बत्तख दो, अंडे लो

Location Iconसिवसागर जिला, असम

मार्च 2021 की एक सुबह जब ज़्यादातर भारत कोविड-19-अनिवार्य लॉकडाउन के तहत बंद था, तब असम के सिवसागर जिले के एक गाँव में 31 वर्षीय प्रतिमा* को एक रात अंडे खाने का मन हुआ। लेकिन दिक्कत यह थी कि उसके पास घर में नकद पैसे नहीं थे। गाँव का एटीएम मशीन शायद ही कभी काम करता था और निकटतम बैंक कुछेक गाँव की दूरी पर था। लेकिन प्रतिमा के घर पर बत्तख थे। उस इलाके के अन्य परिवारों की तरह ही उसका परिवार भी बत्तख किसान है।

इस समस्या को सुलझाने के लिए वह स्थानीय समुदाय के एक सदस्य के पास गई। उसने चीजों की अदला-बदली के लिए दृष्टि नाम के एक स्वयंसेवी संस्था के बनाए गए आवेदन फॉर्म पर खुद को एक बत्तख विक्रेता के रूप में पंजीकृत करवा लिया।

प्रतिमा ने जिस महिला समुदाय सदस्य से संपर्क किया था उसे आवेदन पत्र को भरने का प्रशिक्षण दृष्टि से मिला था। उसने प्रतिमा की मदद दूसरे गाँव के एक ऐसे निवासी से जुड़ने में की जिसने अपना पंजीकरण मुर्गे के अंडे के विक्रेता के रूप में कराया था। कुछ ही घंटों में प्रतिमा एक दर्जन अंडे के बदले अपने बत्तख को बेच सकती थी।

कोविड-19 की शुरुआत और आमदनी में तेजी से आ रही गिरावट के साथ चीजों की अदला-बदली वाली व्यवस्था देश के कई नकदी-गरीब क्षेत्रों  में फिर से प्रचलन में आ गया है। हालांकि यह नकद का विकल्प नहीं है लेकिन चीजों की अदला-बदली वाली व्यवस्था समुदायों को संभले रहने में मददगार साबित हो रही है। यह व्यवस्था विशेष रूप से उस वक़्त फायदेमंद साबित हुई जब किसान और कारीगर पैसे या बाज़ार तक पहुँच के बिना अपने उत्पादों के साथ घरों में फंसे हुए थे।

असम में चीजों की अदला-बदली की यह व्यवस्था कोई नई बात नहीं है। राज्य के दूर-दराज इलाकों में लोग सदियों से चीजों की अदला-बदली कर रहे हैं। दरअसल, चीजों की अदला-बदली वाली व्यवस्था वाला मेला जोनबील मेला 15वीं शताब्दी से राज्य में होने वाला एक वार्षिक आयोजन रहा है। हालांकि डिजिटल प्रणाली की शुरुआत ने इस प्रथा को विस्तार दिया है। खास कर औरतों को इससे बहुत अधिक फायदा हुआ है। क्योंकि इसने चीजों को बेचने के लिए बाज़ार तक जाने की उनकी जरूरत को ख़त्म कर दिया है और अब उन्हें नकद रखने की भी जरूरत नहीं पड़ती है।

वे चीजों की अदला-बदली की अवधारणा को लेकर नई सोच भी विकसित कर रहे हैं। जैसे कि, जब रेखा* को अपनी बेटी के लिए फ्रॉक चाहिए थी तब उसने एप्लीकेशन के माध्यम से विनिमय के लिए टेडी बीयर बुना था। जमीला* कई महीनों से अपने बाल कटवाने के बाद उन्हें संभाल कर रख रही है। उसकी योजना इनके बदले एक पुराना इस्तेमाल किया गया फोन लेने की है।

*गोपनीयता बनाए रखने के लिए नाम बदल दिया गया है।

देबोजीत आईडीआर में संपादकीय सहयोगी हैं। स्मरिणीता आईडीआर की सह-संस्थापक और सीईओ हैं। इस कहानी को दृष्टि से बातचीत के आधार पर लिखा गया है।

लोचदार आजीविका निर्माण पर सबक और दृष्टि को उजागर करने वाली 14-भाग वाली शृंखला में यह चौथा लेख है। लाईवलीहूड्स फॉर ऑल, आईकेईए फ़ाउंडेशन के साथ साझेदारी में दक्षिण एशिया में अशोक के लिए रणनीतिक केंद्र बिन्दु वाले क्षेत्रों में से एक है। 

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