कर्नाटक के चिक्काबल्लापुरा जिले में स्थित डोड्डाम्मना केरे झील, 400 साल से अधिक पुरानी है। यह एक मानव निर्मित झील है और यह विजयनगर साम्राज्य के शासनकाल में बनाई गई 4000 झीलों में से एक है। साम्राज्य द्वारा विकसित जल भंडारण और संचयन प्रणाली के लिए महत्वपूर्ण होने के अलावा इन झीलों से पशुपालन और खेती में भी मदद मिलती थी। हालांकि, जल निकायों को ऐसे प्रबंधकों की भी ज़रूरत थी जो इनकी और इनसे जुड़े कामकाज की देखरेख कर सकें, इस तरह नीरुगंती (जल प्रबंधक) का पेशा अस्तित्व में आया।
सदियों तक इन्हीं नीरुगंतियों ने पीढ़ी दर पीढ़ी जल प्रबंधन के ज्ञान को आगे बढ़ाने का काम किया। वे अपने समुदाय की आजीविका और बेहतरी के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। इसके अलावा इन झील से खेती वाली ज़मीन तक सिंचाई का पानी पहुंचाने की ज़िम्मेदारी भी इनकी ही होती है। पेशे से नीरुगंती रहे 70 वर्षीय वेंकटप्पा बताते हैं कि ‘पानी हमेशा से एक सामुदायिक संसाधन है और इसे प्रत्येक व्यक्ति के लिए सुलभ होना चाहिए। इसलिए हम जल प्रवाह को नियंत्रित करते हुए यह सुनिश्चित करते हैं कि किसी भी प्रकार का कुप्रबंधन ना हो।’
वे आगे जोड़ते हैं कि ‘पहले, पानी का उपयोग नयायपूर्ण तरीके से किया जाता था और किसान इसके बंटवारे को लेकर एकजुट थे। हम पशुओं के पीने के लिए पानी बचाते थे। हम लोगों ने झील की भौगोलिक स्थिति और भूमि की निकटता के आधार पर ऊंचे क्षेत्रों में अधिक और निचले क्षेत्रों में जल का प्रवाह कम रखते थे। यहां तक कि जल का स्तर कम होने के बावजूद, हम यह सुनिश्चित करते थे कि सभी किसानों को पर्याप्त जल मिले।’
वर्षा के आधार पर, नीरुगंती किसानों को विभिन्न फसलों की खेती और स्थानीय उपभोग के लिए उपयुक्त कम जल-लागत वाली और स्वदेशी किस्मों को चुनने की सलाह देते थे। झील व्यवस्था की देखरेख भी नीरुगंती के निर्देशन में ही किया जाता था। इसमें विशेष रूप से टैंक से गाद निकालना, कटाव को कम करने और पानी को साफ करने की प्रक्रिया में सुधार लाने के लिए किनारों पर पर पौधे लगाना और फीडर चैनल का रखरखाव करना शामिल है।
जैसा कि वेंकटप्पा कहते हैं ‘यदि नीरुगंती का नियंत्रण समाप्त हो जाएगा तो ना तो झीलों में पानी बचेगा और ना ही किसानों के लिए फसल।’ जहां, झीलों की कैस्केडिंग प्रणाली (एक बड़े जलाशय में बहने वाले छोटे टैंकों का एक नेटवर्क जो भविष्य की खपत के लिए वर्षा जल को संग्रहीत कर सकता है) को इस क्षेत्र की जीवन रेखा के रूप में जाना जाता है, वहीं नीरुगंती इसकी जीवन शक्ति है।
लेकिन गांवों में अब प्रशासनिक प्रणालियों में नीरुगंती नहीं हैं, इसलिए इन जल प्रबंधकों का महत्व धीरे-धीरे कम हो रहा है, जिससे पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों को खोने का ख़तरा बढ़ता जा रहा है। इससे जल-संबंधी विवादों में भी वृद्धि हुई है और पानी के स्थायी उपयोग के लिए खतरा पैदा हो गया है।
कैटलिन ब्लड मिच चार्टर स्कूल में कार्यकारी निदेशक हैं। अभिराम नंदकुमार एपीमोलर-मार्सक में एक वरिष्ठ लेखक हैं।
यह मूल रूप से नेटिव पिक्चर पर प्रकाशित एक लेख का संपादित अंश है।
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