केस-1 नवंबर, 2014 में राजस्थान के राजसमंद जिले की एक महिला को भरे समाज के सामने डायन बताकर वस्त्र-विहीन कर दिया गया। फिर उसे उसी अवस्था में पूरे गांव में घुमाया गया। बाद में उसे ज़िंदा जलाने का प्रयास भी किया गया।
केस-2 जुलाई, 2023 में राजस्थान के भीलवाड़ा जिले की एक महिला के साथ उसके ससुराल वालों ने डायन बताकर मारपीट करना शुरू कर दिया। लोहे की गर्म सलाखों से उसके हाथ-पैर और चेहरे को जलाया गया, यहां तक कि उसके सिर के बाल भी काट दिए। इसके बाद उसे ज़िंदा दफ़नाने की कोशिश की गई।
ये दो उदाहरण बताते हैं कि बीते दशकों से डायन प्रथा के संदर्भ में देश में कोई बदलाव नहीं आया है और सदियों पुरानी यह कुरीति अपनी पूरी बर्बरता के साथ अपना अस्तित्व बनाए हुए है। यही वजह है कि ऐसी महिलाओं की एक लंबी लिस्ट बनाई जा सकती है जो बीते कुछ महीनों या सालों में डायन करार दे दी गई हैं और तमाम तरह की बर्बरता का शिकार बनी हैं।
भारत के अधिकांश राज्यों में डायन करार दिए जाने की कुप्रथा व्याप्त है। देश का सबसे बड़ा राज्य राजस्थान भी इससे अछूता नहीं है, खासकर प्रदेश का दक्षिणी आदिवासी इलाका इससे बुरी तरह ग्रसित है। इस विषय पर इलाक़े में सक्रिय समाजिक संस्थाओं से बात करने पर पता चलता है कि यह प्रथा कितनी भयावह है और इसके पीछे, अंधविश्वास के अलावा और कौन सी वजहें काम करती हैं।
महिलाओं को डायन बताए जाने के कारण
महिला मंच संस्था, राजस्थान के राजसमंद जिले में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए काम करती है। इसके काम में डायन प्रथा को लेकर लोगों को जागरूक करना प्रमुख रूप से शामिल है। संस्था की संयोजक शकुंतला पामेचा इसकी वजहों पर बात करते हुए कहती हैं कि ‘ज़्यादातर बार अकेली, बूढ़ी, ज़्यादा सम्पत्ति वाली या होशियार महिलाओं को डायन घोषित कर दिया जाता है। कभी-कभी आपसी दुश्मनी के कारण भी महिला को परिवार के लोग डायन कहकर प्रताड़ित करते हैं। जहां महिला थोड़ी समझदार हो या फिर पति भोला हो, तो उसकी अपने घर में अधिक भागीदारी को लेकर ईर्ष्या या फिर संपत्ति हड़पने के लालच और में जानबूझकर लोग महिला को डायन करार दे देते हैं। राजसमंद जिले में डायन प्रथा का चलन बहुत है, यहां परिजन पीड़िता के शरीर से डायन निकलवाने के लिए किसी भी हद तक जाने से नहीं चूकते हैं।’
किसी को डायन करार देने के लिए कई बार छोटी से छोटी घटना भी काफ़ी हो सकती है। जैसे – गाय का दूध देना बंद करना, कुएं में पानी सूख जाना, किसी बच्चे की मौत होना वग़ैरह। ऐसी घटनाओं का फायदा उठा कर अंधविश्वास फैलाया जाता है, और महिलाओं को इसका जिम्मेदार बताकर डायन करार दे दिया जाता है।
शकुंतला आगे जोड़ती हैं कि ‘कोई ओझा, भोपा या तांत्रिक किसी महिला को कभी भी डायन घोषित कर सकता है। कई बार लोग अपनी साधारण समस्याओं के लिए भोपा के पास जाते हैं और वह इन समस्याओं का जिम्मेदार महिला रूपी डायन को बता देता है। वे कुछ इस तरह के इशारे बताते हैं जैसे डायन का घर पूर्व मुखी है, उसके आंगन में आम का पेड़ है। ऐसे संकेतों से जुड़ी सामान्य महिला भी फिर लोगों की नजर में डायन नामजद हो जाती है।’
उदयपुर के दक्षिण-पूर्व में स्थित कोटड़ा आदिवासी संस्थान के डायरेक्टर सरफ़राज शेख ने भी इस इलाके में डायन प्रथा से जुड़े कई मामले देखे हैं। वे अपने अनुभव बताते हुए कहते हैं कि ‘ज़्यादातर उन महिलाओं को टारगेट किया जाता है जो विधवा, परित्यक्ता, वृद्ध हों अथवा जिनके परिवार का संबल लेने वाला कोई मजबूत व्यक्ति न हो। ताकि उनकी जमीन को हड़पा जा सके। अधिकतर मामलों में परिवार एवं पड़ोसियों की भोपाओं/तांत्रिकों के साथ मिलीभगत होने की बात भी सामने निकल कर आती है।’
कानून क्या कहते हैं?
अलग-अलग राज्यों ने डायन प्रथा को लेकर कानून बनाए गए हैं, मसलन झारखंड ने डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम 2001 , बिहार का बिहार डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम 1999, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि। राजस्थान ने भी राजस्थान डायन-प्रताड़ना निवारण अधिनियम, 2015 कानून लागू किया है जो इन सब के बाद आया कानून है। इसके मुताबिक़ –
- खुद को भोपा/तांत्रिक/ओझा आदि बताना अपराध है। साथ ही कोई अपने आपको किसी अलौकिक या जादुई शक्ति का स्वामी भी नहीं बता सकता है। ऐसा करने पर तीन साल की सजा का प्रावधान है।
- भूत-प्रेत का साया बताने पर सात साल तक की कैद है। अगर कोई भी व्यक्ति किसी को डायन से मुक्त करने के लिए अनुष्ठान करता है तो उसके लिए तीन से सात साल तक की सजा का प्रावधान है। किसी इलाके में अगर डायन मुक्ति जैसे काम होते हैं तो सरकार ऐसे क्षेत्र को डायन प्रभावित क्षेत्र घोषित कर सामूहिक जुर्माना भी लगा सकती है।
- डायन प्रताड़ना से मौत होने पर प्रताड़ना से जुड़े हर व्यक्ति को सात साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। अधिनियम के मुताबिक़ किसी भी महिला को डायन बताकर अखाद्य या घृणित सामग्री खिलाना अपराध है। ऐसा करने वाले व्यक्ति को तीन साल तक की सजा और 50 हजार रुपए तक जुर्माने का प्रावधान है।
- साथ ही, सरकार द्वारा पीड़ित महिलाओं के लिए भी रहने-खाने, कपड़े, चिकित्सा सहायता एवं आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने का प्रावधान भी इस कानून में है।
इस बात की लगातार आवश्यकता बताई जा रही है कि केंद्र स्तर पर भी डायन प्रथा रोकने से जुड़ा मज़बूत क़ानून लाया जाए ताकि भारत भर एक मजबूत नज़ीर बन सके। हालांकि इस संबंध में 2010 में एक बिल लोकसभा में लाया तो गया था लेकिन अभी तक इस पर कानून नहीं बन सका है।
क़ानून का कितना असर?
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, 2001 और 2021 के बीच भारत में लगभग 3,093 महिलाओं की हत्या की गई, जिसकी वजह जादू-टोना रहा था। कानूनन दर्ज मामलों को देखने से भले ही ऐसे लगता है कि पिछले कुछ सालों में महिलाओं को डायन बताकर, उनके साथ दुराचार करने के मामले अब कम हो रहे हैं। लेकिन जमीनी हकीकत इससे बहुत अलग है। यह प्रथा सामाजिक रूप से आज भी कायम है। इस पर कोटड़ा आदिवासी संस्थान के कार्यकर्ता राजेंद्र कुमार कहते हैं कि ‘यह एक क्रूर सामाजिक समस्या है। भले ही कानून के डर से लोग सामने आकार किसी को डायन न कहें, लेकिन मेरे ही गांव में आपको लोग अंगुलियों पर गिना देंगे कि हमारे गांव में कौन-कौन डायन है। गांव के लोग में उनसे रिश्ता रखने तक से परहेज करते हैं। ऐसे में समाज में उनका एवं उनके परिवार का भविष्य दांव पर लग जाता है।’
शकुंतला एक दूसरा पहलू रखते हुए कहती हैं कि ‘कानून तो आ गया लेकिन पुलिस को भी इसके प्रावधानों के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं होती है। हमने पुलिस की ट्रेनिंग की और लोगों को जन सुनवाई में कानून के बारे में बताया। डायन करार होने पर महिला एफआईआर दर्ज कर सकती है, और पुलिस को रिपोर्ट दर्ज करनी ही होगी—ऐसा उन्हें कई बार मालूम ही नहीं होता।’ वे आगे कहती हैं कि ‘इसमें दिक्कत ये भी है कि जिन पुलिसकर्मियों या सरकारी अधिकारियों के साथ हम ट्रेनिंग करते है, उनका कुछ समय बाद ट्रांसफर हो जाता है। इसलिए हमें उनके साथ लगातार ट्रेनिंग और काम करते रहने की ज़रूरत होती है।”
सशक्त सामूहिक प्रयासों की जरूरत
सामाजिक कुरीतियों का अकेले सरकारों के कानून बनाने भर से खत्म कर पाना मुश्किल होता है। इसके लिए कानूनों को सही तरीक़े से लागू किये जाने और नागरिक जिम्मेदारी की भी ठोस अहमियत होती है। ज़मीनी स्तर पर काम करने वाली सामाजिक संस्थाओं का अनुभव रहा है कि किसी एक पहलू के सब कुछ करने से सब ठीक नहीं हो सकता है। डायन प्रथा के खिलाफ लड़ाई में समाज, सरकार और सामाजिक संगठनों को साथ मिलकर काम करने की और महिलाओं के अधिकारों को लेकर पूरा समर्थन देने की आवश्यकता है।
—
गोपनीयता बनाए रखने के लिए आपके ईमेल का पता सार्वजनिक नहीं किया जाएगा। आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *