हम तमिलनाडु के तिरुवल्लूर जिले में एन्नोर क्रीक (कोरोमंडल तट और बंगाल की खाड़ी के बीच का बैकवॉटर) के पास स्थित सेपक्कम गांव में रहते हैं। हमारा गांव पूर्वी चेन्नई थर्मल पावर स्टेशन की ओर से बनाए गए ऐश पॉन्ड (राख इकट्टा करने के लिए बनाए विशाल गड्ढे) के किनारे बसा हुआ है। मैं और मेरी पत्नी गांव में एक चाय की दुकान चलाते हैं। पहले किसानी करते थे तथा अपने खेतों में धान, मूंग और मूंगफली की खेती करते थे। लेकिन 30 साल पहले जब इस इलाके में पावर प्लांट बना, तो हमसे हमारी ज़मीन छिन ली गई। इसकी वजह से हमने ने केवल अपनी पारंपरिक आजीविका खो दी बल्कि तब से लेकर हमें कई सारी मुश्किलों का भी सामना करना पड़ा है। यहां तक कि अब हम साफ पानी की कमी की समस्या का भी सामना कर रहे हैं।
राख के तालाब ने हमारे इलाके के स्थानीय भूजल को प्रदूषित और खारा बना दिया है, जिस वजह से अब बोरवेल का पानी न तो हम नहाने के लिए और न ही पीने के लिए इस्तेमाल कर पा रहे हैं। इस पानी से नहाने के बाद हमें ताजगी नहीं मिलती। यही नहीं, इस पानी में पकाया गया चावल दो घंटे में ही खराब हो जाता है और करी का स्वाद भी बुरा हो जाता है। गर्मियों में तो पानी और भी खटास वाला हो जाता है। हम बहुत पहले से भूजल का इस्तेमाल करना बंद कर चुके हैं।
ऐश पॉन्ड बारिश के पानी के प्राकृतिक बहाव को भी रोकता है जिससे मानसून के दौरान हमारे घरों में अक्सर बाढ़ आ जाती है और पानी कमर तक बढ़ जाता है।
पहले, जब हम खेती करते थे, तब 4-5 फीट गहरा गड्ढा खोदकर स्वच्छ पानी निकाल लेते थे। लेकिन जब से राख का यह तालाब खोदा गया है, तब से हमें पानी के अन्य स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है। कुछ समय तक हमें नगरपालिका से अच्छा पानी मिलता था लेकिन अब वह भी नहीं मिलता। अब जो पानी पाइपलाइन से आता है, वह नेडावॉयल कस्बे से आता है जो 10-12 किमी दूर है, और उसकी भी गुणवत्ता खराब होती है।
हमारे गांव में एक समुदाय रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) पानी का संयंत्र है, जिसे एलएंडटी ने अपने सीएसआर प्रोजेक्ट के तहत लगाया है। अब हम वहीं से पानी खरीदते हैं। लेकिन, यहां हम पांच रुपये में 20 लीटर का एक कैन भर पाते हैं। एक परिवार को रोजाना 5-6 कैन पानी खरीदना पड़ता है। इसका मतलब यह है कि हमें हर दिन पानी पर ही 100-120 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। यह हमें बहुत महंगा पड़ जाता है। दुकान पर ज्यादा ग्राहक न आने की वजह से मैं हर रोज चाय बेचकर केवल 150-200 रुपये ही कमा पाता हूं। इसलिए, हम इस पानी का उपयोग सिर्फ खाना बनाने और पीने के लिए ही करते हैं। बाकी जरूरतों जैसे नहाने वगैरह के लिए हम इस पानी में नगरपालिका से आने पाइपलाइन सप्लाई वाला पानी मिला लेते हैं। इससे समस्या पूरी तरह से हल नहीं होती लेकिन थोड़ी राहत तो मिल जाती है।
अगर आरओ सिस्टम खराब हो जाए तो बहुत मुश्किल होती है। बड़ी मरम्मत, जैसे मोटर की खराबी वगैरह में बहुत खर्च आता है। इसके लिए हमें कट्टुपल्ली पंचायत मुखिया पर निर्भर रहना पड़ता है। कई बार जब हम मीडिया से अपनी समस्याओं के बारे में बात करते हैं तो मुखिया हमसे नाराज हो जाते हैं और उनसे आसानी से पैसे नहीं मिलते। जब तक संयंत्र ठीक नहीं होता, तब तक हम में से कुछ लोगों को 3-4 किलोमीटर दूर रेडडी पालायम गांव से जाकर पानी लाना पड़ता है। यहां सार्वजनिक परिवहन का कोई माध्यम नहीं है इसलिए हम या तो रिश्तेदारों के वाहनों पर निर्भर रहते हैं या पास से गुजरने वाले यात्रियों से लिफ्ट लेकर जाते हैं। सेपक्कम इस इलाके के आखिरी छोर पर है जहां तक बसें आती-जाती ही नहीं हैं।
ऐसी समस्याओं ने लोगों को गांव छोड़ने पर मजबूर कर दिया है। पहले यहां लगभग 170 घर हुआ करते थे, लेकिन अब केवल 60-70 परिवार ही रह गए हैं।
रवि और शांति चेन्नई के पास स्थित सेपक्कम गांव के निवासी हैं जहां वे मिलकर चाय की दुकान चलाते हैं।
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