August 1, 2024

ज़मीनी कार्यकर्ता तकनीक का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं?

डेटा इकठ्ठा करने के लिए तकनीक को अपनाना ज़मीनी कार्यकर्ताओं के लिए उनके काम की योजना बनाने और रिपोर्ट बनाने में फायदेमंद है।
6 मिनट लंबा लेख

विकास सेक्टर में संस्थाओं के लिए उनके काम से जुड़ा डेटा बेहद महत्वपूर्ण होता है। यह न केवल उनके खुद के लिए उनके काम की दिशा तय करने में मददगार होता है बल्कि दूसरे हितधारकों को उनके काम का प्रभाव दिखाने वाला एक बेहतरीन साधन होता है। इसलिए संस्थाएं अक्सर फील्ड में अपने ज़मीनी कार्यकर्ताओं के माध्यम से डेटा एकत्रित करने का काम करती हैं। फ़ील्ड पर यह किस तरह से एकत्रित किया जाना चाहिए, डेटा के लिहाज़ से किन सवालों के जवाब ज़रूरी हैं, समुदाय से ज़मीनी दिक्कतों की जानकारी के लिए क्या बात करनी है, यह तमाम जानकारियां ज़मीनी कार्यकर्ता के काम से जुड़ी होती हैं।

आमतौर पर संस्थाएं फील्ड में सर्वे डेटा इकठ्ठा करने का काम कागज़ पर ही करती हैं। इस प्रक्रिया में सबसे बड़ी समस्या यह रहती है कि डेटा प्राप्त होने से लेकर इसको अंतिम रूप देने तक की प्रक्रिया में अनगिनत लोगों को जुड़ना पड़ता है। साथ ही, इसमें अधिक समय भी लगता है। इस वजह से इसका प्रभाव संस्था की अन्य प्राथमिकताओं पर पड़ता है। फिर भी संस्थाएं यही तरीक़ा अपना रही हैं क्योंकि उनके पास तकनीक से जुड़े उपकरणों पर निवेश करने के लिए विशेषज्ञता या संसाधन नहीं होते हैं। हालांकि कुछ समाजसेवी संस्थाएं अपने काम में तकनीक का इस्तेमाल कार्य कुशलता, निगरानी एवं मूल्यांकन (एम एंड ई) करने और अपने काम को बेहतर तरीके से करने के लिए भी कर रही हैं।

संस्थाओं को डिजिटाइज करना या तकनीक को अपनाना, ज़मीनी कार्यकर्ताओं की कार्य क्षमता को लगातार बढ़ाने का एक बेहतरीन तरीक़ा है। मुंबई की सोसाइटी फॉर न्यूट्रिशन, एडुकेशन एंड हैल्थ एक्शन (स्नेहा) संस्था का उदाहरण लेते हैं कि कैसे इन्होंने अपने ज़मीनी कार्यकर्ताओं की मदद और तकनीक की रणनीति से संस्था का काम और भी आसान बनाया है। स्नेहा संस्था मातृ स्वास्थ्य, शिशु कल्याण और किशोर बच्चों के साथ काम करती है। इस संस्था के कार्यकर्ता मुंबई शहर के विभिन्न इलाक़ों की नगर पालिकाओं में घरों का पंजीकरण करते हैं। डेटा संग्रह के माध्यम से वे घरों में गर्भवती महिलाओं और पांच साल की उम्र तक के बच्चों के समग्र स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति का ध्यान रखते हैं। डेटा के आधार पर वे यह मूल्यांकन करते हैं कि महिलाओं और बच्चों को कब मदद की ज़रूरत होगी।

इस लेख के लिए हमने स्नेहा के मानखुर्द इलाके के जनता नगर केंद्र में काम कर रहे कार्यकर्ताओं से यह जानने के लिए बात की कि उन्हें तकनीकी तरीके से डेटा इकठ्ठा करने से कितना फायदा मिल रहा है? यह प्रक्रिया उनके लिए कितनी मुश्किल या आसान है, और इसका इस्तेमाल वे अपने खुद की रिपोर्टिंग से जुड़ी कार्य योजना बनाने में कैसे करते हैं?

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संस्थाओं को डिजिटाइज करना या तकनीक को अपनाना, ज़मीनी कार्यकर्ताओं की कार्य क्षमता को लगातार बढ़ाने का एक बेहतरीन तरीक़ा है। | चित्र साभार: गेट्स आर्काइव / सौम्या खंडेलवाल

संस्था में तकनीक विकसित करने की शुरुआत

डेटा इकठ्ठा करने के लिए स्नेहा संस्था, साल 2011 से कॉमकेयर (कॉमकेयर) ऐप का इस्तेमाल कर रही है। इसी के ज़रिए केंद्र के कम्यूनिटी ऑर्गनाइज़र घरों का पंजीकरण करते हैं। जनता नगर केंद्र में कम्यूनिटी ऑर्गनाइज़र ज़ैनब शेख़ और मंगला मोरे बताती हैं कि वे दोनों ही पिछले 10 सालों से स्नेहा का हिस्सा हैं और शुरुआत से ही डेटा संग्रह के लिए कॉमकेयर का इस्तेमाल कर रही हैं। इसका फायदा उन्हें कुछ इस तरह से मिल रहा है:

1. गलतियां कम होने की संभावना: ऐप के इस्तेमाल से डेटा संग्रह में गलती करने की गुंजाइश कम हो जाती है। ऐप के माध्यम से प्रतिभागी के लिए वह फॉर्म ऐप में खुलेगा ही नहीं जो उस प्रतिभागी के लिए लागू नहीं होता है। जैसे अगर कोई महिला पहले गर्भवती है और जब उसका बच्चा हो जाता है, इन दोनों स्थितियों के लिए अलग-अलग फॉर्म हैं।

2. समय की बचत: ऐप में सीधा जानकारी भरना समय भी बचाता है। प्रोग्राम ऑफ़िसर और सुपरवाइज़र रशीद शाह कहते हैं, “हमें इसमें कुछ टाइप भी नहीं करना पड़ता। सभी ऑप्शन एक लिस्ट में आ जाते है जिनमें से हमें केवल चुनना होता है। साथ ही, हम बिना नेटवर्क वाले क्षेत्र में ऑफलाइन डेटा सेव कर सकते है। केंद्र पर वापस आकर हम वाईफाई से डेटा सिंक कर लेते हैं तो दो बार जानकारी लिखने की ज़रूरत नहीं पड़ती है।” इससे डेटा में गलती कम होती है, सभी ज़रूरी जानकारी एक बार में मिल जाती है और डेटा अधूरा नहीं रहता है।

3. उचित प्रयास: पेपर सर्वे में कार्यकर्ताओं को कई प्रकार की जानकारी याद करनी पड़ती है। स्नेहा में भी कम्यूनिटी ऑर्गनाइज़र्स को पहले बीमारियों की श्रेणियां याद रखनी पड़ती थीं। मंगला कहती हैं, “जब पहले मैं बच्चों की ऊंचाई और वज़न करती थी तब मुझे ये अपनी किताब में लिखना पड़ता था और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के ग्रोथ चार्ट से देखना पड़ता था की वे किस ग्रेड में आते है। अब कॉमकेयर खुद इस जानकारी का हिसाब करके हमें लाभार्थी का ग्रेड बता देता है।”

तकनीक से मौजूदा स्थिति का आकलन करना ज्यादा आसान

तकनीक का एक सबसे बड़ा यह लाभ है कि इससे न केवल जल्दी डेटा मिलता है बल्कि इससे अन्य हितधारकों को फील्ड की मौजूदा स्थिति से जल्दी और आसानी से अवगत कराया जा सकता है। यह काम मैनुअल तरीक़े से डेटा इकट्ठा करके करना संभव नहीं है। इस प्रक्रिया में जब महीनों बाद फाइनल डेटा हितधारकों के पास जाता है, तब तक ज़मीनी परिस्थितियां काफ़ी बदल जाती हैं। इस वजह से संस्थाएं अपनी बात मजबूती से नहीं रख पाती हैं।

स्नेहा में डाटा रिपोर्टिंग और विज़ुअलाइज़ेशन के लिए पहले टैबल्यू डैशबोर्ड का इस्तेमाल होता था। इसमें दिक्कत ये आती थी कि ये फ़ील्ड कार्यकर्ता को महीने के अंत में डेटा दिखाता था। साथ ही, इसका इस्तेमाल करने के लिए लैपटाप चाहिए होता था और सुपरवाइज़र को कम्यूनिटी ऑर्गनाइजर से डेटा साझा भी करना पड़ता था। इसका हल निकालने के लिए स्नेहा ने 2023 में सुपरसेट का इस्तेमाल करना शुरू किया जो डेटा विज़ुअलाइज़ेशन के काम आता है। कॉमकेयर का इस्तेमाल जहां डेटा संग्रह के लिए किया जाता है, वहीं सुपरसेट उस सारे डेटा का मूल्यांकन करता है। सुपरसेट में टीम अपने टैबलेट पर एक क्लिक से ही डैशबोर्ड देख पाती है और ये हर दिन अपडेट होता है।

रशीद कहते हैं, “सुपरसेट कॉमकेयर में अब डेटा सेव होते ही अगले दिन अपडेट हो जाता है तो हम रोज़ का वर्क प्लान बना सकते हैं। इससे मैं सबका परफॉर्मेंस भी ट्रैक कर पाता हूं कि कौन कितना प्रतिशत काम कर पाया है।”

डेटा, काम की प्लानिंग में कैसे मदद करता है?

अक्सर डेटा का इस्तेमाल संस्थाएं अपने त्रैमासिक या सालाना प्रभाव को समझने और परखने के लिए भी करती हैं लेकिन जमीनी कार्यकर्ताओं के लिए यह उनकी दिनचर्या का हिस्सा है।

ज़ैनब बताती हैं, “गर्भवती महिला को कब दोबारा मिलने जाना है, किसी महिला का पंजीकरण हुआ है या नहीं, कौन सी महिला को किस तरह की दिक्कत के लिए डॉक्टर के पास ले जाना है, ऐसी अनेक जानकारियां हम कॉमकेयर में देख सकते हैं। हमारे पास एक समय में कम से कम 250-300 महिलाएं होती हैं तो हर बार ऐसी जानकारी याद रखना या कागजों से ढूंढकर निकालने में ज़्यादा समय ले सकता है।” ये सब जानकारी स्नेहा संस्था की फील्ड के लिए हर दिन, हफ्ते और महीने की प्लानिंग में बेहद लाभकारी है।

कॉमकेयर ऐप का साथ देने के लिए स्नेहा ने साल 2022 में इसमें शेड्यूलर भी जोड़ दिया। बिना शेड्यूलर के कार्यकर्ताओं को ये भी याद रखना पड़ता है कि उन्हें फिर से कब और किसका दौरा करना है, कौन सी जानकारी लेनी है, आदि। यह सब उन्हें कागजों में भी खोजना पड़ता है जो बहुत मुश्किल है। अनुसंधान एवं शिक्षण प्रबंधक शीतल राजन कहती हैं, “हमने ऐप में अपने प्रोग्राम के नियम के मुताबिक प्रजनन आयु की महिलाओं से हर महीने मिलने और हर 15 दिन में कुपोषित शिशुओं की जांच से जुड़ी सूचना देने वाला फीचर कॉमकेयर ऐप में डाला है। अगर कोई महिला हाइ-रिस्क जैसे अनीमिया (खून की कमी), हाइ-बीपी (उच्च रक्तचाप) आदि में होती है तो उनकी देख-रेख की ज़रूरत के अनुसार ऐप हर हफ़्ते कम्यूनिटी ऑर्गनाइज़र को दौरा करने की सूचना देता है।”

रशीद इसमें जोड़ते हैं, “जब पहले ऐसे शेड्यूलर नहीं होते थे तो हमें स्वयं ही दौरा करने से जुड़ी सभी तरह की चीजें ध्यान में रखनी पड़ती थी।”

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सुपरसेट में टीम अपने टैबलेट पर एक क्लिक से ही डैशबोर्ड देख पाती है और ये हर दिन अपडेट होता है। | चित्र साभार: स्नेहा

डेटा के माध्यम से कार्य को लेकर स्पष्ट भूमिका

अक्सर इस बात से कार्यकर्ताओं को भ्रम हो जाता है कि उन्हें किस तरह के मापदंडों पर रिपोर्ट करना है। साथ ही, उन्हें यह भी याद रखना पड़ता है कि उन्होंने क्या काम किए। इस तरह के रोज़ाना डेटा विज़ुअलाइज़ेशन से कार्यकर्ताओं के लिए रिपोर्टिंग भी आसान हो जाती है। मंगला कहती हैं, “हमें हर समय याद नहीं रखना पड़ता कि हमने कितना काम किया है। हमारे सुपरवाइज़र भी ये स्वयं देख सकते है।”

शीतल कहती है कि “प्लानिंग इसीलिए भी आसान है क्योंकि सुपरसेट में हर किसी का डेटाबेस उनके काम के अनुसार ही दिखता है जो यह सुनिश्चित करता है कि काम के बारे में कोई भ्रम और काम की अधिकता ना हो। ज़ैनब और मंगला एक दूसरे के डेटा को नहीं देख सकते हैं। इससे अपने डेटा को लेकर ओनरशिप भी बढ़ती है कि मैं इसके लिए जिम्मेदार हूं। साथ ही, इनके सुपरवाइज़र रशीद का डैशबोर्ड भी कम्यूनिटी ऑर्गनाइज़र से अलग दिखता है। वे इन दोनों का डेटा देख सकते हैं और उन्हें फीडबैक दे सकते हैं।”

टीम को निरंतर समर्थन और ट्रेनिंग ज़रूरी

कई बार तकनीक से जुड़े काम में कई तरह की मुश्किलें आ जाती हैं। मसलन, किसी सवाल में कोई समस्या आना, एक सवाल से दूसरे सवाल तक बढ़ने में दिक्कत पेश आना या फिर डेटा इकठ्ठा हो जाने के बाद उसके सही तरह से सबमिट न होने से जुड़ी कई समस्याएं। इससे निपटने के लिए सबसे ज़रूरी है कि टीम के साथ नियमित कम्युनिकेशन हो ताकि तकनीकी समस्याओं का जल्दी से समाधान हो पाए। 

मंगला कहती हैं, “जब से हमने इस तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया है, तब से हमारी हर नए अपडेट को लेकर ट्रेनिंग होती है। हमें हर नए बदलाव के बारे में जानकारी दी जाती है और बताया जाता है कि वे हमारे काम पर कैसे असर डालेगा। अगर हमारे कोई सवाल होते हैं तो व्हाट्सएप्प ग्रुप पर हम अपने सवाल पूछ सकते हैं। ऐप अपडेट करने के लिए भी हमें ईमेल आते हैं जिनका हमें ध्यान रखना होता है।”

शीतल जोड़ती हैं कि व्हाट्सएप्प ग्रुप में तकनीक से जुड़ी टीम और कम्यूनिटी ऑर्गनाइज़र भी शामिल होते हैं। अगर ऐप से जुड़ी कोई दिक्कत सबके लिए एक जैसी होती है तो उस पर गौर किया जाता है और समाधान निकाला जाता है। शीतल बताती हैं, “हम फोन या टैबलेट की अनावश्यक फ़ाइल की सफाई के लिए भी कार्यकर्ताओं को हर महीने हेड ऑफिस भेजते हैं क्योंकि वे खुद से डेटा क्लीन करने में हिचकिचाते हैं। कोई नया अपडेट देने से पहले उसकी जांच परख पर खास ध्यान दिया जाता है ताकि फ़ील्ड कार्यकर्ताओं को कोई दिक्कत न हो।”

बातचीत करने के दौरान डेटा टैबलेट में नहीं डालने का कारण ज़ैनब बताती हैं, “जिस महिला का हम सर्वेक्षण करते हैं, उन्हें नहीं पता होता कि हम टैबलेट में क्या कर रहे हैं। उन्हें ऐसा लग सकता है कि शायद हम उनकी बात पर ध्यान नहीं दे रहे हैं और पूरे समय टैबलेट में देख रहे हैं। हम या तो उनसे सर्वेक्षण से पहले अनुमति लेकर बता देते हैं कि हम टैबलेट में केवल जानकारी डाल रहे हैं, या फिर हम टैबलेट का इस्तेमाल ही नहीं करते हैं। उनसे सवालों के जवाब लेकर हम बाद में जानकारी डाल देते हैं।” इस प्रकार के निर्णय लेना कार्यकर्ता के लिए महत्वपूर्ण है ताकि लाभार्थी का अनुभव उनके साथ अच्छा हो।

सुधार के लिए कुछ बिन्दु

तकनीक को हमेशा अपडेट करते रहना पड़ता है। साथ ही, बिना ट्रेनिंग के इसमें अनेक दिक़्क़तें भी आ सकती हैं। कॉमकेयर में कहां सुधार किया जा सकता है, इस पर मंगला कहती हैं “कभी-कभी डेटा सबमिट करने के बाद वह तुरंत नहीं मिलता या ऐसा भी होता है कि यदि हमने किसी घर का सर्वेक्षण किया है तो भी उस घर का डेटा दिखाई नहीं देता है जिससे हमें थोड़ी चिंता होती है। लेकिन ऐसे मुद्दे आमतौर पर जल्दी ही हल हो जाते हैं।” एक उदाहरण में वे आगे बताती हैं, “एक बार हमारे ऑनलाइन फॉर्म में एक महिला की जानकारी ऐड नहीं हो पा रही थी। मुझे बाद में एहसास हुआ कि ऐसा इसलिए था क्योंकि वह महिला अब हमारे आयु वर्ग में नहीं थी। हम ऐसे मुद्दों को व्हाट्सएप ग्रुप पर उठाते हैं। ऐप में हमेशा हमारे लिए सीखने का मौका बना रहता है।”

ज़ैनब बताती है कि ऐप पर कई फॉर्म्स को सिंक करने में भी कम से कम 15-20 मिनट लगते हैं। “हम सभी फॉर्म को ऑफ़लाइन सेव करते हैं और दिन के अंत में केंद्र के वाईफाई की मदद से सभी डेटा को एक साथ सिंक करते हैं।”

डेटा के प्रभावी उपयोग के लिए मानवीय हस्तक्षेप आवश्यक है। स्नेहा की टीम आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं जैसे कई हितधारकों के साथ काम करती है। जमीनी कार्यकर्ता लगातार उनसे जुड़कर उन्हें जानकारी देते हैं कि किसी क्षेत्र में कितनी महिलाएं गर्भवती हैं, कितने बच्चों का टीकाकरण होना बाकी है, आदि। इन जानकारियों का मिलना ज़रूरी है ताकि मातृ स्वास्थ्य एवं शिशु कल्याण उद्देश्य पूरा हो सके।

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  • संस्थाएं व्हाट्सएप चैटबॉट्स को अपने काम में कैसे अपना सकती है जानने के लिए यह लेख पढ़े।
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लेखक के बारे में
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सृष्टि गुप्ता

सृष्टि गुप्ता आईडीआर में एडिटोरियल एसोसिएट हैं और लेखन, सम्पादन और अनुवाद से जुड़े काम करती हैं। इससे पहले सृष्टि ने स्प्रिंगर नेचर के साथ संपादकीय काम किया है। उन्होंने राजनीति विज्ञान में एमए किया है और लिंग, सामाजिक न्याय, सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर अध्य्यन करने में रुचि रखती हैं।

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इंद्रेश शर्मा

इंद्रेश शर्मा आईडीआर में मल्टीमीडिया संपादक हैं और वीडियो सामग्री के प्रबंधन, लेखन निर्माण व प्रकाशन से जुड़े काम देखते हैं। इससे पहले इंद्रेश, प्रथम और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च संस्थाओं से जुड़े रहे हैं। इनके पास डेवलपमेंट सेक्टर में काम करने का लगभग 12 सालों से अधिक का अनुभव है जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता, पोषण और ग्रामीण विकास क्षेत्र मुख्य रूप से शामिल रहे हैं।

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