February 8, 2023

भारत को और अधिक युवा उद्यमियों की जरूरत है

अधिकार और नियंत्रण का अभाव और असफलता का डर भारतीय युवाओं को उद्यमी बनने से रोक रहा है जिसे बदले जाने की जरूरत है।
7 मिनट लंबा लेख

भारत रोजगार के संकट से गुजर रहा है। नवंबर 2022 में, देश में बेरोज़गारी की दर बढ़कर 8 फ़ीसदी हो गई थी। भारत में बेरोज़गारी के आंकड़ों पर तैयार एक प्रोफ़ाइल के अनुसार, मई-अगस्त 2022 से 20–24 वर्ष के युवाओं में बेरोज़गारी आश्चर्यजनक रूप से बढ़कर 43.36 फ़ीसदी हो गई। यह पिछले 45 वर्षों में बेरोज़गारी का सबसे ऊंचा आंकड़ा था। पारंपरिक रोजगार के मौकों में आए ठहराव को देखते हुए, नीति-निर्माताओं का ध्यान उद्यमियों को कुशल बनाने से हटकर नए उद्यमी तैयार करने पर केंद्रित हो गया है। यह प्रधान मंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई), सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट (सीजीटीएमएसई) और राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (एनएसआईसी) द्वारा क्रेडिट सहायता योजना जैसी कई सरकारी योजनाएं लागू किए जाने से भी साफ होता है। ये योजनाएं पूंजी तक पहुंच प्रदान करने और उद्यमिता को बढ़ावा देने को ध्यान में रखकर तैयार की गई हैं। जहां तक कॉर्पोरेट की बात है तो वे अपनी ओर से, अपनी सीएसआर शाखाओं के माध्यम से सीड मनी, कौशल, मार्केट लिंकेज और इन्क्यूबेशन इकोसिस्टम प्रदान कर रहे हैं। देखा जाए तो उद्यमिता के लिए परिस्थितियां परिपक्व हैं। फिर भी, भारत में उद्यमियों की संख्या बहुत कम है।

युवाओं में प्रतिभा की भरमार लेकिन असफलता का डर है

ग्लोबल आंत्रप्रेन्योरशिप मॉनीटर (जीईएम) रिपोर्ट, 2020-21 भारत में उद्यमशील प्रतिभा की भरमार को सामने लाई है। इस रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 81 फ़ीसदी युवाओं के पास व्यवसाय शुरू करने के लिए आवश्यक कौशल और ज्ञान उपलब्ध है। लेकिन बहुत सारे युवाओं में जोखिम लेने का साहस नहीं होता है जो उद्यमिता का एक महत्वपूर्ण पहलू है। इनमें 56 फ़ीसदी ऐसे युवाओं को असफल होने का डर है। इसमें व्यवसाय शुरू करने से जुड़ी आर्थिक अनिश्चितता को लेकर पारिवारिक चिंताएं और एक स्थाई करियर को लेकर सामाजिक दृष्टिकोण ने भी अपना योगदान दिया है। इसके कारण युवाओं में नया व्यवसाय शुरू करने को लेकर झिझक है और वे खुद को नौकरियों के विकल्पों की ओर धकेलते हैं। 2020–21 में महामारी के कारण उत्पन्न हुई चिंताओं ने स्थिति को और बदतर ही बनाया है। इसके बाद से केवल 20 फ़ीसदी युवाओं ने ही उद्यम शुरू करने की बात कही है, वहीं साल 2019–20 में यह आंकड़ा 33 फ़ीसद था।

यही कारण है कि भारत में बड़े पैमाने पर स्टार्ट-अप होने के मीडिया नरेटिव के बावजूद केवल 5 फ़ीसदी भारतीय जनता ही उद्यमी है। यह संख्या विश्व में सबसे कम है। इसकी तुलना में यूएस में 23 फ़ीसदी, ब्राज़ील में 17 फीसदी और चीन में 8 फ़ीसदी लोग उद्यमी  हैं।

एक्सपोजर और एजेंसी की कमी

युवाओं के साथ 28 वर्षों के कम्यूटिनी के व्यापक अनुभव से हमने जाना कि सूचनाओं तक पहुंच बढ़ने के कारण उनके दृष्टिकोण में भी बहुत अधिक बदलाव आया है। 2000 के शुरुआती सालों में प्रत्येक 10 युवाओं में से एक युवा सक्रिय नागरिकता की कोशिश करने के लिए तैयार था। लेकिन आज हम हर दस युवा में से चार से पांच को सामाजिक सरोकारों को उनकी प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर रखा देखते हैं।

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लेकिन अवसरों और वास्तविक-जीवन की परिस्थितियों में बहुत अधिक बदलाव देखने को नहीं मिलता है। वास्तव में हमारे काम में हमने देखा कि जमीनी अनुभवों के अवसरों की गुणवत्ता और मात्रा, जो प्रमुख जीवन में उपयोगी क्षमताएं विकसित करने में मदद करती हैं, और युवाओं को उनकी पूरी क्षमता का एहसास कराने में सहायक होती हैं, सुरक्षा चिंताओं के कारण घट गई हैं। जैसा कि जीईएम रिपोर्ट बताती है कि हिंसा एवं वास्तविक और डिजिटल सुरक्षा की कमी से जुड़ी खबरों से पैदा हुए भय के कारण पिछले कुछ सालों में युवाओं में जोखिम उठाने की क्षमता में कमी आई है। नतीजतन, उनके परिवार उन्हें ज़मीनी-अनुभव प्राप्त करने के लिए भेजने से डरते हैं। इसलिए युवाओं की एजेंसी (अधिकार और स्वतंत्रता) अब भी कम ही रह जाती है और फैसले लेने के लिए जरूरी शर्तों के मुताबिक नहीं होता है।

एक दफ़्तर के बाहर जमा हुए युवाओं की एक भीड़-युवा उद्यमी
निर्णय लेने वाले प्रत्येक स्थान पर युवाओं की भागीदारी भी होनी चाहिए। | चित्र साभार: विकीमीडिया कॉमन्स / सीसी बीवाई

हम जमीन पर उद्यमिता के विकास को कैसे बढ़ा सकते हैं?

यदि हम उम्मीद करते हैं कि युवा उद्यमिता से जुड़ी कई सरकारी योजनाओं का लाभ उठाएंगे, तो हमें यह स्वीकार करना होगा कि हमारे ऊंचनीच भरे और पितृसत्तात्मक सामाजिक ढांचे में, उन्हें कई मूलभूत अधिकारों से वंचित रखा गया है। ये अधिकार अलग-अलग पीढ़ियों तक पहुंच देते हैं जिसमें युवा अधिकार और स्वतंत्रता महसूस कर सकते हैं, महत्वपूर्ण निर्णय ले सकते हैं, और अपनी अधिकतम क्षमता तक पहुंच सकते हैं, और दुनिया में बदलाव भी ला सकते हैं। इन अधिकारों का न होना क्षमताओं को सीमित करता है और उद्यमिता और जोखिम-उठाने का इरादा भी कम होता हैं। हमारे युवा-केंद्रित विकास तंत्र के भीतर, 143 संगठनों से मिलकर, हमने एक सर्वेक्षण किया जहां सदस्यों द्वारा तीन प्रमुख युवा कर्तव्यों और अधिकारों पर प्रकाश डाला गया है:

  • निर्णय की प्रत्येक प्रक्रिया में चाहे वह परिवार, स्कूल, कॉलेज, कार्यस्थल, पंचायत, विधान सभा, संसद या अन्य सामाजिक मंचों के स्तर पर ही युवाओं की भागीदारी होनी चाहिए। अभी तक, संसद में केवल 13 फ़ीसदी मंत्री 40 वर्ष से कम आयु के हैं और कैबिनेट सदस्यों की औसत आयु 60 वर्ष है। हम इस औसत को घटाकर 55 वर्ष करने का प्रस्ताव करते हैं, और सभी विधानसभाओं और पंचायतों में 35 फ़ीसदी युवा होने चाहिए। सभी कॉर्पोरेट संगठनों में शीर्ष नेतृत्व को एक समान संरचना अपनाना चाहिए। हमारा सुझाव है कि परिवारों में युवाओं के जीवन को सीधे या अप्रत्यक्ष दोनों ही तरीक़ों से प्रभावित करने वाले हर तरह के निर्णयों में युवाओं की भागीदारी होनी चाहिए। शिक्षा के क्षेत्र में भी निर्णायकों की शीर्ष सूची में 35 फ़ीसदी युवाओं को शामिल किया जाना चाहिए।
  • युवाओं को रिफ्‌ल-एक्शन (Refl-Action) – जहां युवा खुद पर सोच-विचार करता है और उसके बाद आगे बढ़ता है – के लिए भी जगह प्रदान की जानी चाहिए। यहां वे सामाजिक व्यवसायों या उद्यमों (गरीबी उन्मूलन और लैंगिक समानता जैसे सामाजिक विकास के मुद्दों पर काम कर रहे सामाजिक उद्यमी) की स्थापना कर अपने समुदायों का साझा नेतृत्व कर सकते हैं। यहां वे अपनी और दूसरों की ग़लतियों से सीख सकते हैं। रिफ्ल-एक्शन की अनुमति देने वाले स्थान के लिए सरकार और कॉर्पोरेट फंडिंग आवश्यक है। इन फ़ंडरों को युवाओं की उद्यमशीलता क्षमता को बढ़ाने पर भी ध्यान देना चाहिए, जिसमें वे जोखिम लेने की चाह और असफलता से निपटने के लिए लचीलापन विकसित करते हैं।
  • युवाओं के पास एक और मूलभूत अधिकार होना चाहिए: बदले की कार्यवाही के डर के बिना जारी आदेश के बारे में कड़वे सवाल पूछने का अधिकार। परिवारों और स्कूलों सहित प्रशासन द्वारा बोलने और असहमति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बढ़ाने यानी अभी की तुलना में अधिक सहन किए जाने की आवश्यकता है। यह युवाओं को अलग तरह से सोचने, लीक से हटकर सोचने और अंततः यथास्थिति को बदलने के लिए प्रोत्साहित करता है।

अनुभव जो युवाओं में अधिकार, नियंत्रण और नेतृत्व क्षमता का निर्माण करते हैं, उन्हें युवाओं के लिए मुख्यधारा की नीतियों का हिस्सा बनना होगा। साथ ही, वयस्कों को युवाओं के साथ-साथ अपनी भूमिकाओं में संशोधन करने और इन अनुभवों के सूत्रधार बनने की आवश्यकता है। क्योंकि, उद्यमी पैदा नहीं होते – वे बनाए जाते हैं।

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लेखक के बारे में
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अर्जुन शेखर

अर्जुन शेखर वार्तालीप कोअलिशन के सदस्य एवं प्रवाह और कम्यूटिनी द यूथ कलेक्टिव के सह-संस्थापक हैं। अर्जुन ने व्यक्तित्व की स्थापना भी की है जो एक परफ़ॉर्मेंस सपोर्ट कंसल्टिंग फर्म है। अर्जुन संरचित अनुभवों को डिजाइन करने का काम करते हैं और मानव विकास के क्षेत्र में उनकी व्यापक रुचि है। इन्होंने सामाजिक और कॉर्पोरेट क्षेत्र दोनों के लिए गहन शिक्षण और नेतृत्व इंटरवेंशन तैयार किया है। अर्जुन ने अर्थशास्त्र में एमए किया है और एक्सएलआरआई के पूर्व छात्र हैं।

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