कई सालों तक मल्कानगिरी की आदिवासी बस्तियां लगभग खाली थीं। ओडिशा के इस दक्षिणी जिले के गांवों के युवा पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश के शहरों में बेहतर अवसरों की तलाश में जाते रहे हैं। लेकिन 2020 में कोविड-19 महामारी के साथ ही सब कुछ बदल गया। दरअसल नौकरियां दुर्लभ हो गईं और लोगों को अपने गांव वापस लौटना पड़ा। इसी बीच चमत्कारिक रूप से मत्स्यपालन से जुड़े कामों ने युवा आदिवासियों को घर पर लाभ कमाने वाली आजीविका खोजने में मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एक तटीय राज्य होने के नाते, मछली ऐतिहासिक रूप से ओडिशा में लोगों के जीवन और आजीविका का अभिन्न अंग रही है। हालांकि मल्कानगिरी जमीन से घिरा हुआ है और समुद्र से दूर है। यहां कई नदियां और तालाब हैं जिनमें अंतर्देशीय मछली पालन की अपार संभावनाएं हैं। लेकिन इसमें एक समस्या है।
राज्य मत्स्य विभाग के एक कनिष्ठ मत्स्य तकनीकी सहायक कैलाश चंद्र पात्रा कहते हैं, “छोटे पैमाने के किसान महंगा चारा खरीदने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं।” यह बदले में कम उपज देता है। इस चुनौती से निपटने के लिए मत्स्य विभाग ने मछली चारा उत्पादन कार्यक्रम शुरू किया है।
चित्रकोंडा प्रखंड के सिंधीगुगा गांव के समानंद कुआसी इस कार्यक्रम में शामिल होने वालों में से एक थे। उनका कहना था कि “इसने मुझे आशा दी। मुझे मछली चारा उत्पादन इकाई स्थापित करने के लिए 1,38,300 रुपये मिले।” वह और उनकी पत्नी साईबाती अब मछली के चारे का उत्पादन कर रहे हैं और इसे उचित मूल्य पर किसानों को बेच रहे हैं। 2021 में इकाई की स्थापना के बाद से दंपति ने 30 क्विंटल से अधिक चारा उत्पादन किया है।
इससे पहले आंध्र प्रदेश में एक प्रवासी श्रमिक के रूप में, समानंद अपनी मामूली कमाई से कुछ भी बचाने में असमर्थ थे और अक्सर “उनके घरेलू खर्च भी पूरे नहीं पड़ते थे।” पिछले छः महीने से समानंद और उसकी पत्नी ने मछली बेचकर लगभग 50,000 रुपए से अधिक की धनराशि कमाई है। वह कहते हैं कि “मुझे अब दोबारा आंध्र जाने की ज़रूरत नहीं है।”
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अभिजीत मोहंती भुवनेश्वर स्थित पत्रकार हैं। यह एक लेख का संपादित अंश है जो मूल रूप से विलेज स्क्वायर पर प्रकाशित हुआ था।
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