कोविड महामारी के दौरान ही पता चल गया था कि प्रवासी श्रमिकों के मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए नीतियां, प्रक्रियाएं और प्रणालियां तत्काल तय किए जाने की ज़रूरत है।
मुंबई के कुर्ला में हमाल श्रमिक उचित वेतन और सामाजिक सुरक्षा के अभाव में संघर्ष कर रहे हैं। हालांकि, अब वे अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संगठित होकर अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं।
अर्थशास्त्री आश्चर्य जताने लगे हैं कि भारत के अलावा दुनिया में कोई और देश नहीं जहां आर्थिक विकास होने के बावजूद दस सालों से ग्रामीण मज़दूरी ठहरी हुई हो।
अपने देश के श्रमिक वर्ग के लिए सामाजिक कल्याण और योजनाओं के लाभ उपलब्ध करवाना तो दूर उन्हें उनके सरकारी पहचान दस्तावेज दिला पाने में भी हम बहुत पीछे हैं।
तमिलनाडु के एक पूर्व बंधुआ श्रमिक जो अब एक सामुदायिक नेता हैं, अपने एक दिन का हाल बताते हुए समुदाय की स्थिति बेहतर बनाने के प्रयासों का ज़िक्र कर रहे हैं।
महामारी ने जहां एक तरफ़ मध्य और उच्च वर्ग की मुस्लिम महिलाओं के लिए नौकरी पाना आसान बना दिया है, वहीं दूसरी ओर निम्न-आय वाले परिवारों और प्रवासियों को इसके लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा है।