मेरा नाम संतोष चारण है और मैं पिछले 14 सालों से आशा सहयोगिनी के रूप में काम कर रही हूं। मैं राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में आने वाली कपासन नगरपालिका में अपने पति और दो बेटों के साथ रहती हूं। मैंने 2004 से हापाखेड़ी गांव में जमीन पर काम करना शुरू किया। पहले मैं आंगनवाड़ी सहयोगिनी थी और फिर 2008 में आशा सहयोगिनी बन गई। आशा सहयोगिनी के रूप में, मैं गर्भवती महिलाओं को सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं और नीतियों से जोड़ने में मदद करती हूं और पूरी गर्भावस्था के दौरान उनकी सहायता करती हूं। इसके अलावा, मैं गांव में शिशुओं और बच्चों के लिए टीकाकरण अभियान भी चलाती हूं। मैं नियमित रूप से स्वास्थ्य सर्वेक्षण भी करती हूं ताकि समुदाय की स्वास्थ्य से जुड़ी जरूरतों को बेहतर ढंग से समझा जा सके और उनका समाधान किया जा सके।
सुबह 4 बजे: हर रोज मैं घर में सबसे पहले उठती हूं, पूजा करती हूं और मंदिर जाती हूं। कुछ साल पहले, मैं अपने ससुराल हापाखेड़ी से दो किलोमीटर दूर स्थित कपासन में बस गई। हापाखेड़ी में मैं ससुराल वालों के साथ रहती थी, वहां मुझे हर दिन सुबह 4 बजे उठकर गायों को चारा डालने, बाड़ा साफ करने और उपले बनाने जैसे काम करने होते थे। यह सब मैंने 1998 में शादी के बाद सीखा था। अब कपासन में मुझे गायों की देखभाल नहीं करनी होती, फिर भी मैं सुबह 4 बजे उठती हूं। जब मैंने पहली बार आंगनवाड़ी में काम करना शुरू किया तो मेरे ससुराल वाले चिंतित थे कि मैं घर के कामों पर ध्यान नहीं दे पाऊंगी। इसके चलते घर में अक्सर बहसें होती थीं। उन्हें चिंता थी कि अगर मैं घर से बाहर काम करने लगूंगी तो गायों की देखभाल और घर के बाकी काम कौन करेगा। उनकी असहमति के बावजूद मैंने 2004 में हापाखेड़ी के आंगनवाड़ी केंद्र पर काम करना शुरू कर दिया।
उस समय, मैं अपने बेटों को हर सुबह आंगनवाड़ी केंद्र छोड़ने जाया करती थी। मेरी एक दोस्त के ससुर उस केंद्र में काम करते थे और हम अक्सर बातचीत किया करते थे। उनसे मैंने आंगनवाड़ी प्रणाली के बारे में बहुत सीखा और कभी-कभी उनके कामों में मदद भी कर देती थी। एक दिन उन्होंने ही मुझे सहायक पद के लिए आवेदन करने का सुझाव दिया। मेरे पति मेरे इस फैसले से सहमत थे लेकिन ससुराल वालों ने मुझसे बात करना बंद कर दिया। वे चिंतित थे कि अब उनके घर की महिला गांव में जाकर अजनबियों से बात करेगी। इन कारणों ने मुझे, मेरे पति और दोनों बच्चों सहित कपासन शिफ्ट होने पर मजबूर कर दिया।
मैं काम करने के लिए दृढ़ थी क्योंकि मैं अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में भेजना चाहती थी। आंगनवाड़ी में खाना बनाने के लिए मुझे 500 रुपये मिलते थे और आंगनवाड़ी सहायक के काम के लिए मुझे और 500 रुपये मिलते थे। इन 1000 रुपयों से सबसे पहले मैंने अपने एक बच्चे का दाखिला प्राइवेट स्कूल में करवाया लेकिन दूसरे को मैं वहां नहीं भेज पाई। मैंने हेडमास्टर से विनती की और उन्होंने इस शर्त पर मेरे दूसरे बेटे को मुफ्त में पढ़ने की अनुमति दी कि मैं पांच और छात्रों का दाखिला करवाउंगी। मैंने गांव के लोगों को समझाया और आठ बच्चों का दाखिला करवाने में सफल रही। आज मेरे दोनों बेटे कॉलेज तक की पढ़ाई कर चुके हैं।
जब तक मैं मंदिर से घर वापस आती हूं, मेरे पति जाग चुके होते हैं और मैं उनके लिए नाश्ता बनाती हूं। इसके बाद मैं हापाखेड़ी जाने के लिए बस स्टॉप की ओर निकल जाती हूं और अपना दिन शुरू करती हूं।
सुबह 7 बजे: बस मुझे हापाखेड़ी से थोड़ी दूरी पर छोड़ती है। गांव तक जाने के लिए कभी मैं रिक्शा लेती हूं, कभी पैदल भी चली जाती हूं। इन पैदल यात्राओं के दौरान मुझे अक्सर आस-पास के गांवों की महिलाएं, खेतों की ओर जाती हुई मिल जाती हैं। हम अपनी ज़िंदगी के बारे में बातें करते हैं। मैं अक्सर उनसे उनकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के बारे में पूछती हूं और उन्हें नोट करती हूं।
इन दिनों मैं लोगों के आयुष्मान कार्ड बनवाने में उनकी मदद कर रही हूं ताकि उन्हें सरकार की मुफ्त स्वास्थ्य सेवाओं का फायदा मिल सके।
मैं गर्भवती महिलाओं को प्रसव के लिए स्वास्थ्य केंद्र तक ले जाती हूं। राजस्थान के सरकारी केंद्रों में प्रसव पूरी तरह से मुफ्त होता है। कुछ साल पहले, हमारे इलाके में एक डॉक्टर जो हर प्रसव के लिए 500 रुपए की रिश्वत मांगता था। आशा कार्यकर्ताओं ने अनिच्छा से उसे पैसे देना स्वीकार भी कर लिया था क्योंकि हम प्रसव में कोई जटिलता नहीं चाहते थे। वह डॉक्टर जननी सुरक्षा योजना के तहत मिलने वाले 1400 रुपयों की स्वीकृति भी करता था। कई बार तो पैसे न देने पर वह इस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर देता था। यह स्थिति काफी समय तक चली।
मेरे अलावा अन्य आशा कार्यकर्ताओं ने भी स्वास्थ्य क्षेत्र में भ्रष्टाचार से जुड़े अपने अनुभव साझा किए। इस मामले पर जांच शुरू की गई।
एक बार, मैं एक आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की महिला को अस्पताल लेकर आई, वह परिवार डॉक्टर को 500 रुपये देने में सक्षम नहीं था और केवल 300 रुपये ही दे सकता था। जब मैंने डॉक्टर के निजी कमरे में 300 रुपये दिए तो उन्होंने 500 रुपये से कम स्वीकार करने से मना कर दिया। मैं परिवार के पास वापस गई और उनसे 200 रुपये और लाने को कहा। महिला के पति ने कहा कि उसे पैसे जुटाने के लिए घर जाकर कुछ अनाज बेचना पड़ेगा। यह सुनकर मैंने फिर से डॉक्टर से 300 रुपये लेने की विनती की। यह सुनकर डॉक्टर ने गुस्से में मेरा कॉलर पकड़ लिया और मुझे धक्का दे दिया। इससे मैं भी बहुत गुस्से में आ गई, मैंने डॉक्टर की शर्ट पकड़ी और उसे कमरे से बाहर खींच लिया। फिर मैंने नवाचार, जो कपासन में स्थित एक गैर-सरकारी संगठन है और जिससे मैं 2008 से जुड़ी हुई हूं, को फोन किया। जल्द ही, उपखंड मजिस्ट्रेट सहित वहां काफी लोग इकट्ठा हो गए। यह घटना जयपुर तक पहुंच गई और सरकार ने इसकी जांच शुरू की। मुझे जयपुर बुलाया गया और विधानसभा के सामने अपनी बात रखने का मौका मिला। मैंने इससे पहले ऐसा कुछ कभी नहीं देखा था, हर स्क्रीन पर मैं खुद को देख रही थी। मेरे अलावा अन्य आशा कार्यकर्ताओं ने भी स्वास्थ्य क्षेत्र में भ्रष्टाचार से जुड़े अपने अनुभव साझा किए। इस मामले पर जांच शुरू की गई। वह डॉक्टर तो अब सेवानिवृत्त है लेकिन उसकी पेंशन रोक दी गई है।
12 बजे दोपहर: गांव में काम खत्म करने के बाद, मैं कुछ समय कागजी काम करने में बिताती हूं। जैसे-जैसे राजस्थान में आयुष्मान कार्ड का वितरण बढ़ रहा है, आशा कार्यकर्ताओं के लिए कागजी काम भी काफी बढ़ गया है। हर परिवार के सदस्यों के लिए आवश्यक दस्तावेजों को इकट्ठा करना और उन्हें अपलोड करना लंबी और थकाऊ प्रक्रिया है। हमें इसमें बहुत सावधानी बरतनी पड़ती है क्योंकि कोई भी गलती या देरी, लोगों को मुफ्त स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित कर सकती है। मेरे बड़े बेटे ने मुझे फॉर्म भरने में मदद की है क्योंकि पोर्टल अंग्रेज़ी में है और मैं अंग्रेज़ी नहीं पढ़ पाती।
2 बजे दोपहर: सुबह का फील्डवर्क खत्म करने के बाद, मैं दोपहर के भोजन के लिए घर लौटती हूं। ज्यादातर मैं एक घंटे के भीतर ही वापस चली जाती हूं ताकि कुछ और काम निपटा सकूं या किसी आपात स्थिति में मदद कर सकूं। आज मुझे हाप्पागिडी वापस जाना होगा ताकि बाकी आयुष्मान कार्ड के फॉर्म फाइल कर सकूं। मुझे उम्मीद है कि मैं रात 10 बजे के आसपास तक घर लौटूंगी। भले ही हमारे आधिकारिक काम के घंटे सुबह 8 बजे से 11 बजे तक हैं, ज्यादातर आशा सहयोगिनियां पूरे दिन काम करती हैं। कई बार हमें रात में भी कॉल आता है ताकि किसी गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाया जा सके।
हम प्रदर्शन के लिए जयपुर गए थे, जहां प्रशासन ने सूचित किया कि वे अगले बजट में हमारा वेतन बढ़ा देंगे। हालांकि, उन्होंने सिर्फ 200 रुपये ही बढ़ाए।
साल 2008 में आशा सहयोगिनी के रूप में काम शुरू करने से पहले, मैं चार साल तक आंगनवाड़ी केंद्र में काम कर चुकी थी। फील्डवर्करों की काम करने की स्थितियों पर मैंने अक्सर चिंताएं जताई है। 2009 में मुझे आशा सहयोगिनी संघ का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। संघ साल में दो बैठकें आयोजित करता है, जहां हम अपने सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करते हैं। ये मुद्दे अक्सर भुगतान में देरी से संबंधित होते हैं। कुछ समय पहले हमने वेतन बढ़ाने के लिए प्रदर्शन किया था। उस समय, हम हर महीने 1600 रुपये कमाते थे जिसमें स्वास्थ्य सेवाओं से लोगों को जोड़ने के लिए मिलने वाले बोनस शामिल नहीं थे। हम प्रदर्शन के लिए जयपुर गए थे, जहां प्रशासन ने सूचित किया कि वे अगले बजट में हमारा वेतन बढ़ा देंगे। हालांकि, उन्होंने सिर्फ 200 रुपये ही बढ़ाए।
प्रदर्शनों को और प्रभावी ढंग से संगठित करने के लिए, हमारा एक ऑनलाइन ग्रुप चैट है जिसमें कपासन, रश्मी आदि ब्लॉक की ग्राम पंचायतों से आशा सहयोगिनियां जुड़ी हुई हैं। किसी भी बैठक, शिकायत या प्रदर्शन के बारे में अपडेट इस समूह में पोस्ट किए जाते हैं, और पंचायत स्तर पर चयनित आशा सहयोगिनियां फिर गांव में अन्य सभी को सूचित करती हैं।
वर्तमान में, संघ एक और भुगतान से संबंधित समस्या को हल करने की कोशिश कर रहा है। चूंकि हमारा अधिकांश काम, जैसे कि आयुष्मान कार्ड के लिए फॉर्म जमा करना, ऑनलाइन होता है, हमें अपने मोबाइल फोन को रिचार्ज करने के लिए 600 रुपये के भत्ते का अधिकार है। लेकिन मार्च से हमें यह नहीं मिल पाया है।
यह पहली बार नहीं है जब मैंने गलत के खिलाफ विरोध किया है। मेरे पति पहले शराबी थे, लेकिन छह साल पहले उन्होंने शराब पीना छोड़ दिया। शराब पीने के बाद वो अक्सर मुझे मारते थे। एक बार, उन्होंने कुछ दिनों तक शराब के अलावा कुछ भी नहीं खाया या पिया और बहुत हिंसक हो गए। तब मैंने तय किया कि मुझे इसका समाधान निकालना होगा। मुझे पता चला कि कुछ दिनों में एक सरकारी अधिकारी गांव का दौरा करने वाली हैं, और मैंने सोचा कि यह अपनी आवाज उठाने का अच्छा मौका होगा। मैंने गांव में उन सभी महिलाओं से बात की जो इसी तरह की परेशानियों का सामना कर रही थीं। हम सबने एक बैठक की और एक याचिका पर हस्ताक्षर करके समस्या को अधिकारी के सामने लाने का फैसला किया।
मेरी सुरक्षा को लेकर मेरा परिवार चिंतित था क्योंकि मैं एक आशा सहयोगिनी थी और आपात स्थितियों से निपटने के लिए रात में अक्सर गांव में निकलना पड़ता था।
जब अधिकारी आई, तो मैंने शिकायत बताने के लिए अपनी बारी का इंतजार किया, वहां भीड़ में कई लोग अपनी शिकायतें बताने के लिए उत्सुक थे। जब रात के 10 बज गए और वह जाने ही वाली थीं, तब मैंने माइक छीनने का फैसला किया। जब मैंने अपनी और गांव की अन्य महिलाओं की पीड़ा को सुनाना शुरू किया, तो मेरी आंखों में आंसू आ गए, मेरे साथ आई अन्य महिलाएं भी रोने लगीं। अधिकारी ने तत्काल कार्रवाई करने का निर्णय लिया। जब उन्हें पता चला कि गांव में शराब की दुकानें कानूनी समय से ज्यादा देर तक खुली रहती हैं, तो उन्होंने उनका लाइसेंस जब्त करने का फैसला किया। गांव की सभी शराब की दुकानें जल्द ही बंद हो गई। इसके बाद मेरे पति शराब नहीं खरीद पाए, लेकिन इससे मेरे लिए एक और चुनौती खड़ी हो गई। गांव के पुरुष, जो अक्सर शराब पीते थे, मुझसे नाराज हो गए।
मेरी सुरक्षा को लेकर मेरा परिवार चिंतित था क्योंकि मैं एक आशा सहयोगिनी थी और आपात स्थितियों से निपटने के लिए रात में अक्सर गांव में निकलना पड़ता था। उन लोगों में से एक, जिसकी शराब की दुकान थी, मेरे घर आया और मुझसे कहा कि मैं एक कीड़ा हूं जिसे नाली में होना चाहिए। इस पर मैंने जवाब दिया, “जब कीड़ा लकड़ी में लग जाता है तो वह लकड़ी पूरी तरह खराब हो जाती है।” उन्हें अब तक अपना शराब का लाइसेंस वापस नहीं मिला और मैंने अपना काम वैसे ही जारी रखा है।
रात 10 बजे: आज भी मैं रात 10 बजे के आस-पास घर पहुंची। थकी होने के बावजूद, मुझे अपने पूरे परिवार के लिए खाना बनाना पड़ता है, जो मेरे लौटने का इंतजार कर रहा होता है। सभी के लिए खाना बनाने में मुझे आधा-पौना घंटा लगता है, उसके बाद मैं सोने चली जाती हूं। जब मैं घर पर होती हूं तब भी मेरा फोन साइलेंट नहीं रहता, ताकि किसी डिलीवरी या आपातकालीन कॉल को मिस न करूं। खाली समय में मुझे भजन सुनना, नाचना और गाना पसंद है।
कुछ साल पहले, नवाचार द्वारा आयोजित एक बैठक में बताया गया था कि उत्पीड़ित लोगों की भी जिम्मेदारी होती है कि वे अपने उत्पीड़न को दूर करने के लिए कदम उठाएं। यह तब की बात है जब मेरे पति शराब पीते थे और मैं अपने ससुराल में रहती थी। ऐसी ही एक अन्य बैठक में मुझे यह भी बताया गया कि महिलाओं को भी पुरुषों की तरह काम करने का अधिकार है। इन दोनों बातों ने मुझ पर गहरा असर डाला और मैंने अपने जीवन को बदलने और अपने आस-पास के लोगों की भी मदद करने का निश्चय किया। 14 साल बाद, मैं बहुत बेहतर कर रही हूं और मेरा परिवार खुश है। कभी-कभी गांव के लोग मेरे बारे में बुरा बोलते हैं, लेकिन मुझे अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि मुझे ‘मैं’ बनने में बहुत समय लगा और मुझे गर्व है कि मैं कौन हूं। मैं एक दिन सरपंच बनना चाहती हूं और गांव और गांव की महिलाओं की और भी बेहतर तरीके से मदद करना चाहती हूं।
जैसा कि आईडीआर को बताया गया।
इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें।
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