December 15, 2023

एनजीओ में काम करने वालों का… दरद ना जाने कोय

विकास सेक्टर में काम करने वालों को लेकर परिवार, समाज और बाक़ी लोगों की सोच और उनके सच में कितना अंतर होता है।
8 मिनट लंबा लेख

विकास सेक्टर में काम करने वाले कभी अपने काम के बारे में एक शब्द या एक लाइन में नहीं बता पाते हैं। लंबा और विस्तार से समझाने के बाद भी आसपास ऐसी ही लोग ज़्यादा दिखते हैं जिनको यह पता नहीं चलता कि वे करते क्या हैं। ऐसी ही कुछ दुविधाओं का ज़िक्र नीचे हैं, उम्मीद है कि इन उदाहरणों में से बहुत कम आपके हिस्से आए हों। (लेकिन ऐसा होगा नहीं, ये आपको भी पता है, है न!)

1. जो फंडर को आसान लगता है, वो हमको बहुत ज़ोर से लगता है… आह!

सोच

जादुई ट्रिक्स दिखाता अक्षय_समाज और सोशल वर्कर

सच

रोलर को रोकता अक्षय_समाज और सोशल वर्कर

2. सरकार को हम जो दिखाना चाहते हैं, वह उसके अलावा सबकुछ देखती है…क्यों? क्यों? क्यों?

सोच

प्रोटेस्ट करते अक्षय एवं साथी_समाज और सोशल वर्कर

सच

सड़क पर बैठे कुछ लोग एवं अक्षय_समाज और सोशल वर्कर

3. दोस्त ने बस ये पूछा था कि मैं करता क्या हूं… और मैं –

सोच

कुछ लोगो के साथ अक्षय_समाज और सोशल वर्कर

सच

लोगो के साथ बातचीत करता अक्षय_समाज और सोशल वर्कर

4. आपके आसपास, मुहल्ले-पड़ोसियों और समाज वालों की नज़र में 

सोच

हाथ जोड़ता अक्षय_समाज और सोशल वर्कर

सच

मेनेजर से विनती करता अक्षय_समाज और सोशल वर्कर

5. जब मैनेजर काम बताए तब –

सोच

सड़क पर मायूस बैठा अक्षय_समाज और सोशल वर्कर

सच

कुछ पूछने की मुद्रा मे अक्षय_समाज और सोशल वर्कर

6. ‘आख़िर तुम करते क्या हो?’ का सही जवाब –

सोच

ऑटो से उतरता अक्षय_समाज और सोशल वर्कर

सच

हँसता हुआ अक्षय_समाज और सोशल वर्कर

लेखक के बारे में
राकेश स्वामी-Image
राकेश स्वामी

राकेश स्वामी आईडीआर में सह-संपादकीय भूमिका मे हैं। वह राजस्थान से जुड़े लेखन सामग्री पर जोर देते है और हास्य से संबंधित ज़िम्मेदारी भी देखते हैं। राकेश के पास राजस्थान सरकार के नेतृत्व मे समुदाय के साथ कार्य करने का एवं अकाउंटेबलिटी इनिशिएटिव, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च मे लेखन एवं क्षमता निर्माण का भी अनुभव है। राकेश ने आरटीयू यूनिवर्सिटी, कोटा से सिविल अभियांत्रिकी में स्नातक किया है।

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