ब्रिजस्पैन की एक रिपोर्ट जो बताती है कि कैसे देश के सीमांत किसान जिनमें मुख्यरूप से आदिवासी, दलित और महिला किसान शामिल हैं, जलवायु संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।
मज़बूत लग रही सरकारी नीतियों के बावजूद, किसानों के पास मोटे अनाजों को उगाने, प्रोसेसिंग करने और उन्हें संग्रहित करने के लिए ज़रूरी सुविधाएं और समर्थन नहीं हैं।
भारत में पायलट प्रोजेक्ट के ज़रिए सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन प्रक्रिया की व्यवहारिकता का आकलन किया जाता रहा है। यहाँ पीएम कुसुम योजना पर किसानों द्वारा मिलने वाली संभावित प्रतिक्रियाओं का पता लगाने के लिए एक एबीएम अभ्यास का आयोजन किया गया है।
किसानों की आय उल्लेखनीय रूप से बढ़ाने के लिए किसान उत्पादक संगठनों (एफ़पीओ) को मार्केट-रेडी उत्पाद का मॉडल विकसित करने और विकेंद्रीकृत उत्पादन पर ज़ोर देने की ज़रूरत है।
भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली मोटे अनाजों (ज्वार, बाजरा, रागी वग़ैरह) को आम लोगों तक पहुंचाने में कैसे मददगार हो सकती है और इस राह की चुनौतियां क्या हैं?
बीते कई सालों से वर्षा की अनियमितता की वजह से फसल-चक्र बिगड़ा है और किसानों को भारी नुक़सान उठाना पड़ा है। इसके चलते अब वे अपनी ज़मीनें निजी कंपनियों को देने पर मजबूर हो रहे हैं।