2008 में मैं सलीधना गाँव में था। यह मध्य प्रदेश के खांडवा जिले के खलवा प्रखण्ड में है। इस गाँव में कई स्वदेशी समुदाएँ बसती हैं।
गाँव के लोग मुझे बरसाती नदी (बारिश के पानी से बनने वाली नदी) लेकर गए जो उनके गाँव से कई मीटर नीचे थी। मुझे बताया गया कि नदी से बर्तनों में पानी भर कर ऊपर लाते समय कई औरतें फिसलने की वजह से घायल हो जाती हैं। इस समस्या को सुलझाने के लिए हम लोगों ने सलीधना में क्लौथ फॉर वर्क कार्यक्रम शुरू किया। इसके तहत हमनें नदी तक आसानी से पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ बनाने का फैसला किया। यह एक अच्छी योजना लग रही थी।
नदी से वापस गाँव आने के दौरान मैंने एक बुजुर्ग से पूछा कि ऐसी कौन सी समस्या है जिसका समाधान तुरंत होना चाहिए। उनका जवाब था, “हम एक कुआं चाहते हैं।” मैं उनका जवाब सुनकर चौंक गया था और इसलिए मैंने उनसे फिर पूछा “एक कुआं क्यों? यह एक छोटा सा गाँव है। सीढ़ियाँ बन जाने के बाद आपलोग नदी किनारे लगाए गए हैंडपंप तक आसानी से जा सकेंगे। नदी का इलाका पानी सोखने वाला है इसलिए हैंडपंप के सूखने की संभावना नहीं के बराबर है।”
उन्होनें मेरी बात ध्यान से सुनी और फिर मुस्कुराते हुए कहा, “बेटा, आप जो कह रहे हैं वह सही है। लेकिन मॉनसून में नदी का पानी बहुत ऊपर तक आ जाता है इसलिए हम उस समय हैंडपंप तक नहीं जा पाएंगे।” औपचारिक शिक्षा से मिले मेरे सभी सिद्धान्त उसी समय ध्वस्त हो गए। पानी वाले उस इलाके में पहले से ही एक पंप लगा था और हम लोग सीढ़ियाँ बनाने के बारे में सोच रहे थे। लेकिन वस्तुस्थिति यह थी कि उनकी पानी की समस्या को ख़त्म करने के लिए यह कदम पर्याप्त नहीं था।
सिद्धांतो और अपने कई अनुभवों के आधार पर हम लोग यह सोच लेते हैं कि उच्च जल स्तर वाले इलाके में पंप के होने से पानी की समस्या नहीं होगी। लेकिन ऐसा हमेशा ही हो जरूरी नहीं है। कई मामलों और इलाकों में पंप होने के बावजूद लोगों को पानी नहीं मिल पाता है। अंतत: हमने गाँव के लोगों के निर्देश के अनुसार वहाँ एक कुआँ खुदवाया। क्योंकि उनकी बातों को सुनने और समझने के बाद हमें एहसास हो गया कि उन्हें सच में कुएँ की जरूरत है और यही उस समस्या का समाधान भी था। जैसा कि गाँव वालों ने हमें बताया था खुदाई करने पर हम लोगों को जमीन से 18 फीट नीचे ही पानी का स्तर मिल गया था।
अंशु गुप्ता सामुदायिक विकास के क्षेत्र में काम करने वाली स्वयंसेवी संस्था गूंज के संस्थापक-निदेशक हैं।
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