भारत में फंडरेजिंग से जुड़ी बातचीत केवल दो समूहों पर ही केंद्रित होती है – हाई-नेट-वर्थ इंडिविजुअल्स (एचएनआई) और सीएसआर एक्ट के तहत दान करने वाली कम्पनियां। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में, ख़ासकर कोविड-19 महामारी के बाद से इसमें एक तीसरी कड़ी जुड़ी है जो मुख्य रूप से व्यक्तिगत रूप से दान करने वालों पर केंद्रित है। दरअसल, चैरिटीज ऐड फ़ाउंडेशन की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार महामारी के दौरान भारत में व्यक्तिगत स्तर पर दान करने वाले लोगों की संख्या में औसतन 43 फ़ीसद की वृद्धि आई है। इससे भारत की समाजसेवी संस्थाओं को खुदरा फंडरेजिंग (रिटेल फंडरेजिंग) या क्राउडफ़ंडिंग के नाम से जाने जानी वाली फ़ंडिंग के इस्तेमाल का अवसर मिला है।
खुदरा फंडरेजिंग क्या है और समाजसेवी संस्थाओं के लिए यह क्यों महत्वपूर्ण है?
आसान शब्दों में कहें तो, खुदरा फंडरेजिंग लोगों की एक बड़ी संख्या से, व्यक्तिगत रूप से छोटी धनराशि जुटाने की प्रक्रिया है। यदि हम इस शब्दजाल से निकल कर देखें तो पाएंगे कि पैसे इकट्ठा करने का यह तरीका दशकों से दुर्गा पूजा या गणपति जैसे समारोहों के लिए चंदा जुटाने से बहुत अलग नहीं है। सफल क्राउडफंडिंग का एक उदाहरण स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी है जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं। स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी का स्तंभ 1,60,000 से अधिक लोगों द्वारा दी गई छोटी धनराशि से तैयार हुआ है। किसी एक उद्देश्य (जैसे कि कोई त्यौहार) या किसी खास संपत्ति (जैसे स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी का स्तंभ) के लिए धन इकट्ठा करने का यह तरीका खुदरा फंडरेजिंग को सबसे अच्छी तरह से दिखाता है।
कभी-कभार की जाने वाली क्राउडफंडिंग से अलग, रिटेल फंडरेजिंग का मतलब नियमित अंतराल पर अमूमन मासिक या वार्षिक रूप से धन जुटाना भी हो सकता है। उदाहरण के लिए, नेटफ्लिक्स सब्सक्राइबर जब तक चाहें तब तक हर महीने एक निश्चित राशि का भुगतान करते हैं।
धन जुटाने का यह तरीका समाजसेवी संस्थाओं को कई तरह से फायदा पहुंचा सकता है। किसी ख़ास उद्देश्य के लिए सैकड़ों या हजारों लोगों द्वारा दिए जाने वाले दान से संगठन के काम को वैधता और विश्वसनीयता मिलती है। चूंकि लोग संगठन की साख देखकर निवेश करते हैं इसलिए रिटेल फंडरेज़िंग किसी संगठन की छवि और दानदाता के बीच के भरोसे को भी दिखाता है। खुदरा फंडरेज़िंग से जुटाई गई धनराशि किसी एक खास प्रोजेक्ट से नहीं जुड़ी होती है। इसलिए यह संगठनों को नई तरह के काम करने, नए प्रयोग करने और ज्यादा जोखिम भरे प्रोजेक्ट शुरू करने में भी मददगार हो सकती है। सबसे जरूरी बात है कि खुदरा फंडरेज़िंग ऐसे सहयोगियों का समुदाय बनाने में मदद कर सकती है जो किसी खास उद्देश्य के लिए एक साथ आ रहे हों। सोशल सेक्टर में हम जो भी काम करते हैं, उनमें से ज्यादातर बदलाव और ताकत के स्थानांतरण या वितरण के आसपास होता है। इसलिए जब किसी संगठन के पास सहयोग करने वालों का एक बड़ा आधार होता हो तो यह न केवल उस समुदाय को प्रभावित करता है जिनके साथ काम कर रहा होता है। बल्कि, इसका सहयोग करने वाले लोगों को भी उत्साहित या आकर्षित करता है।
इसके बावजूद, कई समाजसेवी संस्थाएं खुदरा फंडरेजिंग को अपनाने से हिचकती हैं क्योंकि अनुदान हासिल करने जैसे परंपरागत तरीक़ों की तुलना में इसके किफ़ायती होने की बात तुरंत पता नहीं चलती है। एक संगठन सैकड़ों प्रस्ताव तैयार करने के बाद भी अपनी आर्थिक ज़रूरतें पूरा कर पाने में अक्षम हो सकता है, भले ही इसके एकाध प्रस्ताव, अनुदान में भी बदल चुके हों। इसकी तुलना में, व्यक्तिगत रूप से लोगों से संपर्क करने और उनसे फंड की मांग करने का काम अधिक समय और प्रयास लगाने वाला हो सकता है – और अक्सर होता भी है। इसके अलावा, एचएनआई एवं सीएसआर फ़ंडिंग आमतौर पर सालाना चक्र के मुताबिक व्यवस्थित होते हैं इसलिए संगठन लंबे समय तक चलने वाली योजनाओं पर सोच-विचार करने के आदी नहीं होते हैं। किसी अनुदान के लिए प्रक्रिया को पूरी करने का समय लगभग न के बराबर होता है जबकि नियमित अंतराल पर मिलने वाली खुदरा फंडरेज़िंग के प्रभाव हासिल करने में अधिक समय लगता है। इन अंतरों के बावजूद संगठनों को इस पर विचार करना चाहिए क्योंकि इससे आय का अनुमान लगाया जा सकता है, एक बड़ा आधार होता है जिससे उनके काम की वैधता और विश्वसनीयता बढ़ती है और संगठन की दीर्घकालिक क्षमता निर्माण का अवसर भी पैदा होता है।
खुदरा फंडरेजिंग के बारे में किन्हें सोचना चाहिए?
बड़े एवं छोटे स्तर के कई संगठन अपने लाभ के लिए खुदरा फंडरेजिंग का इस्तेमाल करते हैं। विशेष रूप से, यह दृष्टिकोण ‘मूर्त’ कारणों जैसे कि पोषण, शिक्षा या स्वास्थ्य आदि के लिए अधिक कारगर होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इन उद्देश्यों से जुड़े दानदाता ये देख पाते हैं कि उनके धन का इस्तेमाल किन चीजों के लिए हो रहा है। इसके उलट, और शायद व्यावहारिक समझ के उलट खुदरा फंडरेजिंग अच्छी तरह से काम करती है जब कोई उद्देश्य दानदाता की सोच के साथ मेल खाता है।उदाहरण के लिए, स्वयंसेवकों द्वारा संचालित सबसे बड़े भारतीय संगठनों में से एक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) खुदरा फंडरेजिंग से धन जुटाता है।
अभी इस बात पर चर्चा किए जाने की जरूरत है कि अलग-अलग स्तरों पर पहुंच चुके संगठनों को कब खुदरा फंडरेजिंग को अपनाना चाहिए।
हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि व्यक्तिगत स्तर पर किया जाने वाला दान केवल बहुत बड़े संगठनों या किसी विशेष प्रकार के काम में लगे लोगों के लिए ही कारगर है। अभी इस बात पर चर्चा किए जाने की जरूरत है कि अलग-अलग स्तरों पर पहुंच चुके संगठनों को कब खुदरा फंडरेजिंग को अपनाना चाहिए। यह उन नए संगठनों के लिए एक उपयुक्त विकल्प है जो अभी शुरूआत कर रहे हैं क्योंकि उनमें जोखिम लेने और प्रयोग करने की क्षमता अधिक होती है। आमतौर पर, किसी खास उद्देश्य के लिए दान करने वाले लोग संस्थापक टीम के नेटवर्क में शामिल लोग जैसे कि उनके मित्र, परिवार और परिचित होते हैं। और, यह नेटवर्क क्राउडफंडिंग के लिए उपयुक्त होने के साथ-साथ, उद्देश्य के मुताबिक समुदाय बनाने के लिए भी सही लोग होते हैं। पहली बार फंडरेजर के तौर पर काम करते हुए मैंने यही नज़रिया अपनाया था। मेरा लक्ष्य हर महीने दस नए लोगों को जोड़ना था। इस आंकड़े को सौ तक ले जाने में मुझे क़रीब छह महीने का समय लगा। इस समय तक मेरे पास 100 ऐसे लोग थे जो या तो मुझे 1,000 रुपए महीना या साल के 12 लाख रुपए दे रहे थे जो उस समय मेरी लागत से अधिक था।
किसी संगठन को खुदरा फंडरेजिंग के बारे में तब भी सोचना चाहिए जब वह अन्य संस्थागत स्रोतों से फंड हासिल करने में माहिर हो चुका हो। इस चरण पर संगठन, संस्थागत दाताओं को तकनीक और मानव पूंजी की लागत समेत खुदरा फंडरेजिंग वाले संस्थानों को धन देने के लिए राज़ी कर सकते हैं। और अंत में, 20-25 साल से काम कर रहे उन्नत संगठन पहले से ही सहयोग करने वालों का आधार होने के चलते बड़े पैमाने पर खुदरा फंडरेजिंग अपनाने के लिए तैयार होते हैं।
इस बात से कोई फर्क़ नहीं पड़ता है कि शुरुआत के लिए वे कौन सा समय चुनते हैं। मुख्य बात जो गैर-लाभकारी संस्थाओं को याद रखनी चाहिए वह यह है: खुदरा फंडरेजिंग का संबंध एक समुदाय निर्माण से है न कि केवल धन जुटाने के बारे में। यह समर्थकों के उस समूह से संबंधित है जो संगठन के एचएनआई, संस्थागत दानदाताओं और सीएसआर फ़ंडरों के एक छोटे समूह के उभरने की संभावनाओं से जुड़ा है।
कैसे शुरू करें, और अगर आप पूरी तरह से शामिल नहीं होना चाहते हैं तो क्या करें
कुछ व्यावहारिक कदम ऐसे हैं जिन्हें खुदरा फंडरेजिंग का फ़ैसला लेने वाले संगठनों को उठाना चाहिए।
1. एक आंतरिक समुदाय बनाएं
संगठनों के लिए पहला—और शायद सबसे कठिन—कदम एक आंतरिक समुदाय का निर्माण करना है। अक्सर, खुदरा फंडरेजिंग एक संस्थापक की जिम्मेदारी बन जाती है क्योंकि आम तौर पर संस्थागत फंडरेजिंग उनका ही काम होता है। लेकिन जब खुदरा फंडरेजिंग की बात आती है तो एक व्यक्ति पर पूरे संगठन का भार डालने से असफलता की संभावना बढ़ जाती है। इसकी बजाय, संस्थापकों को पहले पूरी टीम को साथ लाने की जरूरत होती है – इसका मतलब है कि टीम के सदस्यों को ये समझाया जाए कि स्थिरता के लिए खुदरा फंडरेजिंग क्यों जरूरी है। साथ ही, उन्हें व्यापक आधार होने के महत्व को समझाते हुए संगठन के लक्ष्य से इसके संबंध के बारे में भी बताया जाना चाहिए। यदि टीम इसको लेकर आश्वस्त नहीं है या स्वयं को उस मुद्दे से जुड़ा महसूस नहीं कर रही है तो उसे दूसरों को इसके लिए तैयार करने में कठिनाई होगी। इसके साथ-साथ, संगठन के बाहर भी ऐसे लोगों को खोजने की जरूरत होती है जो आपके उद्देश्य में विश्वास करते हैं और जो सार्वजनिक रूप से इसके समर्थक या शुभचिंतक के रूप में काम करेंगे।
2. एक केंद्रीय डेटाबेस बनाएं
अगला बड़ा कदम संगठन के सभी संपर्कों को एक केंद्रीय डेटाबेस में फीड करना है। यह एक समुदाय के निर्माण का प्रारंभिक बिंदु है। ये संपर्क अन्य स्रोतों के अलावा टीम के सदस्यों की फोनबुक, सोशल मीडिया संपर्क और ईमेल संपर्क के माध्यम से आ सकते हैं। इस डेटाबेस को बढ़ाते रहने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि हर नए सम्पर्क को तुरंत इसमें जोड़ दिया जाए। यह डेटाबेस ग्राहक संबंध प्रबंधन (सीआरएम) टूल से भी जुड़ा होना चाहिए। सीआरएम उपकरण महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे दाता व्यवहार को ट्रैक करने और विश्लेषणात्मक डेटा उत्पन्न करने का एक बेहतरीन तरीका हैं जैसे कि फंडरेजिंग वाले ई-मेल कौन प्राप्त कर रहा है, ई-मेल कौन खोल रहा है, और कब वे इसे छोड़ रहे हैं। इस सब के लिए न्यूनतम वित्तीय निवेश की आवश्यकता होती है, लेकिन फंडरेजिंग की रणनीति बनाते समय इससे बहुत फायदा होता है।
3. एक संचार रणनीति बनाएं
संचार रणनीति तैयार करना एक अन्य कदम है जो प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण है। इसका संबंध मुख्यरूप से दानदाताओं से संपर्क की शैली तय करने से होता है – क्या न्यूजलेटर मज़ेदार और सूचनात्मक या लोगों को आकर्षित करने वाली कहानियों से भरे होने चाहिए? इस तक पहुंचने का एक अच्छा तरीका एक ऐसे टोन का उपयोग करना है जो सबसे प्रामाणिक तरीके से संगठन के ब्रांड का प्रतिनिधित्व करता है। रणनीति के हिस्से के रूप में, संचार की आवृत्ति को परिभाषित करना भी महत्वपूर्ण है। लगातार बने रहना और नियमित रूप से संपर्क में रहना डोनर एंगेजमेंट में मदद करता है। इसका मतलब यह है कि जब फंडरेजिंग की कोई अपील की जाती है तो दानदाता अपने आपको उद्देश्य से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं और उन्हें हैरानी नहीं होती है।
वार्षिक क्राउडफंडिंग अभियान करना या छोटे ऑनबोर्डिंग लक्ष्य निर्धारित करना खुदरा फंडरेजिंग के हल्के–फुल्के तरीके हैं।
इसके साथ यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि एक सक्रिय ऑनलाइन उपस्थिति और पेमेंट गेटवे के साथ अपडेट वेबसाइट जहां पर लोगों के लिए दान देना आसान हो, भी मददगार होती है। खुदरा फंडरेजिंग में समय और प्रयास बहुत अधिक लगता है इसलिए इसके लिए समर्पित एक व्यक्ति को रखा जाना बहुत जरूरी है, बेहतर होगा यह बाहर की बजाय कोई भीतर का व्यक्ति हो।
यदि कोई संगठन उस चरण में है जहां उसके लिए खुदरा फंडरेजिंग में समय, पैसा और अन्य स्त्रोत का निवेश व्यावहारिक नहीं है तो इस स्थिति में ऐसे कई हल्के-फ़ुल्के तरीक़े हैं जिनका इस्तेमाल वे कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, एक महीने में 10 नए दाताओं को ऑनबोर्ड करने का एक छोटा लक्ष्य निर्धारित करना या एक वर्ष में एक क्राउडफंडिंग अभियान आयोजित करना। यहां एकमात्र चेतावनी यह है कि इस तरह के अभियान को हर साल चलाना महत्वपूर्ण है – यदि यह एक बार होने वाला आयोजन है, तो दानदाताओं के एक स्थिर समुदाय को बनाए रखना कठिन होगा।
खुदरा फंडरेजिंग की संभावित चुनौतियां और नुकसान
अपने कई सालों के अनुभव में मैंने देखा है कि रिटेल फंडरेजिंग को लेकर समाजसेवी संगठन क्या ग़लतियां करते हैं।
1. खुदरा फंडरेजिंग से जुटाए धन का उपयोग कार्यक्रमों के संचालन के लिए न करें
मैं सावधान करना चाहूंगा कि संगठनों को अपने कार्यक्रमों को चलाने के लिए खुदरा फंडरेजिंग से जुटाए गए धन का उपयोग नहीं करना चाहिए। कार्यक्रम चलाने के लिए सीएसआर या एचएनआई से धन प्राप्त करना आसान है और इसलिए रिटेल फंड का उपयोग संगठन निर्माण, प्रतिभाओं को मौक़ा देने, या उन अन्य गतिविधियों के लिए बेहतर तरीके से किया जा सकता है, जिनके लिए धन जुटाना मुश्किल होता है।
2. संचार को ईमानदार और सुसंगत रखें
कई संगठन ठीक तरह से अपने समर्थकों के सम्पर्क में नहीं रह पाते हैं। अनियमित संवाद फ़ायदे से अधिक नुकसान करवा सकता है और दानदाताओं से केवल राशि की मांग करने के लिए संपर्क करने से उनका भरोसा हासिल करना मुश्किल हो जाता है। संगठनात्मक प्रतिष्ठा को जस का तस बनाए रखने के लिए जरूरी है कि फंडरेजिंग अभियान केवल वही वादे करें जो निभाए जा सकते हों – चाहे वह उपहार हो, कर छूट हो, या किसी प्रकार की स्वीकृति हो।
3. अपने लक्ष्य के लिए उपयुक्त अभियान
जब संचार की बात आती है, तो ऐसी भाषा का उपयोग करने से बचें जो अकादमिक हो, बहुत तकनीकी हो, या शब्दजाल से भरी हो जिसे एक आम व्यक्ति समझ न सके। यह भी याद रखना महत्वपूर्ण है कि लोग आमतौर पर किसी खास उद्देश्य या विचारधारा में अपने विश्वास के चलते सहयोग देते हैं न कि संगठन के कारण। इसलिए संगठनों को अपनी कहानी इस तरह से कहने की जरूरत होती है कि जिससे लोगों का भरोसा जम सके। समाजसेवी संस्था की बजाय दान देने वाले व्यक्ति को अपनी कहानी का नायक बनाएं।
4. लचीले बनें और चीजों में जल्दबाजी न करें
और अंत में, एक ही बार में खुदरा फंडरेजिंग में बहुत अधिक निवेश न करें। खुदरा फंडरेजिंग एक ऐसी चीज़ है जिसे नियमित रूप से और लगातार वृद्धि लाकर किया जाना चाहिए। इसमें सीखने एवं असफल होने की प्रक्रिया शामिल होती है। चूंकि समाजसेवी संस्थाओं के लिए विदेशी फ़ंडिंग हासिल करना कठिन होता जा रहा है, इसलिए जरूरी है कि वे फंडरेजिंग की अन्य परंपरागत रणनीतियों के साथ खुदरा फंडरेजिंग के बारे में सोचें। यह न केवल किसी उद्देश्य को वैधता प्रदान करता है और समुदाय बनाने में मददगार होता है बल्कि लंबे समय तक संगठन को जोखिमों से भी बचाता है।
यह लेख एक इंस्टाग्राम लाइव पर आधारित है जिसे ऋषभ ललानी ने आईडीआर के साथ किया था।
इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें।
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