठिन होने के कारण कर्मचारियों में बर्नआउट की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए वे चिकित्सीय भत्ता देते हैं। इसके बावजूद भी, टीम का प्रत्येक सदस्य इसे नहीं लेता है। लोगों को अपनी-देखभाल की ज़रूरत को नहीं समझते हैं। वे कहती हैं कि ‘मेरा अनुमान है कि इसका संबंध संस्कृति से है, और विशेष रूप इसलिए क्योंकि अर्पण में महिलाओं की संख्या अधिक है, हम व्यक्तिगत रूप से अपनी देखभाल नहीं करते हैं। हमें हमेशा बच्चों, परिवार, और हर दूसरी चीज अधिक महत्वपूर्ण लगती है, और इससे आख़िरकार बर्नआउट की स्थिति पैदा हो जाती है।’

टेबल पर ब्लॉकस और चिट कार्ड्स_प्रतिभा प्रबंधन
अपने संगठन के लोगों की देखभाल करना प्रत्येक संगठन की प्राथमिकता होनी चाहिए। | चित्र साभार: अर्पण

नेतृत्व की अगली कड़ी का निर्माण और नेतृत्व पाइपलाइन में निवेश करना

तमाम और संगठनों के विपरीत, अर्पण ने अपनी यात्रा की शुरुआत में ही दूसरी पंक्ति/निदेशक स्तर का निर्माण शुरू कर दिया था। 2014 में, संगठन ने प्रोग्रामैटिक के साथ-साथ एचआर, वित्त और निगरानी एवं मूल्यांकन जैसे सहायक कार्यों को देखने के लिए सीनियर लीडर्स को नियुक्त किया। नतीजतन, ऑर्गेनोग्राम बदल गया।

सीनियर लीडरशिप के साथ टीम में एक क्रम (हेरार्की) आया। अपने शुरुआती चार सालों में अर्पण जहां एक समान ढांचे पर काम करने वाला संगठन था वहीं जल्द ही उन्हें इस बारे में सोचना शुरू करना पड़ा कि काम की रिपोर्टिंग किसके पास करनी है और टीम को व्यवस्थित करने का सबसे सही तरीक़ा क्या था। साथ ही संगठन का आकार बढ़ने के कारण, ऑर्गेनोग्राम में भी लगातार बदलाव आ रहा था।

किसी भी संगठन में लचीलापन को बनाने के लिए निदेशक स्तर पर सात से आठ लोगों का होना महत्वपूर्ण है।

पूजा बताती हैं कि ‘हमने वरिष्ठ नेतृत्व को मज़बूत बनाने की दिशा में काम किया। आमतौर पर 140 सदस्यों वाले किसी भी समाजसेवी संगठन में अधिकतम दो से तीन लोग [निदेशक/वरिष्ठ स्तर पर] होते हैं। हमारे पास किसी भी स्थिति और समय में सात से आठ लोग होते हैं। अगर हमें संगठन में लचीलेपन का निर्माण करना है तो उसके लिए यह महत्वपूर्ण है, ताकि किसी एक व्यक्ति के जाने की स्थिति में अगला व्यक्ति उसका कार्यभार सम्भाल सके और यह सुनिश्चित कर सके कि काम व्यवस्थित ढंग से हो रहा है। हमने यह भी महसूस किया कि जब एक विशिष्ट कार्यक्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने वाले वरिष्ठ होते हैं तो इसमें निवेश किया गया समय कहीं अधिक होता है। यह पिछले दशक में होने वाली हमारी वृद्धि के बारे में बताता है।’

किसी भी संगठन में लचीलापन को बनाने के लिए निदेशक स्तर पर सात से आठ लोगों का होना महत्वपूर्ण है।

साल 2009 से 2018 तक, अर्पण ने 40 हज़ार बच्चों, अभिभावकों, और शिक्षकों तक पहुंचने के लिए अपने व्यक्तिगत सुरक्षा शिक्षा कार्यक्रम को 20 गुना बढ़ाया। उनके द्वारा निपटाए गए मामलों की संख्या 30 गुना बढ़ गई, और उन्होंने पूरे भारत में शिक्षकों और समाजसेवी पेशेवरों के लिए प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण प्रदान करना शुरू कर दिया। 2015 में एक हज़ार लोगों के साथ काम करने के बाद, अब वे देशभर में 35 हज़ार लोगों को प्रशिक्षित करते हैं।

पूजा और हेमेश दोनों का ही कहना है कि बिना गुणवत्ता से समझौता किए एक ही समय में कई तरह के काम करने की अर्पण की योग्यता का कारण एक सशक्त नेतृत्व टीम है। कई वर्षों के अनुभव वाले टीम के सदस्यों में निवेश करने से उन्हें अपने काम की पूरी तरह से निगरानी करने, गंभीर रूप से सोचने और जमीन पर काम करने वाले लोगों की क्षमताओं के निर्माण में निवेश करने का अवसर मिला। उदाहरण के लिए:

  • अब सामग्री और पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए अर्पण की अपनी एक टीम है जिससे कि वे बच्चों को व्यक्तिगत सुरक्षा शिक्षा प्रदान करने के लिए सही, आयु-उपयुक्त पैडागॉजी बनाने में सक्षम हैं।
  • शोध, निगरानी एवं मूल्यांकन के लिए भी अलग से एक टीम है। ‘लगभग छह साल पहले हम निदेशक स्तर पर एक विशेषज्ञ को लेकर आए थे। और आज, हमारे शोध, निगरानी एवं मूल्यांकन टीम में कुल 13 सदस्य हैं। पहले यह कार्यक्रम टीम का ही हिस्सा था, हमने उसे अलग किया। अब, परिणामस्वरूप, लगातार हमारे पास कार्यक्रम रणनीति का समर्थन करने वाले प्रमाण मौजूद रहते हैं। इससे हमें यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि बाल यौन शोषण की समस्या का समाधान निकालने के प्रयास में हम सही रास्ते पर हैं।’
  • इसके अलावा, 2019 में, अर्पण ने एक फंडरेज़िंग निदेशक को भी शामिल किया। इसके पहले, हेमेश की मदद से पूजा अकेले ही इस काम को सम्भाल रही थीं। लेकिन निदेशक के आने के बाद, वे बेहतर दाता प्रबंधन और नए फंडर प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम हैं। इससे उनका बजट दोगुना हो गया है।

पूजा कहती हैं कि ऐसा इसलिए संभव है क्योंकि उनके पास केंद्रित और विविध पहलुओं का नेतृत्व करने के लिए अलग-अलग लोग उपलब्ध हैं। ‘प्रत्येक व्यक्ति सब कुछ करने का प्रयास न करके केवल एक या दो चीजों पर ध्यान दे रहा है, क्योंकि आप सभी काम नहीं कर सकते हैं।’ पूजा और हेमेश दोनों ही इस बारे में बात करते हैं कि सही वरिष्ठ लोगों को नियुक्त करना कितना महत्वपूर्ण है। हेमेश का कहना है कि ‘जब हम विभिन्न स्तरों पर भर्ती करते हैं तो सांस्कृतिक रूप से फिट होना महत्वपूर्ण होता है लेकिन वरिष्ठ लोगों की नियुक्ति के समय यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। उनके मामले में, नियुक्ति की प्रक्रिया गंभीर हो जाती है और इसमें बहुत अधिक समय भी लगता है।’ इसमें बोर्ड शामिल होता है, उम्मीदवार को टेस्ट्स देने पड़ते हैं और टीम और अपने भावी साथियों दोनों के साथ संवाद करना पड़ता है। पूजा कहती हैं कि ‘यह एक लंबी प्रक्रिया है, और कभी-कभी हम ग़लत भी होते हैं, लेकिन वरिष्ठों की नियुक्ति के ज़्यादातर मामलों में हम सौभाग्यशाली रहे हैं।’ अर्पण में, जूनियर टीम के सदस्य की नियुक्ति में औसतन दो से तीन सप्ताह का समय लगता है, वहीं टीम के किसी वरिष्ठ सदस्य की नियुक्ति प्रक्रिया छह से आठ सप्ताह का समय लेती है।

सीखने के अवसर प्रदान करना

अर्पण अपने सदस्यों को वार्षिक प्रशिक्षण भत्ता (ज्वाइनिंग के पहले वर्ष के लिए 5,000 रुपये और यह राशि हर साल बढ़ती है) प्रदान करता है जो टीम के सदस्यों को कौशल निर्माण में लगातार निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करता है। टीम का प्रत्येक सदस्य इस राशि का उपयोग संगठन में अपनी भूमिका से जुड़े किसी भी क्षेत्र में अपने कौशल विकास के लिए कर सकता है। इसके अलावा, अर्पण संगठन के भीतर ही सीखने के कई अवसरों का निर्माण करता है। इसी में से एक है टीम से केस स्टडी चर्चा करवाना। पूजा दसरा के नेतृत्व कार्यक्रम (डीएसआईएलपी) से एचबीआर केस अध्ययन की सुविधा प्रदान करती हैं, जिसका उपयोग टीम को नेतृत्व, प्रतिभा प्रबंधन, रणनीति और अन्य संगठनों से सीखने और अंतर्दृष्टि की एक श्रृंखला से अवगत कराने के लिए किया जाता है। पूजा बताती हैं कि, ‘हम वास्तव में इस बात में विश्वास करते हैं कि लोगों की क्षमताओं का निर्माण किए बग़ैर हम अच्छा काम नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा, इससे उन्हें अगले नेतृत्व वाले दिशा में आगे बढ़ने में मदद मिलेगी जिसकी वे अकांक्षा कर रहे हैं।’

वरिष्ठ नेता विविध विषयों पर पूरे संगठन के लिए क्षमता निर्माण सत्र आयोजित करते हैं।

संगठन मैनेजर पद पर काम करने वाले सदस्यों और वरिष्ठ नेताओं को कोचिंग भी प्रदान करता है। पूजा कहती हैं कि इससे उन्हें रोज़मर्रा के जीवन में लोगों से जुड़े मामलों, समस्याओं को सुलझाने में मदद मिलती है। इसके बदले में, वरिष्ठ नेता वित्त और सरकार के साथ फंडरेजिंग और, निगरानी और मूल्यांकन जैसे विविध विषयों पर पूरे संगठन के लिए क्षमता निर्माण सत्र आयोजित करते हैं। पूरा संगठन इनका लाभ उठा सकता है और इनका उद्देश्य उन्हें उन क्षेत्रों को समझने में मदद करना है जिन पर वे काम नहीं करते हैं।

अंत में, अर्पण टीम का मनोबल बढ़ाने के लिए कई रणनीतियों का उपयोग करता है। इनमें से कुछ में वार्षिक प्रशंसा दिवस (जहां टीम के सदस्य एक-दूसरे के योगदान को स्वीकार करते हैं और सराहना करते हैं), पुरस्कारों के माध्यम से अच्छे प्रदर्शन को पुरस्कृत करना, और सभी टीम के सदस्यों (क्षेत्र और कार्यालय दोनों में) को काम पर आने-जाने से संबंधित खर्चों को भुगतान करना शामिल है।

टेबल पर ब्लॉकस और चिट कार्ड्स_प्रतिभा प्रबंधन
संगठनात्मक मूल्यों की वास्तविक परीक्षा यह है कि आप उन्हें अपने दैनिक कार्यों और निर्णयों में प्रदर्शित कर रहे हैं या नहीं। | चित्र साभार: अर्पण

संस्कृति के महत्व को पहचानना

अर्पण टीम मूल्यों की संस्कृति में विश्वास करता है। हेमेश और पूजा दोनों ही, इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि आपके संगठनात्मक मूल्यों पर स्पष्ट होना और यह सुनिश्चित करना कितना महत्वपूर्ण है कि उन्हें लगातार दोहराया जाए। अर्पण में, प्रत्येक वर्ष, संस्कृति, मूल्यों और दर्शन पर एक टीमव्यापी सत्र आयोजित करते हैं। इन सत्रों में केवल पावरप्वाइंट प्रेजेंटेशन नहीं होता है। हेमेश कहते हैं कि ‘हम लोगों को समूहों में बांटते हैं और उन्हें जीवन से जुड़ी व्यावहारिक चुनौतियां देते हैं। हम इनका उपयोग यह देखने के लिए करते हैं कि लोग काम करते समय किन मूल्यों का प्रदर्शन करते हैं।’ इसके अतिरिक्त, जब कोई नया व्यक्ति शामिल होता है तो मूल्यों से जुड़ी बातों पर जोर दिया जाता है, और उसके बाद दोबारा तिमाही समीक्षाओं के दौरान भी इस पर चर्चा की जाती है।

हेमेश आगे कहते हैं कि ‘संगठनात्मक मूल्यों की वास्तविक परीक्षा यह है कि आप उन्हें अपने रोज़मर्रा के कामों और फ़ैसलों में प्रदर्शित कर रहे हैं या नहीं। क्या वे आपके काम का प्रमुख आधार बनते हैं? इसे लगातार व्यक्त करना और टीम के लिए इसे दोहराना महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि अर्पण की मूल्य संस्कृति के प्रति एक कर्मचारी की सहजता को भी संगठन के प्रदर्शन प्रबंधन मेट्रिक्स में शामिल किया गया है।’

चुनौतियों का सामना करना

लोगों में निवेश करने की चुनौतियां कम नहीं हैं। पूजा और हेमेश के अनुसार, अर्पण ने जिन दो सबसे बड़ी समस्याओं का सामना किया है और कर रहा है, वे व्यक्तिगत विकास और कंपन्सेशन का प्रबंधन करना है।

1. कर्मचारियों का विकास

एक चुनौती जिसका सामना कई संगठन अपने विकास के दौरान करते हैं, वह यह है कि जब वे लोग जो प्रारंभिक टीम का हिस्सा थे – संगठन के स्तंभ जो विरासत को आगे बढ़ाते हैं – संगठन के विस्तार के साथ कौशल का विकास नहीं कर पाते हैं तो क्या होता है?

यह वे कर्मचारी हैं जो अपने उद्देश्य और संगठन के प्रति समर्पित, वफादार और बहुत भावुक हैं। हालांकि, संगठन के आगे बढ़ने के साथ-साथ कुछ लोग अपने करियर में आगे बढ़ने और प्रबंधक बनने के लिए आवश्यक नए कौशल सीखने में कामयाब होते हैं। वहीं कई अन्य लोग भी संघर्ष करते हैं, और संगठन के भीतर करियर पथ की कल्पना करना मुश्किल हो जाता है। यह कर्मचारियों और लीडर्स, दोनों के लिए निराशाजनक हो सकता है। हेमेश कहते हैं कि ‘वे अगले स्तर तक पहुंचना चाहते हैं लेकिन पहुंचने के योग्य नहीं हैं क्योंकि संभव है कि उनकी क्षमता समाप्त हो गई है या वे खुद को अपग्रेड नहीं करना चाहते हैं। इसलिए आप उन्हें ग्रेड में ऊपर नहीं बढ़ा सकते हैं क्योंकि उनके पास उस स्तर पर काम करने के कौशल की कमी है।’

संगठन के आगे बढ़ने के साथ-साथ कुछ लोग अपने करियर में आगे बढ़ने और प्रबंधक बनने के लिए आवश्यक नए कौशल सीखने में कामयाब होते हैं।

पूजा बताती हैं कि, ‘हमने लोगों को विकल्प देने की कोशिश कि। उसमें से एक है दूसरी टीम के साथ काम करना ताकि उनकी भूमिका में बदलाव आए- इससे एकरसता को तोड़ने में मदद मिलती है। कई बार हमने यह भी महसूस किया कि जहां एक आदमी मैनेजर का पद सम्भालने के योग्य नहीं है वहीं व्यक्तिगत स्तर पर अधिक योगदान दे सकता है। इसलिए हम ऐसी भूमिकाएं बनाते हैं जिनसे वे ऐसा कर पाने में सक्षम होते हैं। हम ऐसी सभी चीजें करने का प्रयास करते हैं क्योंकि हम वास्तव में अपने कर्मचारियों को अपने साथ बनाए रखना चाहते हैं क्योंकि वे ही हमारी मूल संपत्ति हैं। लेकिन हमेशा ही ऐसा कर पाना हमारे लिए भी संभव नहीं होता है।’

हेमेश का कहना है कि वे टीम के इन सदस्यों को कौशल विकास के लिए उन्हें दिया जाने वाला वार्षिक प्रशिक्षण भत्ता का उपयोग करने के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं। ‘यह पेचीदा है। आप उन्हें खोना नहीं चाहते हैं लेकिन यह एक व्यक्ति की भी ज़िम्मेदारी होती है कि वे संगठनात्मक विकास और अवसरों के लिए आगे बढ़ें।’

2. वेतन

सेक्टर में वेतन का मानदंड तय करना एक मुश्किल काम है। कुछ भुगतान के अध्ययन हैं, लेकिन पूजा बताती हैं कि उनका उल्लेख करना कठिन है क्योंकि सेक्टर में मिलने वाला वेतन अक्सर संगठनों द्वारा किए जाने वाले कार्य, उनके स्थान, टीम और बजट आकार और कई अन्य मानकों के आधार पर काफी भिन्न होता है।

पूजा कहती हैं कि ‘यह देखने के लिए एक बेंचमार्क ढूंढना मुश्किल है कि आप मुआवजे के स्पेक्ट्रम पर कहां हैं। हमेशा ही कुछ ऐसे कर्मचारी होते हैं जो नाखुश रहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि दूसरे संगठन अधिक पैसा दे रहे हैं। अर्पण में लोगों का वेतन वास्तव में अच्छा है और हम स्पेक्ट्रम में सबसे ऊपर रहने की कोशिश करते हैं क्योंकि हमारे काम का क्षेत्र बहुत कठिन है लेकिन बावजूद इसके यह हमारे लिए एक लगातार बनी रहने वाली चुनौती है।’

हेमेश का कहना है कि वे उन संगठनों के साथ बेंचमार्क करने का प्रयास करते हैं जो बाल संरक्षण पर काम करते हैं। हालांकि उनमें से ज़्यादातर संगठन आकार में अर्पण के बराबर नहीं लेकिन बावजूद इसके ऐसा इसलिए है क्योंकि उनकी संरचना एक समान है। उनका यह भी कहना है कि ‘क्योंकि हम अपनी तुलना फ़ंडिंग संगठनों या सीएसआर के तहत मिलने वाले वेतन से नहीं कर सकते हैं।’ बावजूद इसके, अर्पण को बोर्ड की बैठकों में इतने सारे वरिष्ठ नेताओं और ‘उच्च’ वेतन की आवश्यकता पर विरोध का सामना करना पड़ा है। पूजा बताती हैं कि ‘वे हमारी तुलना अन्य काम करने वाले समाजसेवी संगठनों से करते हैं और उनका कहना है कि नेतृत्व स्तर पर हम लोगों को उच्च वेतन देते हैं। हमारे एक सीएसआर फ़ंडर ने इसे इस साल हमें फंड न देने के लिए एक कारण के रूप में इस्तेमाल किया।’

अन्य समाजसेवी संगठनों को अर्पण की सलाह

1. लोग ही आपकी सबसे बड़ी संपत्ति हैं और इस बात को पहचानें

पूजा कहती हैं कि अपने संगठन में लोगों की देखभाल करना आपकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। ‘जब आप अपनी टीम की देखभाल करते हैं, उनसे मिलने वाले परिणाम बेहतर होते हैं। देखभाल की यह संस्कृति उन लोगों तक पहुंचती है जिनके लिए आप काम करते हैं। अगर आप ज़मीन पर अच्छा काम करना चाहते हैं तो आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि आपके टीम के सदस्यों की देखभाल हो रही है और उनका सम्मान किया जा रहा है।’

2. वरिष्ठ नेतृत्व में निवेश करें

भले ही अधिक वेतन ही क्यों ना देना पड़े लेकिन बोर्ड में सही लोगों को शामिल करना बहुत अधिक महत्वपूर्ण होता है। पूजा का मानना है कि वरिष्ठ नेतृत्व वाले स्तर पर दिये जाने वाले वेतन (उदाहरण के लिए, कार्यक्रम निदेशक का वेतन) को कार्यक्रम बजट में शामिल किया जाना चाहिए। ‘हां, अलग-अलग लोगों को अलग-अलग वेतन देने से स्थिति थोड़ी सी बिगड़ ज़रूर सकती है लेकिन मौजूदा कर्मचारियों को अगले वित्तीय वर्ष में बराबर लाने के लिए बाजार में सुधार किया जा सकता है। आपके कार्यक्रम का खर्च बढ़ेगा लेकिन अगर आप चाहते हैं कि उसका प्रभाव हो तो ऐसा करना ही होगा। कुशल एवं अनुभवी लोगों की ज़रूरत है।’

एक बार जब ऐसे वरिष्ठ नेता बोर्ड में शामिल हो जाते हैं, तब संगठन को उन्हें बाक़ी की टीम से जोड़ने में, फ़ैसले लेते समय उनका समर्थन करने में समय का निवेश करना पड़ता है और साथ उन्हें वैसी सभी सहायताएं प्रदान करनी पड़ती है जिनसे अपनी भूमिकाओं को सफलतापूर्वक निभाने में मदद मिले।

3. संवाद के लिए एक खुले चैनल का निर्माण करें, लोगों से प्रतिक्रियाएं मांगे और उन पर काम करें

संगठन में प्रतिक्रियाओं के लेन-देन के लिए एक उचित प्रणाली, कर्मचारियों की बातों को सुनना और गंभीरता से उनके सुझावों को स्वीकार करना बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। ‘हम बेहतरी के लिए लगातार ही अपने टीम से उनकी प्रतिक्रियाएं मांगते रहते हैं। अगर हम एक बेहतर कार्यस्थल वाले और अपने कर्मचारियों को बनाए रखने वाली समाजसेवी संस्था बनने का इरादा रखते हैं, तो उसके लिए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि वहां का वातावरण ऐसा हो कि लोगों को उस संगठन से जुड़कर काम करने में मज़ा आए। टीम से निरंतर संवाद करते रहना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। साथ ही उन्हें समय-समय पर बताया जाना चाहिए कि ‘हमने इन सुझावों पर काम किया है और अब हम इस स्थिति में हैं।’ अर्पण ने इन काम को विभिन्न तरीक़ों से किया है।’

जैसे ग्रेट प्लेस टू वर्क पहल में एक गुमनाम सुझाव/फीडबैक फॉर्म होता है, पूजा अर्पण में अलग से एक गुमनाम फीडबैक फॉर्म की व्यवस्था रखती हैं। इसके अलावा वह साल में एक बार पूरी टीम के साथ लेवल स्किप करती हैं। ‘पिछले साल हमारे एचआर सलाहकार ने प्रबंधक और निदेशक स्तर पर एक फीडबैक प्रक्रिया का आयोजन भी किया था। इसलिए निरंतर फीडबैक की व्यवस्था लागू की गई और हम लगातार टीम के लोगों की बातें सुनने लगे।’

4. मानव संसाधन प्रक्रियाओं और नीतियों को लागू करें

छोटे आकार के संगठनों में, गतिविधियों और कार्य के लिए ठोस संरचना न होने पर भी चीज़ें काम करती हैं। लेकिन पूजा का कहना है कि जैसे ही आपका विस्तार होने लगता है और आपके कर्मचारियों की संख्या 20 तक पहुंच जाती है, तब एचआर नीतियों और संचार प्रक्रियाओं को लागू करना महत्वपूर्ण हो जाता है।

‘मुझे लगता है कि कर्मचारियों की सबसे बड़ी नाराजगी यह हो सकती है कि ‘यह मेरे लिए उचित नहीं है।’ लेकिन जब आपके पास एक तय प्रक्रिया और नीति होती है, तब बाहर ‘ऐसा सब के लिए है’ वाला संदेश जाता है। यह स्पष्टता बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। चाहे इसका संबंध इंडक्शन, भर्ती या काम से निकाले जाने जैसी बातों से हो, या फिर छुट्टियों या भुगतान से- सभी कुछ को एचआर दस्तावेज़ों में व्यवस्थित ढंग से दर्ज किया जाना चाहिए ताकि सभी तक इसकी पहुंच हो सके। साथ ही एक निश्चित समयांतराल पर इसकी समीक्षा की जानी चाहिए और लोगों को इसके बारे में बताया जाना चाहिए।’

दाताओं के लिए अर्पण का सुझाव

1. काम को देखें ना कि वेतन को

पूजा का कहना है कि फंडर्स को वेतन में गड़बड़ी करने की बजाय उस काम पर ध्यान देना चाहिए जो एक संगठन कर रहा है, यह सवाल करते हुए कि उनके पास इतने सारे वरिष्ठ नेता क्यों हैं, या उन्हें प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण पर खर्च करने की आवश्यकता क्यों है। ‘इस मामले में हम सौभाग्यशाली हैं क्योंकि हमारे पास हमारे वेतन को लेकर सवाल करने वाले फ़ंडर अधिक संख्या में नहीं हैं। लेकिन मैं देखती हूं कि यह मामला बढ़ता ही जा रहा है, विशेष कर सीएसआर फ़ंडरों के मामले में। मैं उनसे यह कहना चाहती हूं कि ‘वेतन पर सवाल ना उठाएं। इसके बदले, उस काम को देखें जो किया जा रहा है। अगर आपको लगता है कि दोनों में किसी तरह का तालमेल नहीं है, यह कि काम अच्छा या प्रभावी नहीं है लेकिन इसके बावजूद भी संगठन अच्छा वेतन दे रहा है, तब आपको सवाल करने का पूरा हक़ है। लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो कृपया संगठन के फ़ैसले पर भरोसा बनाए रखें।’ इसके अलावा, बड़े पैमाने पर किए जा रहे काम को चलाए रखने के लिए किसी संगठन की टीम के कौशल और क्षमताओं को बढ़ाने की ज़रूरत होती है। इसलिए टीम की क्षमता निर्माण में निवेश करना भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है। इसका मतलब है कि फंडर्स को प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण पर अपने अनुदान प्राप्तकर्ताओं की लागत का अनुमान नहीं लगाना चाहिए।’

2. लंबीअवधि वाली फंडिंग में निवेश करें

एक बार जब कोई दानकर्ता किसी समाजसेवी संगठन के साथ काम कर लेता है और उनके काम के प्रभाव को देख लेता है, तब उन्हें लंबी-अवधि और मुख्य फ़ंडिंग के बारे में सक्रिय रूप से सोचना चाहिए। ऐसा करने से उन्हें क्षमता और ख़र्चों को बेहतर तरीक़े से योजनाबद्ध करने में सहायता मिलती है। यह तब और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है जब कोई संगठन एक मज़बूत नेतृत्व वाले टीम का निर्माण करना चाहता है।
पूजा कहती हैं कि ‘अगर आप बोर्ड में किसी वरिष्ठ सदस्य को रखना चाहते हैं तब एक साल की फ़ंडिंग मददगार नहीं होगी। फंडर्स को कम से कम तीन वर्षों की प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए। ऐसा करने से हम ऐसे अनुभवी लीडर्स को नियुक्त कर सकते हैं जिनके अंदर संगठन को आगे स्तर पर ले जाने की क्षमता होती है।’

पूजा तपारिया भारत में बाल यौन शोषण के उन्मूलन की दिशा में काम करने वाली एक समाजसेवी संस्था अर्पण की संस्थापक और मुख्य कार्यकारी निदेशक हैं। वे सोल के एआरसी के बोर्ड में भी हैं जो संघर्षरत शिक्षार्थियों द्वारा अनुभव की जाने वाली चुनौतियों का समाधान करता है और उनके जीवन परिणामों को बेहतर बनाने की दिशा में काम करता है।

हेमेश शेठ एक वरिष्ठ मैनेजमेंट प्रोफेशनल हैं जिनके पास मजबूत सेल्स एंड डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क, टीम प्रबंधन, व्यवसाय विकास, नेतृत्व और संगठन निर्माण में 25 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उनके पास व्यवसाय योजना, संचालन और टीम निर्माण का व्यावहारिक अनुभव है। वे एक दशक से अधिक समय से अर्पण के साथ जुड़े हुए हैं और सहायता संचालन टीम का नेतृत्व करते हैं, जिसमें वित्त, मानव संसाधन, प्रशासन और आईटी कार्य शामिल हैं।

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लेखक के बारे में
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स्मरिनीता शेट्टी

स्मरिनीता शेट्टी आईडीआर की सह-संस्थापक और सीईओ हैं। इसके पहले, स्मरिनीता ने दसरा, मॉनिटर इंक्लूसिव मार्केट्स (अब एफ़एसजी), जेपी मॉर्गन और इकनॉमिक टाइम्स के साथ काम किया है। उन्होनें नेटस्क्राइब्स – भारत की पहली नॉलेज प्रोसेस आउटसोर्सिंग संस्था – की स्थापना भी की है। स्मरिनीता ने मुंबई विश्वविद्यालय से कम्प्युटर इंजीनियरिंग में बीई और वित्त में एमबीए की पढ़ाई की है।

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देवांशी वैद

देवांशी वैद आईडीआर में सह-संस्थापक और निदेशक हैं, जहां वे ऑडियंस ग्रोथ, प्रसार, वैश्विक साझेदारी और प्रतिभा प्रबंधन से जुड़ी ज़िम्मेदारियां सम्भालती हैं। आईडीआर की शुरुआत के बाद से, पिछले छह वर्षों में उन्होंने संगठन की डिजिटल ऑडियंस को 82 गुना बढ़ाकर उसे 1 करोड़ प्रति माह तक पहुंचा दिया है जिससे यह एशिया भर में सबसे बड़ा स्वतंत्र मीडिया प्लेटफार्म बन गया है।

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