नज़रिया

May 28, 2025
नारीवादी नैतिकता और हालिया कानूनी नजरिए में क्या और कितना अंतर है?
नारीवादी नजरिया कहता है आरोपी, पीड़ित और समाज तीनों के लिए न्याय की भावना बनी रहे, यह सुनिश्चित करने के लिए सिस्टम और व्यक्ति को साथ मिलकर काम करने की जरूरत है।
मैत्रेयी मिसरा | 8 मिनट लंबा लेख
May 14, 2025
हमारे कानूनों को हिंदी में पढ़ना और समझ पाना इतना कठिन क्यों है?
जनहित के लिहाज से सबसे जरूरी कानूनों को भी जिस तरह की हिंदी में लिखा जाता है, उसे समझने के लिए आम लोग तो छोड़िए हिंदी के जानकारों को भी कई बार शब्दकोश देखना पड़ सकता है।
सत्याग्रह | 14 मिनट लंबा लेख
April 29, 2025
जातिवाद के आईने में समाज: दलित साहित्य की पांच जरूरी किताबें 
दलित साहित्य पढ़कर हम समझ पाते हैं कि जातिवाद की जड़ें कितनी गहरी हैं और इसके उन्मूलन के लिए किस प्रकार के सामाजिक और मानसिक परिवर्तनों की जरूरत है।
December 24, 2024
साल 2024 में हमने जो किताबें पढ़ीं, वे आपको भी क्यों पढ़नी चाहिए?
विकास सेक्टर के अलग-अलग हिस्सों से जुड़ी कुछ किताबें जिन्हें पढ़ना और जिनसे सीखना आपके काम को थोड़ा और बेहतर बनाने में मददगार साबित हो सकता है।
October 23, 2024
सामाजिक क्षेत्र को पूर्वोत्तर भारत में काम करने के बारे में क्या सीखना चाहिए?
साथ ही जानिए, क्यों समाजसेवियों और फंडर्स को पूर्वोत्तर भारत के लिए सामाजिक क्षेत्र से जुड़े कार्यक्रम बनाने से पहले वहां के स्थानीय संदर्भों को समझ लेना चाहिए।
जेरी थॉमस | 8 मिनट लंबा लेख
November 15, 2023
राजस्थान में आज भी महिलाओं को डायन बताने की कुप्रथा क्यों क़ायम है?
राजस्थान समेत देशभर में आज भी महिलाओं को डायन बताकर उत्पीड़ित करने की कुप्रथा है जिसकी जड़ें पितृसत्ता, मानवीय लालच और कमजोर कानूनों में दबी दिखाई देती हैं।
September 27, 2023
बंकर रॉय: ‘साधारण से समाधान को लागू करना सबसे अधिक कठिन होता है’
बेयरफुट कॉलेज के संस्थापक बंकर रॉय से उनकी यात्रा में आने वाली चुनौतियों और उनसे मिलने वाले अनुभवों और सीख पर, पत्रकार रजनी बख्शी से हुई बातचीत।
September 20, 2023
क्या भारत की राजनीतिक व्यवस्था में सुधार का वक्त आ गया है?
हमें राजनीति में खेल के नियमों को बदलने की जरूरत है क्योंकि इसने सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को राजनीतिक प्रक्रिया पर हावी होने दिया है।
विजय महाजन | 9 मिनट लंबा लेख
February 18, 2022
समावेशी समुदायों को बनाना नागरिक समाज का कर्तव्य है
जब तक विभिन्न समुदाय लिंग, जाति, वर्ग और धर्मों के आधार पर लोगों को बाहर रखना बंद नहीं करेंगे तब तक एसडीजी को हासिल करने की तमाम कोशिशें कम पड़ती रहेंगी।
शमिक त्रेहान | 9 मिनट लंबा लेख
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