नारीवादी नजरिया कहता है आरोपी, पीड़ित और समाज तीनों के लिए न्याय की भावना बनी रहे, यह सुनिश्चित करने के लिए सिस्टम और व्यक्ति को साथ मिलकर काम करने की जरूरत है।
जनहित के लिहाज से सबसे जरूरी कानूनों को भी जिस तरह की हिंदी में लिखा जाता है, उसे समझने के लिए आम लोग तो छोड़िए हिंदी के जानकारों को भी कई बार शब्दकोश देखना पड़ सकता है।
सुधार के दावों के बावजूद, भारतीय अपराध कानून आज भी बहुत असंगत तरीके सजा देते, नागरिक मामलों का अपराधीकरण करते और अंग्रेजों के जमाने के मूल्यों को ढोते दिखते हैं।
राजस्थान समेत देशभर में आज भी महिलाओं को डायन बताकर उत्पीड़ित करने की कुप्रथा है जिसकी जड़ें पितृसत्ता, मानवीय लालच और कमजोर कानूनों में दबी दिखाई देती हैं।