दीपशिखा समिति, सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक समूह है जो पिछले 32 सालों से विभिन्न विषयों पर काम करता आ रहा है। पिछले 15 वर्षों से, हमारा ट्रांसजेंडर काउंसलिंग का मुख्य सेंटर दिल्ली में है। यह वर्तमान में रोहिणी इलाके के बुद्धविहार में स्थित है। यहां हम ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों के स्वास्थ्य और उनके अधिकारों को लेकर काम करते हैं। स्वास्थ्य में हम, एचआईवी जैसे गंभीर मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने का काम करते हैं जिसके लिए हम समय-समय पर अपने समुदाय की ऑनलाइन और ऑफलाइन, दोनों ही तरह की काउंसलिंग करते हैं। इसके अलावा हम दिल्ली राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी के साथ भी मिलकर जागरूकता बढ़ाने का काम करते हैं।
वैसे तो, हर इलाके में घर या ऑफिस का एक निर्धारित किराया होता है। लेकिन ट्रांसजेंडर होने की वजह से हमें हर जगह किराये के रूप में अतिरिक्त पैसा चुकाना पड़ता है। मसलन, जिस जगह का किराया अन्य लोगों के लिए 15 हजार रुपये रहता है, उसके लिए हमें 20 से 25 हजार रुपये तक देने पड़ते हैं। जब हम किराया कम करने के लिए कहते हैं तो हमें कहीं और चले जाने के लिए कह दिया जाता है। इस वजह से हम वह किराया देने के लिए भी तैयार हो जाते हैं ताकि अपना काम सुचारु रूप से चला सकें।
हमारे काम में तब बाधा आती है जब हमें इतने साल काम करने के बावजूद बार-बार अपना सेंटर एक जगह से दूसरी जगह बदलना पड़ता है जैसे कभी मंगोलपुरी, कभी सुलतानपुरी तो कभी बुद्धविहार। इसके बावजूद, ऐसा लगभग 10-12 बार हो चुका है कि मकान मालिक ने हमें अपना सेंटर खाली करने के लिए कहा हो।
हम अपने ट्रांसजेंडर समुदाय से जुड़ी समस्याओं को लेकर सेंटर में काउंसलिंग करते हैं तो इस वजह से समुदाय के लोगों का नियमित तौर पर सेंटर में आना-जाना लगा रहता है। साथ ही, हम एचआईवी एड्स जैसे संवेदनशील मुद्दे पर भी काम करते हैं। इसलिए हमारे पास कंडोम वग़ैरह की बहुत सारी पेटियां भी आती हैं जिसके बाद हम उनका वितरण करते हैं। यह सब देखकर भी कई बार आसपास के लोग हमें उस जगह से निकालने के लिए हमारे ऊपर वेश्यावृत्ति करने जैसे इल्जाम भी लगाते हैं। यही नहीं, जब हमारे सेंटर में ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग नियमित आते हैं तो भी लोगों को इससे समस्या हो जाती है कि इतने ट्रांसजेंडर क्यों आ रहे हैं। इन्हीं सब चीजों को बहाना बनाकर लोग मकान मालिक पर हमें निकालने के लिए दबाव बनाते हैं।
कई बार तो सेंटर के आसपास में रहने वाले लड़के, हमारे समुदाय के लोगों के साथ अपमानजनक व्यवहार तक करते हैं और उन्हें गलत नामों से पुकारते हैं। ये सब गतिविधियां ज्यादा बढ़ने से हमारे समुदाय के लोग भी उनका विरोध करते हैं और इन सबकी वजह से लड़कों के अभिभावक उलटा हमें दोष देते हैं। आख़िर में हमें ही जगह खाली करने के लिए कह दिया जाता है। वर्तमान में जहां हमारा सेंटर है, उसके लिए भी बड़ी मुश्किल से हमें वह जगह किराये पर मिली है।
इतना ही नहीं, जब हमें खुद को रहने के लिए कमरा लेना होता है तो उसमें भी हमें बहुत समस्या आती है। जिस कमरे का किराया पांच हजार रुपये होता है, उसे हमारे लिए बढ़ाकर आठ हजार से दस हजार तक कर दिया जाता है। हमारे समुदाय के सभी लोगों के लिए अधिक किराया देना संभव नहीं होता है। इन्हीं कई वजहों से परेशान होकर हमारे ट्रांसजेंडर समुदाय के कुछ युवा गलत गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं।
अभी भी लोगों के मन में हमारे प्रति ऐसी धारणाएं हैं कि अगर ट्रांसजेंडर हैं तो ये लोग या तो भीख मांगेंगे या फिर सेक्स वर्क करेंगे। अब हमें बाहर जाकर लोगों से एचआईवी जैसे गंभीर मुद्दों पर खुलकर बात करने से डर लगता है कि कहीं हमें इस सेंटर से भी बाहर न कर दिया जाए। लोगों को लगता है कि ये ट्रांसजेंडर हैं तो कुछ गलत ही करेंगे और इसका प्रभाव उनके परिवार पर भी पड़ेगा। हालांकि, हम आसपास के लोगों के साथ अच्छा रिश्ता बनाने के लिये उनके साथ बात करके उन्हें समझाने की कोशिश करते हैं कि हम भी आपके समाज का हिस्सा हैं। लेकिन अब हमें भी कई बार लगता है कि जिन्होंने हमें जन्म दिया है, जब वे ही हमें स्वीकार नहीं कर पाते तो बाकी समुदाय का भरोसा जीतना अभी भी हमारे लिए लंबी लड़ाई है।
कमल शर्मा और मयूरी, दीपशिखा समिति के साथ पिछले कई वर्षों से जुड़े हैं।
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