सफ़ाई कर्मचारियों के बिना दिल्ली दिल्ली नहीं रह सकेगी

Location Iconउत्तर पश्चिम दिल्ली जिला, दिल्ली

मैं दिल्ली के उत्तर-पश्चिम जिले की भलस्वा लैंडफ़िल में पिछले बारह सालों से सफाई कर्मचारी के तौर पर काम करती हूं। शादी से पहले और लैंडफिल के पास रहने से पहले, मैं कूड़ा इकट्ठा करने और उसे स्क्रैप मार्केट में बेचने के लिए जहांगीरपुरी से यहां आया करती थी।

पहले हमारी आय बेहतर होती थी। हम ई-कचरे को छांटने और बेचने से 500-600 रुपये तक कमा लेते थे; अब हम 200-250 रुपये ही कमाते हैं। इस कमाई में हम अपने बच्चों को शिक्षा कैसे दें सकेंगे, सिलेंडर और बिजली का बिल कैसे भरेंगे, कपड़े कैसे खरीदेंगे, और कैसे अच्छा जीवन जिएंगे?

पहले हमारे पास सूखा और गीला, दोनों तरह का कूड़ा एक साथ आता था जिनकी हम छंटाई करते थे। लेकिन अब सूखे और गीले कचरे को हम तक आने से पहले ही अलग कर दिया जाता है, और कीमती स्क्रैप जैसे कि ई-कचरे और इसके धातु भागों को हमारे क्षेत्र में प्रवेश करने से पहले ही कचरा ट्रकों द्वारा ले जाया जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि नगर पालिकाओं का उन प्राइवेट कंपनियों के साथ समझौता होता है जिनके पास ये ट्रक होते हैं। अब इन कंपनियों का कचरे पर एकाधिकार हो गया है।

अनौपचारिक कचरा श्रमिक होने के कारण हमे पक्की सैलरी नहीं मिलती है। हम रोज़ जो कचरा इकट्ठा करते है और बेचते है, उसी से अपनी आजीविका चलाते है। हमने दिल्ली नगर पालिका से भी हमें काम पर रखने के लिए कहा है, लेकिन इसकी बजाय सरकार भलस्वा डंपिंग ग्राउंड को बंद करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है।

हम कचरे को अलग करके, प्रदूषण कम कर रहे हैं और अपनी नदियों और नालों को साफ रखने में मदद कर रहे हैं। हमारे बिना, दिल्ली दिल्ली नहीं होगी।

सायरा बानो सफाई सेना की सदस्य हैं जो दिल्ली में अनौपचारिक कचरा श्रमिकों का संघ है।

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