मेरा नाम पप्पू कंवर है और मैं बाड़मेर, राजस्थान में रहती हूं। मैं एक समाजसेवी और कार्यकर्ता हूं। बाड़मेर, सामाजिक रूप से पिछड़ा हुआ एक क्षेत्र है। यहां जातिवाद और महिलाओं के खिलाफ हिंसा व्यापक रूप से फैले हैं जो हमारे काम को खासतौर पर कठिन बनाते हैं। बीते कई सालों से, मैं महिलाओं और विकलांग लोगों के अधिकारों के लिए काम कर रही हूं और चुनौतियों के बावजूद कुछ बदलाव लाने की कोशिश कर रही हूं।
मैंने ‘आस्था महिला संगठन’ नाम का एक महिला समूह बनाया है जिसमें 250 से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हुई हैं। हमने संगठन के तहत कई महिला समूह बनाए हैं। ये मिलकर उन आर्थिक और सामाजिक समस्याओं को बढ़ने से पहले ही हल करने की कोशिश करते हैं जिनका सामना महिलाओं के परिवार कर रहे होते हैं। साथ ही, महिलाएं अब स्थानीय समस्याओं को सुलझाने और तनाव को कम करने में अहम भूमिका निभाती हैं। उदाहरण के लिए, हाल ही में एक घटना में, एक नशे में धुत आदमी अपनी पत्नी और मां को नुकसान पहुंचाने वाला था। हमने तुरंत पुलिस को बुलाया जिन्होंने समय पर आकर हस्तक्षेप किया। हालांकि हम ज़्यादातर समस्याओं का समाधान खुद कर लेते हैं, लेकिन गंभीर परिस्थितियों में पुलिस का सहयोग बेहद जरूरी होता है। यह संगठन ग्रामीण बाड़मेर और इसके आसपास के क्षेत्रों में सक्रिय है।
साल 2003 से, मैं जिला दिव्यांग अधिकार मंच से भी जुड़ी हुई हूं। इस मंच ने विकलांग समुदाय को जिला और राज्य स्तर पर अपनी आवाज उठाने में मदद की है। यह संगठन विकलांग लोगों को बस-रेलवे पास जैसे जरूरी दस्तावेज दिलाने, और उपकरण व अन्य सेवाएं प्रदान करने में सहायता करता है। मैं स्वयं भी शारीरिक रूप से विकलांग हूं, और यह मेरे द्वारा विकलांगों के अधिकारों के लिए की जाने वाली हिमायत का आधार है।
सुबह 6:00 बजे: जब मैं जागती हूं, तो सबसे पहले भगवान से एक अच्छे दिन की प्रार्थना करती हूं। अगर मैंने पिछली रात अपने दिन का शेड्यूल नहीं बनाया होता है तो मैं उसे सुबह बनाती हूं। तैयार होने और अपने घरेलू काम निपटाने के बाद, मैं आमतौर पर बाड़मेर के आसपास के क्षेत्रीय स्थलों पर जाती हूं। वहां, मैं उन लोगों से मिलती हूं जो सरकारी योजनाओं का लाभ पाने में देरी का सामना कर रहे हैं, घरेलू हिंसा झेल रहे हैं, या विधवा महिलाएं हैं जिनको समाज ने अलग-थलग कर दिया है – इन समस्याओं की सूची अंतहीन है।
मैं 2002 से बाड़मेर में विकलांग समुदाय के साथ काम कर रही हूं—उन्हें संगठित कर रही हूं, उनकी समस्याओं को लेकर जागरूकता बढ़ा रही हूं, और उन्हें पेंशन, विकलांगता प्रमाण पत्र और अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने में मदद कर रही हूं। शुरुआत में लोग साथ आने से हिचकिचाते थे क्योंकि उन्हें समाज के तानों और आलोचनाओं का डर था। कई बार गैर-विकलांग लोग हमें घूरते थे और भद्दी टिप्पणियां करते थे। लेकिन जैसे-जैसे हमने मिलना और अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाना शुरू किया, वैसे-वैसे हमने समाज की परवाह करना कम कर दिया। अब हम खुलकर एक-दूसरे से मिलते हैं, अपनी समस्याएं साझा करते हैं और बिना किसी डर के एक-दूसरे का सहयोग करते हैं, चाहे लोग कुछ भी कहें।
यह एक लंबा और दिलचस्प सफर रहा है। साल 1997 में, मेरी एक सर्जरी हुई थी ताकि मैं चल सकूं। सर्जरी के बाद मुझे पूरी तरह से चलना सीखने में एक साल लग गया। यह बहुत मुश्किल था। लेकिन मेरी मां हमेशा कहतीं, “तुम कर सकोगी, हार मत मानो! लोग जो चाहे कहें, हम तुम्हारी ताकत हैं।” उनकी बातें मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा देती रही हैं और मुझे यह एहसास दिलाया कि जैसे मुझे कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, वैसे ही दूसरों को भी संघर्षों का सामना करना पड़ता है, और हमें आगे बढ़ते रहना चाहिए, चाहे लोग कुछ भी कहें।
इन सालों में, हमने एक मजबूत नेटवर्क तैयार किया है और अब सरकार के अधिकारी और पुलिस भी हमारे साथ काम करते हैं।
जब मैंने चलना सीख लिया तो 2003 में मैंने एक एसटीडी बूथ पर काम करना शुरू किया। शुरुआत में, मुझे परिवार के बाहर किसी से भी सामान्य बातचीत करने का तरीका नहीं पता था। लेकिन समय के साथ, मैंने काम करते हुए सुनकर और बात करके यह सीख लिया। धीरे-धीरे लोग अपनी समस्याएं मेरे साथ साझा करने लगे जिससे मुझे एहसास हुआ कि मैं समाज में किसी न किसी तरीके से योगदान कर सकती हूं। मैंने सोचा “भले ही मैं ज्यादा न कर सकूं, लेकिन मैं कम से कम बुनियादी साक्षरता सिखा सकती हूं।” पढ़ाई इतनी महत्वपूर्ण है – यह लोगों को दुनिया को समझने में मदद करती है।
मैंने समुदाय की महिलाओं से पूछा कि क्या वे पढ़ना-लिखना सीखना चाहेंगी और उन्होंने इसके लिए उत्साह दिखाया। कई महिलाएं पढ़ाई करना चाहती थीं लेकिन कई कारणों से उन्हें इजाजत नहीं थी। इसलिए, मैंने 2005 में एक साक्षरता कार्यक्रम शुरू किया जिसमें मैं एक बार में 10–15 महिलाओं को लिखना-पढ़ना सिखाती थी। सिर्फ 15 दिनों में, मैं उन्हें बुनियादी ज्ञान दे पाई। समय के साथ, मैंने करीब 100 महिलाओं को पढ़ना सिखाया। इस सफलता ने मुझे महिलाओं की आय और कमाई की क्षमता को सुधारने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित किया। मैंने उन्हें सिलाई सिखाने का काम शुरू किया और मुफ्त में प्रशिक्षण दिया। मैंने चार बैचों की महिलाओं को प्रशिक्षित किया और अगर उन्हें रात के किसी भी वक्त मदद की जरूरत होती तो मैं उनके लिए वहां रहने की कोशिश करती और उनकी जरूरतों को प्राथमिकता देती। आज, इनमें से कई महिलाएं छोटे सिलाई केंद्र खोल चुकी हैं या दुकानों पर काम करती हैं और अपनी आजीविका कमा रही हैं। यह मुझे बहुत खुशी देती है।
दोपहर 1:00 बजे: मैं आमतौर पर, दोपहर एक बजे के आसपास खाना खाने के लिए रूकती हूं। मेरा काम हर दिन मेरे शेड्यूल के अनुसार बदलता रहता है, लंच के बाद मैं अक्सर दोपहर का बाकी समय क्षेत्र में बिताती हूं – महिला समूहों से मिलती हूं या अधिकारों से संबंधित मुद्दों पर काम करती हूं।
इस क्षेत्र में हमें जो समस्याएं झेलनी पड़ती हैं, वे कई रूपों में होती हैं। उदाहरण के लिए, कुछ साल पहले, मुझे अपने मोहल्ले की सड़क की खराब हालत के कारण समस्याओं का सामना करना पड़ा था। मेरी ट्रायसाइकल इस सड़क पर ठीक से नहीं चल पा रही थी। हर दिन काम के बाद मुझे अपनी मां को फोन करके मदद लेनी पड़ती थी ताकि वह मुझे सड़क पार करने में मदद करें। मेरी मां और एक या दो अन्य महिलाएं मुझे घर तक छोड़ने आती थीं। इस क्षेत्र में हर विकलांग व्यक्ति को इस समस्या का सामना करना पड़ता था लेकिन कोई भी इस बारे में आवाज उठाने से डरता था। एक दिन, हम आठ लोग एकजुट हुए और हमारे वार्ड सदस्य के पास गए। हमारी सामूहिक आवाज के कारण, 10-15 दिनों के भीतर सड़क को फिर से बना दिया गया।
मेरे काम का सबसे कठिन हिस्सा विकलांग लोगों की मदद करना है क्योंकि उनमें से कई पूरी तरह से अपने परिवारों पर निर्भर होते हैं।
इन सालों में, हमने एक मजबूत नेटवर्क तैयार किया है। अब सरकार के अधिकारी और पुलिस भी हमारे साथ काम करते हैं। शुरुआत में, हमें समस्याओं का समाधान करने का तरीका नहीं पता था लेकिन अब हमने एक सिस्टम विकसित कर लिया है। जब भी कोई नई सरकारी योजना आती है तो हम तुरंत उसकी जानकारी अपने व्हाट्सएप समूहों में साझा करते हैं।
हमारे लिए एक बात बिल्कुल स्पष्ट है कि हम सभी समुदायों के साथ काम करते हैं, जाति या वर्ग के आधार पर भेदभाव किए बिना। हमारी एक मुख्य प्राथमिकता अपने आसपास की असहिष्णुता को कम करना है क्योंकि कोई भी आर्थिक या आजीविका से जुड़ी समस्या तब तक हल नहीं हो सकती जब तक लोग सामाजिक बदलाव के लिए एकजुट नहीं होते हैं। हमारे साथ काम करने वाली कई महिलाएं इसे समझती हैं और जातिवादी प्रथाओं से बाहर निकलने की कोशिश कर रही हैं। उदाहरण के लिए, अब महिला समूह एक साथ खाना खाती हैं जो पहले बाड़मेर में जातिवाद के कारण कल्पना से परे था। मैंने यह बदलाव खुद देखा है।
शाम 4:00 बजे: जब दिन ख़त्म होने लगता है तो मैं आमतौर पर कार्यालय जाती हूं। कुछ काम करती हूं, जो भी बिल चुकाने होते हैं, उन्हें प्रोसेस करती हूं, और विभिन्न विषयों पर प्रशिक्षण देने या लेने के लिए जाती हूं।
जब मैं कोरो इंडिया में एक फेलो थी तो मैंने कई प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लिया जिसमें वी द पीपल अभियान के जरिए संविधानिक मूल्यों और अधिकारों पर भी प्रशिक्षण था। इन कार्यक्रमों ने मुझे महिलाओं और विकलांग लोगों के अधिकारों और योजनाओं के लिए संघर्ष करने की समझ दी। डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन के डिजिटल सार्थक कार्यक्रम ने मुझे डिजिटल तकनीक का सही उपयोग करना सिखाया। मैंने कंप्यूटर और स्मार्टफोन का उपयोग करना शुरू किया, जैसे बिजली के बिलों का भुगतान करना और सरकारी लाभ के लिए फॉर्म भरना, और धीरे-धीरे मैंने समुदाय की कई महिलाओं को इन डिजिटल कौशल में प्रशिक्षित किया। अब, इस क्षेत्र की कई महिलाएं फोन का इस्तेमाल कर सकती हैं, और कुछ महिलाएं सोशल मीडिया जैसे व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम और यूट्यूब का इस्तेमाल करके अपने छोटे व्यवसायों को बढ़ावा देती हैं। बहुत सी महिलाएं वीडियो देखकर नए कौशल, जैसे खाना पकाना, सीख रही हैं।
हालांकि यह बेहद जरूरी है, लेकिन मेरे काम का सबसे कठिन हिस्सा विकलांग लोगों की मदद करना है क्योंकि उनमें से कई पूरी तरह से अपने परिवारों पर निर्भर होते हैं। इस वजह यह भी है कि उन्हें वैकल्पिक तरीकों के बारे में मालूम नहीं होता है। फोरम के एक सदस्य को खुद से चलने में असमर्थता है और उसे लगातार देखभाल की जरूरत है। हम उसे एक पुनर्वास केंद्र ले गए जहां उसने कंप्यूटर कौशल आसानी से सीखे क्योंकि वह बहुत तेज था। अब, वह इन कौशलों का उपयोग करके आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो रहा है। यह अनुभव हमें उम्मीद देता है कि सही समर्थन और अवसरों के साथ और अधिक जिंदगियां बदली जा सकती हैं।
शाम 7:00 बजे: मैं आमतौर पर सात बजे घर पहुंचती हूं लेकिन कभी-कभी मैं काफी देर से पहुंचती हूं। हर रात, मैं अपने दिन के काम की समीक्षा करती हूं। मैं यह सोचती हूं कि क्या अच्छा हुआ और क्या नहीं, और अपने विचारों को डायरी में लिखती हूं। इससे मुझे अपनी प्रगति का आकलन करने में मदद मिलती है और अगले दिन की योजना बनाने में सहूलियत होती है। मेरे लिए यह महत्वपूर्ण है कि मैं अपने लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करूं और जो काम पूरा करने हैं, उन पर विचार करूं। फुर्सत के समय में, मुझे भजन सुनना पसंद है।
मेरे काम के शुरुआती दिनों में, मुझे बहुत सारे संदेह का सामना करना पड़ा था खासकर क्योंकि मैं एक महिला हूं और शारीरिक बाधा से जूझ रही हूं। लोग अक्सर कहते थे, “वह क्या कर सकती है? वह तो विकलांग है।” अफसोस की बात है कि यह एक वास्तविकता है जिसका सामना हम में से कई लोग रोज करते हैं। लेकिन मैंने उन टिप्पणियों को नजरअंदाज कर आगे बढ़ने का निर्णय लिया। मेरी मां ने एक बार मुझे याद दिलाया था कि सभी उंगलियां एक जैसी नहीं होतीं-हर कोई अलग होता है और उसकी अपनी यात्रा होती है। मेरे सामर्थ्य में विश्वास ने मुझे मेरे काम में कठिनाइयों का सामना करने की ताकत दी।
जैसा कि आईडीआर को बताया गया।
इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ें।
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