महाराष्ट्र की विवाहित महिलाओं को पहचान के संकट से क्यों जूझना पड़ता है

Location Iconपुणे जिला, महाराष्ट्र
विवाह प्रमाणपत्र के साथ समूह में बैठी कुछ महिलाएं_पहचान दस्तावेज
जब विवाहित महिलाएं एक नया नाम और नया पता अपना लेती हैं तब उनके लिए पहचान दस्तावेज़ों को अपडेट करना आवश्यक हो जाता है। | चित्र साभार: सुवर्णा सुनील गोखले

महाराष्ट्र के ग्रामीण और शहरी इलाकों में, सांस्कृतिक परंपराओं के कारण, कई महिलाएं शादी के बाद अपना पहला और अंतिम, दोनों नाम बदल लेती हैं। उदाहरण के लिए, अगर किस महिला का नाम लक्ष्मी जगताप है तो वह अपना नाम कल्पना धूमल रख सकती है। और जैसा कि नियम है, वे अपने पैतृक घरों से निकलकर अपने पति के परिवार के साथ रहने चली जाती हैं जो अक्सर ही किसी दूसरे गांव में होता है। इसलिए जब महिलाएं बिलकुल ही नये नाम और नये पते को अपना लेती हैं तब उनके लिए यह ज़रूरी हो जाता है कि वे अपने पहचान से जुड़े सभी काग़ज़ों जैसे कि अपने आधार और पैन कार्ड आदि को अपडेट करवाएं। ऐसा नहीं करने पर वे ना तो बैंक में खाता खुलवा सकती हैं और ना ही राशन कार्ड और एलपीजी कनेक्शन के लिए आवेदन ही दे सकती हैं।

ऐसे मामलों में विवाह प्रमाणपत्र बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इसमें उस महिला का नया नाम दर्ज होता है। वे इसका उपयोग अन्य दस्तावेजों में अपनी पहचान से जुड़ी जानकारियों को बदलवाने में कर सकती हैं। हालांकि, जब ज्ञान प्रबोधिनी की ग्रामीण विकास टीम ने पुणे जिले के ब्लॉक मुख्यालय वेल्हे के आसपास के 10 गांवों में एक सर्वेक्षण किया तो इस सर्वेक्षण में उन्होंने पाया कि मुश्किल से 44.7 फ़ीसद महिलाओं को ही पता था कि उनकी शादी सरकारी रिकॉर्ड में पंजीकृत है। वेल्हे और राज्य के एक प्रमुख शहर, पुणे के बीच प्रवास एक आम बात है। इसके बावजूद जागरूकता में यह कमी चौंकाने वाली है। कई महिलाओं के पास तो उनकी लग्न पत्रिका (आमंत्रण पत्र) भी नहीं था, जिसके आधार पर उन्हें प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करने में मदद मिल सकती थी।

इसमें आश्चर्य की बात नहीं कि इनमें से अधिकतर महिलाओं के पास बैंक खाता नहीं था। लेकिन महाराष्ट्र में विवाह दस्तावेज़ न होने की स्थिति में महिलाओं को केवल इसी एक समस्या से नहीं जूझना पड़ता है। अगर विवाह के प्रमाण के बिना कोई महिला तलाक ले लेती है या छोड़ दी जाती है तो उसके पास अपने अधिकारों का दावा करने या किसी सरकारी योजना तक पहुंचने के लिए किसी तरह का पहचान पत्र नहीं होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि आधिकारिक रिकॉर्ड में उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। ऐसी स्थिति में वह जिस एकमात्र संपत्ति पर दावा कर सकती है, वह स्त्रीधन (उसके दोस्तों और परिवार से प्राप्त शादी के उपहार) हैं। लेकिन जिन 144 महिलाओं का हमने सर्वेक्षण किया उनमें से केवल 12 फ़ीसद के पास उन उपहारों की वास्तविक खरीद की रसीदें उपलब्ध थीं।

बागेश्री पोंक्षे और ओजस देवलेकर ने इस लेख में अपना योगदान दिया।

डॉ अजीत कानिटकर पुणे स्थित एक शोधकर्ता और नीति विश्लेषक हैं। सुवर्णा गोखले ज्ञान प्रबोधिनी के स्त्री शक्ति ग्रामीण विभाग की प्रमुख हैं।

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