किसी कार्यक्रम के लिए युवाओं में रुचि पैदा करना और उनकी सहभागिता सुनिश्चित करना, किसी समाजसेवी संगठन के लिए आसान काम नहीं है। यहां प्रोग्राम डिज़ाइन के एक हिस्से के तौर पर, एक ताकतवर और प्रभावी संदेश (नरेटिव) की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। यदि कार्यक्रम का उद्देश्य और युवाओं को उससे होने वाले लाभ को लेकर एक स्पष्ट और संक्षिप्त विचार हो तो एक ऐसा संदेश तैयार किया जा सकता है। हालांकि महत्वपूर्ण होने के बाद भी इस संदेश को कार्यक्रम के अन्य पहलुओं के सामने दरकिनार कर दिया जाता है। इसके कारण युवाओं की उतनी उत्साहपूर्ण प्रतिक्रिया नहीं मिल पाती है।
कम्यूटिनी – द यूथ कलेक्टिव के सह-संस्थापक और वार्तालीप कोअलिशन के सदस्य, अर्जुन शेखर बताते हैं कि कैसे एक मज़बूत और समाधान केंद्रित संदेश, युवा सहभागिता को बढ़ा सकता है। वे जलवायु कार्रवाई का उदाहरण देते हैं। अर्जुन कहते हैं कि “वर्तमान में जलवायु परिवर्तन पर हो रही चर्चा भयावह लग सकती है, खासतौर पर युवाओं के लिए क्योंकि उन्हें ही भविष्य में इसके प्रभावों का सामना करना है। हम समाचारों में सुनते हैं कि हम सबसे गर्म साल का अनुभव कर रहे हैं, धीरे-धीरे यह स्थिति और खराब होती जाएगी—यह हकीकत डरावनी लगती है। यह जानकारी जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली समस्या, लागत और नुकसान को उजागर करते हुए, उन्हें एक अंधकारमय और कष्टपूर्ण भविष्य का चित्र दिखाती है। यह युवाओं को कार्रवाई करने के लिए प्रेरित नहीं करती, बल्कि उन्हें निराशा का अनुभव कराती है। हमें समाधान केंद्रित संदेशों की जरुरत है जो उन्हें इस मुद्दे को समझने और सुलझाने में मदद करे।’
एक ऐसा संदेश जो आने वाले कल के लिए उम्मीद जगाता हो और युवाओं में उद्देश्य और सहनशीलता की भावना पैदा करता हो। कम्यूटिनी के मुख्य संचालन अधिकारी और वार्तालीप के सदस्य राजेश एन सिंह मेहर कहते हैं कि “अगर कोई सामाजिक मुद्दा, एक रोमांचक अवसर के रूप में प्रस्तुत किया जाए जो उन्हें एक बढ़िया करियर बनाने में मदद कर सकता है। इसके साथ ही, अगर ये उनके जीवन से जुड़ा हो तो वे इससे जुड़ेंगे।”
एक युवा केंद्रित कार्यक्रम डिज़ाइन बनाइए
किसी कार्यक्रम को युवाओं के लिए प्रासंगिक बनाने के लिए, कार्यक्रम डिज़ाइन में उनकी ज़रूरतों को शामिल करना ज़रूरी है। अक्सर संगठन अपने कार्यक्रम एजेंडा को भागीदारों पर थोपते हुए से लगते हैं, क्योंकि फंडर्स ऐसा चाहते हैं। अर्जुन ज़ोर देकर कहते हैं कि शुरूआत से ही युवाओं की ज़रूरतों को पहचानना और उन्हें कार्यक्रम डिज़ाइन में शामिल न किए जाने के चलते ही वे इसमें रुचि नहीं लेते हैं। असल में, जब युवाओं को नेतृत्व करने के लिए शामिल किया जाता है तो इससे जल्दी परिणाम मिलते हैं।
इस तरह, संदेशों को – चाहे वह पोस्टर हो, किसी गतिविधि का बुलावा या फिर आवेदन की मांग, हमेशा यह सरलता से बताने वाला होना चाहिए कि किसी युवा को उसमें क्यों रुचि लेनी चाहिए।
1. उन्हें लगना चाहिए कि यह उनका कार्यक्रम है
अर्जुन ज़िक्र करते हैं कि उन्हें बहुत पहले यह समझ आ गया था कि युवा आमतौर पर चार चीजों से जुड़े होते हैं: करियर, शिक्षा, दोस्त और परिवार। इनमें से किसी भी जगह पर उनके पास फैसले लेने की क्षमता (या एजेंसी) नहीं होती है। नियम हमेशा उनके लिए बनाए जाते हैं, उनके द्वारा नहीं। “उन्हें एक ऐसा पांचवां स्थान चाहिए जहां उन पर दुनिया बदलने का दबाव न हो। यहां वे खुद को बदल सकते हैं और आपसी बातचीत के जरिए अपनी मान्यताएं तय कर सकते हैं, जिससे उन्हें जवाबदारी की भावना महसूस होगी।”
अर्जुन आगे कहते हैं कि ऐसी जगहें युवाओं को अपने खुद के माइक्रो-नरेटिव बनाने में भी मदद करती हैं। उनके अनुसार, हम जो समाचार देखते-सुनते और अखबारों में पढ़ते हैं, वे मुख्यधारा में चल रही बातें और विचार होते हैं। इसके विपरीत, माइक्रो-नरेटिव तब होता है जब लोग अपने व्यक्तिगत अनुभवों को कहानियों में बयान करते हैं और दूसरे उनसे कुछ करने के लिए प्रेरित होते हैं। दूसरों को शामिल करने और उन्हें रास्ता दिखाने वाली आत्मनिर्भरता से भरी यह भावना बहुत जरूरी है।
2. आंकड़ों की बजाय अनुभव को प्राथमिकता देना
युवा तब ज्यादा प्रेरित होते हैं जब वे किसी मुद्दे से व्यक्तिगत रूप से जुड़ाव महसूस करते हैं। अर्जुन कहते हैं कि “कम्यूटिनी कभी आंकड़ों के सहारे यह नहीं कहता है कि किसी युवा को कार्यक्रम में क्यों शामिल किया जाना चाहिए? इसकी बजाय, हम उस मुद्दे को युवाओं के जीवन से जोड़ते हैं।” राजेश बताते हैं कि उनके “चेंजलूम्स” प्रोग्राम में एक ‘इर्मशन फेज़’ होता है जिसमें युवाओं को उन जगहों पर ले जाते है जो जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हैं या भीषण गर्मी में उन्हें यात्रा करवाई जाती है।
हम चिंतनशील कामों और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देते हैं जिससे वे सोचना सीख सकें।
इससे उन्हें मुख्यधारा में चल रही बातचीत को वास्तविक अनुभव के साथ जोड़कर यह समझने में मदद मिलती है कि उनके आसपास के वातावरण में जलवायु परिवर्तन का क्या असर पड़ रहा है। इस जागरूकता के साथ, युवा वापस आकर समस्याओं के समाधान खोजने के बारे में सोचते हैं और ऐसे तरीके तलाशते हैं जो उनके समुदाय के लिए हितकारी हो।
3. जरुरतों की पहचान और समाधान
• वित्तीय जरुरत: राजेश अपने अनुभव बताते हैं कि युवाओं के लिए वित्तीय ज़रूरतें बाकी सभी चीज़ों से ज़्यादा अहमियत रखती हैं। वे कहते हैं कि “संगठन चाहे किसी भी सामाजिक मुद्दे पर काम कर रहे हों, उन्हें अपने हस्तक्षेप कार्यक्रम में आजीविका को शामिल करना ज़रूरी है। इसका मतलब यह नहीं है कि युवा सक्रिय नागरिकता या लिंग, जलवायु परिवर्तन आदि के बारे में सीखने में रुचि नहीं रखते हैं। बल्कि, आर्थिक सहायता उनके लिए शिक्षा में किया जाने वाला एक निवेश हो सकता है। कपड़े, मग या कोई तोहफा उनके लिए प्रोत्साहन का काम नहीं करता, यह हम करके देख चुके हैं।
वहीं, आर्थिक प्रोत्साहन एक अल्पकालिक आर्थिक सहायता है लेकिन आर्थिक समाधानों को लंबे समय के लिए भी अपनाया जा सकता है। अर्जुन कहते हैं कि वे जलवायु कार्रवाई पर काम करते हुए युवाओं को पर्यावरण सहज नौकरियां (ग्रीन जॉब्स) करने की जानकारी और प्रोत्साहन देते हैं। राजेश बताते हैं कि वे युवाओं को उद्योग लगाने के दौरान पर्यावरण के लिए बने अनुकूल सिद्धांतों का ध्यान रखने और पर्यावरणीय लाभ को बढ़ावा देने वाले प्रोजेक्ट यानी ग्रीन मनी के बारे में बताते हैं।
• मनोवैज्ञानिक जरुरत: राजेश कहते हैं कि युवा अपने साथियों और परिवार की तरफ से मिल रहे सामाजिक दबाव से परेशान होते हैं, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य और बेहतरी पर भी असर डालता है। “इस उम्र में उनकी पहचान के कई पहलू मजबूत होने लगते हैं और वे अपने जीवन के दूसरे पहलुओं जैसे जाति, धर्म, ओरिएंटेशन वग़ैरह पर अपनी कोई राय बनाना शुरू कर देते हैं। (परिवार पर) निर्भरता से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे युवा के लिए संगठनों को ऐसे स्थान बनाने चाहिए जिसके माहौल में उन्हें यह ना सोचना पड़े कि बाक़ी लोग उनके बारे में क्या सोचेंगे और वे बिना किसी तनाव के अपने विचार और भावनाएं जाहिर कर सकें।”
अर्जुन युवाओं में आत्मसम्मान पैदा करने और ख़ुद का महत्व समझने में काम आने वाले मनौवैज्ञानिक साधनों के महत्व को सामने लाते हैं। “हम चिंतनशील कामों और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देते हैं जिससे वे यह सोचने में सक्षम हो सकें कि किसी विशेष मुद्दे को लेकर नेतृत्व और बदलाव लाने वाली भूमिका कैसे निभाई जा सकती है।
एक मज़बूत डिज़ाइन के साथ, अपना संदेश तैयार करें
1. सामाजिक परिवर्तन को संभव बनाना
सामाजिक बदलाव को प्राथमिकता के तौर पर सोचना हमेशा मुश्किल होता है। युवा पहले से ही करियर बनाने, परिवार के प्रति जवाबदेह होने, अपनी संस्कृति में शामिल होने और अपने दोस्तों के साथ रोमांचक अनुभव करने जैसी कई इच्छाएं रखते हैं। सामाजिक बदलाव में योगदान देना उनसे एक अतिरिक्त अपेक्षा करने जैसा है और इस अपेक्षा के साथ कहानी को आगे बढ़ाना कारगर नहीं होता है। अर्जुन इसे अपनी एक पहल जिसका नाम स्माइल (स्टूडेंट्स मोबिलाइजेशन इनिशिएटिव फॉर लर्निंग थ्रू एक्सपोजर) है, के उदाहरण से समझाते हैं। वे कहते हैं कि “युवाओं को जमीनी स्तर के संगठनों और सामाजिक आंदोलनों में इंटर्न के तौर पर रखा जाता है, ताकि वे जमीनी हकीकतों का सामना कर सकें और कुछ सीख सकें। लेकिन उन्हें अपने परिजनों को यह समझाना मुश्किल लगता है कि ‘हम ग्रामीण इलाकों का दौरा क्यों करना चाहते हैं।’ पहला सवाल जो पूछा जाता है, वह है, ‘इससे आपको क्या मिलेगा?’ इसलिए हमने पिच बदल दी। हमने व्यक्ति के सीखने पर ध्यान केंद्रित किया। जब हम उनसे पूछते है कि क्या वे नेतृत्व क्षमता का निर्माण करना चाहते हैं और अपने सोच-विचार को मज़बूत बनाना चाहते हैं तो वे भाग लेने में ज्यादा रुचि दिखाते हैं।”
2. इसे मज़ेदार बनाएं
राजेश इस बात पर ज़ोर देते हैं कि युवाओं के लिए किसी भी अनुभव को रोमांचक और मज़ेदार बनाना ज़रूरी है। सामाजिक मुद्दों के बारे में बहुत सी जानकारी है जो हर किसी को पता होनी चाहिए, लेकिन इसके बारे में सीखना बहुत उबाऊ या समय लेने वाला है। वे कहते हैं कि “उदाहरण के लिए, हमारे एक कार्यक्रम में संविधान के महत्व को उजागर किया जाता है, लेकिन इस विषय को रोचक कैसे बनाया जाए? उन्होंने इसके लिए गेम आधारित गतिविधियां और चैंपियनशिप बनाई जिसमें विभिन्न क्षेत्रों की टीमें संविधान के बारे में सबसे ज्यादा जानकारी दिखाने के लिए प्रतिस्पर्धा करती हैं।”
युवा की भावनाओं को शामिल करना एक स्थायी प्रभाव और सार्थक संबंध बनाने की कुंजी है।
राजेश के मुताबिक यह गेमिंग अनुभव उन्हें आकर्षित करने का एक तरीका है। इसके बाद, वे उन्हें जरुरी कौशल और तरीके निकालने में मदद करते हैं। बाकी दूसरे समूहों को जानबूझकर एक—दूसरे से मिलाया जाता है ताकि प्रतिभागियों को अलग-अलग दृष्टिकोण और वास्तविकताओं का अनुभव हो। इससे उन्हें बंधुत्व, समानता और न्याय जैसे बुनियादी मूल्यों को समझने में मदद मिलती है। इसके अलावा, प्रतिभागियों को अपने माता-पिता, शिक्षकों और दूसरे जरुरी लोगों को भी साथ लाने के लिए कहा जाता है, जिससे एक अनोखा सांस्कृतिक भाव पैदा होता है जो परिचित और अपरिचित को एक साथ लाता है। इस तरह, सामाजिक मुद्दों को मजेदार और आकर्षक तरीके से पेश करने से युवाओं में सक्रियता और उत्साह लाता है।
3. समानुभूति के साथ नेतृत्व करें
अर्जुन इस बात पर जोर देते हैं कि युवाओं को प्रभावी ढंग से जोड़ने के लिए, उनके साथ समानुभूति रखना और उसके हिसाब से कार्यक्रम के उद्देश्यों को ढालना अहम है। “युवाओं के मन में बहुत सारी भावनाएं होती हैं और पारंपरिक सोच अक्सर उनके साथ मेल नहीं खाती है। उनका मानसिक दृष्टिकोण गतिशील होता है, वे एक साथ कई गतिविधियों और बातचीत में उलझे होते हैं। वे एक साथ टेक्स्टिंग, कॉलिंग और एक आर्टिकल पढ़ने जैसे काम कर सकते हैं। उनसे जुड़ने के लिए, नरेटिव और अभियान भावनात्मक आधार पर बनाए जाने चाहिए जो उनके जज्बातों को छू लें। उनके मन को बदलने के बजाय, उनके दिल को जीतने पर ध्यान देना चाहिए। उनकी भावनाओं को शामिल करना एक स्थायी प्रभाव और सार्थक संबंध बनाने की कुंजी है।”
राजेश ने इन मामलों में गैर-लाभकारी संगठनों की गलती को उजागर करते हुए कहा कि “संगठन अक्सर सोशल मीडिया पर काफी समय खर्च करते हैं, अपने काम के बारे में पोस्टर और पोस्टकार्ड बनाते हैं। लेकिन ये प्रयास अक्सर बाहरी दुनिया, खासतौर पर युवाओं के साथ मेल नहीं खाते हैं। हम अपनी ही कहानियों के इको चैंबर में और वास्तविकता से दूर रहते हैं। हालांकि, हमारे पास लोगों की शक्ति है, और इसका उपयोग करना हमारी सबसे सफल “नरेटिव बिल्डिंग” रणनीति रही है। हर युवा जिसे हम काम में शामिल करते हैं, वह अपने आप में एक “कहानीकार” बन जाता है, संदेश को दूर तक फैलाता है और दूसरों को भी जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करता है।”
इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें।
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