स्पीति ज़िले के परंपरागत लकड़ी शिल्पकार से जानिए कि कैसे बदलती खेती, बढ़ते पर्यटन और शहरीकरण ने इलाके में सामुदायिक जीवन और परंपरागत वास्तुकला को बदल दिया है।
पीएमजेडीवाय जैसी योजनाओं का लाभ उठाने के बावजूद निम्न आयवर्ग वाले घरों की महिलाएं बचत के लिए बैंकों के इस्तेमाल से क्यों झिझकती हैं और उनके नज़रिए को कैसे बदला जा सकता है?
गुजरात की महिला पत्रकार यूट्यूब रिपोर्टिंग का इस्तेमाल, अनुसूचित जनजाति समुदायों को जागरुक करने और उनसे जुड़ी खबरें दुनिया तक पहुंचाने के लिए कर रही हैं।
चार जनजातियों के रसोइये अपने व्यंजनों के साथ अपनी खाद्य संस्कृति पर आए खतरों पर चर्चा कर रहे हैं क्योंकि जंगलों के खत्म होने के साथ उनके समुदाय आजीविका के लिए संघर्ष करते हुए शहरों का रुख करने लगे हैं।
भारत में थैरेपिस्ट अक्सर मानसिक स्वास्थ्य में मदद चाहने वालों को अपने सामाजिक तबके से अलग मानते हैं। एक अध्ययन बताता है कि क्यों यह नजरिया कारगर नहीं है और इसे सही करने के लिए क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं।
एक हालिया अध्ययन के अनुसार, भारत में मुसलमान महिलाओं को हिंदू महिलाओं की तुलना में प्रवेश-स्तर की नौकरियां मिलने की संभावना लगभग आधी होती है। ऐसे में एक समावेशी प्रक्रिया तय करने के लिए संगठनों को क्या करना चाहिए?
एक समावेशी नेतृत्वकर्ता ‘हम लोग बनाम वे लोग’ के कथन को केंद्र में रखकर काम नहीं करता है। उन्हें कार्यस्थल में अपने और उन लोगों के बीच मौजूद समानताओं पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए जिनसे उनका संवाद स्थापित होता है।