May 31, 2023

समाजसेवी संस्थाओं के लिए तकनीक से संबंधित कुछ जरूरी सुझाव

तकनीक संबंधी ज़रूरतों और चुनौतियों के मामले में समाजसेवी संस्थाओं की मदद करने वाली संस्था सीएक्सओ के कुछ सुझाव जो एनजीओ लीडर्स के काम आ सकते हैं।
8 मिनट लंबा लेख

पिछले नौ वर्षों से भी अधिक समय से, प्रोजेक्ट टेक4डेव (Tech4Dev) के तहत, हम तकनीक संबंधी आवश्यकताओं और चुनौतियों से जुड़े मामलों में भारतीय समाजसेवी संस्थाओं के साथ काम कर रहे हैं। अपने अनुभव से हमने यह जाना है कि समाजसेवी क्षेत्र में तकनीक को लेकर नेतृत्व विशेषज्ञता (टेक लीडरशिप) का अभाव है। और इसीलिए, 2022 के सितम्बर महीने में हमने फ्रैक्शनल CxO1 नाम से एक कार्यक्रम की शुरूआत की। इस कार्यक्रम के तहत कुशल टेक प्रोफेशनल्स समाजसेवी संस्थाओं के साथ पार्ट-टाइम काम करते हैं और उन्हें तकनीकी विशेषज्ञा प्रदान करते हैं। सीएक्सओ में ‘x’ का मतलब आंकड़े, तकनीक या रणनीति हो सकता है।

हमने सात विभिन्न समाजसेवी संस्थाओं के साथ इस कार्यक्रम की शुरूआत की। इसके अलावा इनकी ज़रूरतों को और अधिक गहराई से समझने के लिए 20 से अधिक समाजसेवी संस्थाओं के प्रमुखों से भी बातचीत की।

हमने सीखा

समाजसेवी संस्थाओं को तकनीक से जुड़ी कुछ अलग और असाधारण समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हम इस बात से हैरान थे कि एकदम अलग-अलग तरह की समाजसेवी संस्थाओं की तकनीक संबंधी ज़रूरतें कितनी अधिक मिलती-जुलती थीं। यह स्थिति तब है जब संगठन विभिन्न देशों में और तमाम क्षेत्रों – स्वास्थ्य, शिक्षा, सामुदायिक सशक्तिकरण, शोध से जुड़े काम कर रहे हैं। 

नीचे कुछ समस्याओं का जिक्र किया गया है जिनका हमने सामना किया:

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  • कागज और पेन इस्तेमाल करने वाली फ़ील्ड टीम से आंकड़े इकट्ठा करना एक बड़ी चुनौती है।
  • कार्यक्रम को बेहतर बनाने और उसकी निगरानी एवं मूल्यांकन (एम एंड ई) के लिए आंकड़ों का विश्लेषण एवं उसका प्रभावी उपयोग किए जाने की बहुत जरूरत है। 
  • समाजसेवी संस्थाओं में केवल प्रासंगिक जानकारी को सही तरह से प्रस्तुत करने  के साधनों (विजुअलाइजेशन टूल) और आंकड़ो को ठीक तरह से छांटने और उपयोग में लेने (डेटा एब्सट्रैक्शन) को लेकर स्पष्टता का अभाव है। संगठन के भीतर बेहतर फैसले लेने के लिए इनका होना जरूरी है। 
  • अलग-अलग विक्रेताओं द्वारा अलग-अलग समय पर और अलग-अलग उद्देश्यों के लिए बनाए गए विभिन्न सिस्टमों की एकीकरण प्रक्रिया इन संस्थाओं के लिए चुनौतीपूर्ण होती है। प्रमुख कार्यक्रम संकेतकों के सुसंगत और समेकित प्रदर्शन के लिए इन प्रणालियों का साथ में काम करना आवश्यक है।
  • ग्रामीण एवं पिछड़े इलाक़ों में काम कर रही समाजसेवी संस्थाओं के लिए, बड़ी संख्या में समुदाय के उन सदस्यों तक पहुंचना चुनौतीपूर्ण काम है जो मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल करती है। 
  • समाजसेवी संस्थाओं में, उनके द्वारा विकसित किए गए या खरीदे जाने वाले सॉफ़्टवेयर एप्लीकेशन्स के तकनीकी डिज़ाइन का मूल्यांकन करने के लिए आवश्यक विशेषज्ञता का अभाव दिखता है। इससे अपनी ज़रूरत के मुताबिक सही सॉफ़्टवेयर के उनके चुनाव की संस्था की क्षमता प्रभावित होती है।
  • विशेषज्ञता की यह कमी समाजसेवी संस्थाओं की विश्लेषण क्षमता पर भी अपना प्रभाव डालती है और वे यह समझ नहीं पाते हैं कि उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार एक नया सॉफ़्टवेयर बनाने में निवेश करना ज्यादा ठीक होगा या पहले से मौजूद सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल करना।

इन अनुभवों के आधार पर हमारे कार्यक्रम में फ्रैक्शनल CxOs द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रही समाजसेवी संस्थाओं के लिए कुछ सुझाव दिए गए हैं।

चार्ट और ग्राफ़ के एक स्प्रेडशीट का चित्रण-तकनीक नेतृत्व
संगठनों को महंगे कस्टम समाधान के निर्माण पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है। | चित्र साभार: पिक्साबे

समाजसेवी संस्थाओं को CxOs की सलाह

1. मौजूदा प्लैटफ़ॉर्म ही समाजसेवी संस्थाओं की कई समस्याओं का समाधान कर सकते हैं

संगठनों के सामने आमतौर पर आने वाली समस्याओं की पहचान करने के बाद, उनका हल खोजते हुए हमें पता चला कि ऐसे अनगिनत ओपन-सोर्स और मुफ़्त में उपलब्ध प्लैटफ़ॉर्म हैं जो विशेष रूप से इन समस्याओं के समाधान के लिए ही तैयार किए गए हैं। संगठनों को महंगे कस्टम-बिल्ट समाधानों को अपनाने की ज़रूरत नहीं है। इसकी बजाय वे पहले से मौजूद इन समाधानों की ख़रीद कर सकते हैं। ग्लिफ़िक (प्रोजेक्ट टेक4डेव टीम द्वारा विकसित किया गया एक वहाट्सएप-आधारित चैटबॉट प्लैटफ़ॉर्म), डेवलपमेंट डेटा प्लैटफ़ॉर्म (वर्तमान में अपने आरंभिक अवस्था में), अवनीफ़्रेप्प, और अपाचे सुपरसेट ऐसे ही कुछ ऑफ़-द-शेल्फ मंचों के उदाहरण हैं।

2. तकनीक का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए संगठनात्मक दृष्टि होनी चाहिए

तकनीक विस्तार का एक शक्तिशाली साधन है लेकिन इसकी क्षमता का अनुमान तभी लगता है जब उद्देश्यों, प्रणालियों, मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) और मेट्रिक्स को लेकर, कार्यक्रम पर काम कर रही टीम की समझ स्पष्ट होती है। जब तक स्पष्टता ना हो तब तक संगठन को तकनीकी समाधानों को लेकर विस्तार के बारे में नहीं सोचना चाहिए। स्पष्ट समझ के बिना किसी समाधान में धन एवं समय के निवेश करने से मनचाहा परिणाम न मिलने का ख़तरा बना रहता है। भविष्य में होने वाले कार्यक्रमों के बारे में समझ बढ़ाने के लिए छोटे प्रयोगों में तकनीक का इस्तेमाल करना, एक अपवाद हो सकता है।

3. लागू की गई तकनीक संगठन की रणनीति के अनुरूप होनी चाहिए

कार्यक्रम की शुरुआत में हम समाजसेवी संस्थाओं से कुछ प्रश्न करते हैं। इन प्रश्नों का संबंध तकनीक से न होकर रणनीति से होता है। हम उनसे पूछते हैं कि उन्हें किस प्रकार के परिणाम चाहिए? क्या कार्यक्रम के जरिए इन परिणामों को प्राप्त करने के लिए उनके पास किसी प्रकार की दीर्घकालिक रणनीति है। संगठन में काम कर रहे विभिन्न टीम के सदस्यों के बीच रणनीति की समझ स्पष्ट है या नहीं? एक दीर्घकालिक तकनीक रणनीति किसी भी संगठन की समग्र रणनीति का केवल एक हिस्सा भर होती है। इसके अन्य भागों में प्रतिभा प्रबंधन, फंडरेजिंग और संचार जैसी चीजें शामिल होती हैं। अगले कुछ सालों में अपनी विकास यात्रा को लेकर स्पष्टता रखने वाला संगठन अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए तकनीक का इस्तेमाल प्रभावी ढंग से कर सकने में सक्षम होता है।

संगठन की दीर्घकालिक रणनीति तकनीक के उपयोग की दिशा को बदल सकती है।

संगठन की दीर्घकालिक रणनीति तकनीक के उपयोग की दिशा को बदल सकती है। एक ऐसे समाजसेवी संगठन का उदाहरण लेते हैं जो सुधार कार्यक्रमों के लिए आंकड़े इकट्ठा करता है और सरकार इन आंकड़ों का इस्तेमाल करती है। इस मामले में, तकनीक का चुनाव एग्जिट स्ट्रेटेजी यानी सबकुछ सरकारी संस्थाओं को सौंप देने की रणनीति के आधार पर किया जाना चाहिए। ऐसे में, किसी भी सॉफ्टवेयर तकनीक का उपयोग सरकारी संस्थाओं के कार्य करने के तरीके से बाधित होगा। लागत के अतिरिक्त, निगरानी की कमी और रखरखाव के लिए बाहरी स्त्रोतों पर निर्भर होने जैसे कारकों पर भी विचार करने की ज़रूरत होती है।

4. आंकड़ों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए

हमने देखा है कि कई समाजसेवी संस्थाएं यहां तक कि बड़े पैमाने पर कार्यरत संगठन भी इस बात को लेकर सुनिश्चित रहते हैं कि तकनीकी समाधान विस्तृत स्तर पर कार्यक्रम को सफल बनाने में सहायक साबित होंगे। हालांकि, वे अक्सर डेटा को प्रभावी ढंग से एकत्र करने, उसके विश्लेषण और उपयोग के महत्वपूर्ण पहलू को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। उदाहरण के लिए, कोई भी संगठन अपने विभिन्न कार्यक्रमों जैसे कि बाल पोषण, मातृत्व स्वास्थ्य और महिलाओं एवं बच्चों के साथ होने वाली हिंसा आदि के लिए एक ही घर से आंकड़े एकत्रित कर सकता है। इस डेटा को समेकित करना – इस मामले में जिसका अर्थ विभिन्न प्रोजेक्ट से डेटा को क्रॉस-लिंक करना और विभिन्न संकेतकों पर किसी परिवार विशेष की स्थिति का अवलोकन हो सकता है – वास्तविक स्थिति के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण होता है।

5. चरणबद्ध कार्यान्वयन की स्थिति में भी एक दीर्घकालिक तकनीक रणनीति का होना आवश्यक है

संगठन कई बार तकनीकी समाधानों को चरणबद्ध तरीक़े से उपयोग में लाना पसंद करते हैं। इसका अर्थ है कि एक चरण के सफल होने के बाद अगले चरण में जाना। हालांकि यह एक सही तरीक़ा है लेकिन साथ ही इस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि कोई भी संगठन विस्तार के लिए तकनीक का अधिकतम उपयोग तभी कर सकता है जब उसके पास संगठन की समग्र रणनीति के अनुकूल एक दीर्घकालिक तकनीकी रणनीति भी हो। यह आवश्यक है ताकि कार्यक्रमों, तकनीकों और वरिष्ठ प्रबंधन टीम को इस बात की जानकारी रहे कि कार्यान्वयन का प्रत्येक चरण किस प्रकार अपने पिछले चरण के आधार पर निर्मित होता है और संगठन के एक बड़े उद्देश्य की तरफ़ बढ़ने में इसकी मदद करता है।

6. तकनीक के कार्यान्वयन के दौरान संगठनों को चुनौतियों के लिए तैयार रहना चाहिए

  • अक्सर ही नई तकनीक को अपनाने को लेकर कर्मचारियों में एक तरह का डर होता है जिससे संगठन के अंदर ही प्रतिरोध की स्थिति पैदा हो जाती है। संगठन कई बार अपने कर्मचारियों को पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित किए बग़ैर ही नई व्यवस्था लागू कर देते हैं। दिया जाने वाला प्रशिक्षण भी अमूमन सैद्धांतिक होता है और इसमें प्रयोग की गुंजाइश कम होती है। साथ ही, अक्सर कर्मचारियों को इस नई व्यवस्था का अभ्यस्त होने के लिए पर्याप्त समय भी नहीं दिया जाता है। नतीजतन, उन्हें लगता है कि पर्याप्त जानकारी दिए बिना ही उन्हें एक नई व्यवस्था के उपयोग के लिए बाध्य किया जा रहा है। ऐसी परिस्थितियों से बचने के लिए, संगठनों को प्रयोगात्मक प्रशिक्षण की व्यवस्था करनी चाहिए। साथ ही, नए तकनीकी समाधान का अभ्यस्त होने के लिए अपने कर्मचारियों को पर्याप्त समय देना चाहिए। इसके अलावा, उन्हें सवाल-जवाब या किसी प्रकार के संशय को दूर करने के लिए एक सहायता टीम भी उपलब्ध करवानी चाहिए। ऐसा करने से संगठन में काम करने वाले कर्मचारी नए टूल्स के इस्तेमाल को लेकर अधिक कुशल हो सकेंगे।
  • कभी-कभी कार्यक्रम पर काम कर रही टीमों के लिए अपनी तकनीकी जरूरतों का व्यापक रूप से आकलन करना और उन्हें इस तरह व्यक्त करना मुश्किल हो सकता है जिससे वह तकनीकी टीम उन्हें पूरी तरह समझ सके। टीमों के बीच आपसी समझ की कमी आख़िर में उपभोक्ताओं के लिए उत्पाद की उपयोगिता को प्रभावित कर सकती है।
  • तकनीकी समाधानों में नियमित रूप निवेश किए जाने की आवश्यकता होती है ताकि उन्हें “जीवित’ रखा जा सके। पूंजी, समय और प्रयास के रूप में निवेश की आवश्यकता है क्योंकि किसी भी तकनीकी समाधान को प्रासंगिक बने रहने के लिए मेंटेनेंस और डेवलपमेंट की आवश्यकता होती है।
  • सामाजिक कार्यक्रम में तकनीक के महत्व को स्थापित करना एक कठिन काम हो सकता है। विभिन्न हितधारकों के बीच तकनीक को लेकर उनकी समझ और सहजता का स्तर अलग-अलग होने के कारण कार्यक्रमों में इसके उपयोग की स्वीकृति की एक सीमा होती है।

इस लेख में विनोद राजशेखरन, अंकित सक्सेना और पियालि पॉल ने अपना योगदान दिया है।

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें

फुटनोट:

  1. CxO एक शब्दावली है जिसका अर्थ किसी संगठन का चीफ़ एग्जेक्यूटिव ऑफ़िसर (सीईओ), चीफ़ टेक्नोलॉज़ी ऑफ़िसर (सीटीओ), चीफ़ फ़ाइनैन्स ऑफ़िसर (सीएफ़ओ) आदि होता है। यहां “x” विशेषज्ञता के क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। फ्रैक्शनल CxOs तकनीक, रणनीति और डेटा जैसे क्षेत्रों के विशेषज्ञ हैं जो संगठनों के साथ अंशकालिक रूप से जुड़कर काम करते हैं।

अधिक जानें

  • प्रोजेक्ट के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएं।
  • समाजसेवी संस्थाओं के सामने आने वाली तकनीक से जुड़ी चुनौतियों के बारे में विस्तार से जानने के लिए इस लेख को पढ़ें
  • इस लेख को पढ़ें और जानें कि एक समाजसेवी संस्था किस प्रकार अपनी तकनीकी टीम का निर्माण कर सकती है।

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लेखक के बारे में
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अर्जव चक्रवर्ती

अर्जव चक्रवर्ती एक लीडरशिप कोच और स्वर्या के संस्थापक हैं। इससे पहले अर्जव परामर्श, समाजसेवी संस्था प्रबंधन, तकनीक और अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में कई तरह की नेतृत्व भूमिकाएं निभा चुके हैं।

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एरिका आर्या

एरिका आर्या ने पिछले दो दशकों में कई तरह की उपलब्धियां हासिल की हैं। इसमें लागत, दक्षता, गति और गुणवत्ता को केंद्र में रखकर समाजसेवी संस्थाओं के डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन के लिए समाधानों का डिज़ाइन तैयार करना आदि शामिल है। एरिका, समाजसेवी संस्थाओं द्वारा तकनीक एवं डेटा के इस्तेमाल के तरीक़े को बदलने के अपने उद्देश्य पर काम कर रही हैं।

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