रोजगार की उम्मीद भर लाने वाली फैक्ट्री जल संकट की आफत जरूर ले आई है

Location Iconसीकर जिला, राजस्थान
पुराना कुआं_जल संकट
सीमेंट फैक्ट्री का पानी खींचने का सिस्टम इतना ताकतवर है कि आस-पास का सारा जलस्तर नीचे चला गया है। | चित्र साभार: रामचन्द्र स्वामी

हमारा इलाका राजस्थान के झुंझनू और सीकर जिले का सीमाई इलाका है। झुंझनू जिले की नवलगढ़ तहसील में गोठड़ा गांव पड़ता है जहां करीब दो साल पहले एक विशाल सीमेंट फैक्ट्री स्थापित की गई। सीकर जिले में पड़ने वाला मेरा गांव धर्मशाला बेरी वहां लगभग सात किलोमीटर दूर है। सीमेंट फैक्ट्री लगने से लगा था कि अब हमारे इलाके का विकास होगा और युवाओं को रोजगार मिलेगा। यह कुछ हद तक हुआ भी लेकिन इस विकास के साथ एक गंभीर समस्या ने भी जन्म लिया है – जल संकट। फैक्ट्री के आसपास 15 किलोमीटर के दायरे में स्थित गांवों के कुएं सूख गए हैं। मेरे गांव के अलावा खिरोड़, बसावा, झाझड़, बेरी जैसे कई गांव इस संकट का सामना कर रहे हैं। ऐसे में किसान और स्थानीय निवासी अपनी खेती और पीने के पानी को लेकर चिंतित हैं।

हमारे इलाके में चना, सरसों, गेहूं, बाजरा यानी हर तरह की उपज होती थी। हम रबी और खरीफ दोनों तरह की उपज ले पाते थे। लेकिन अब महज दो साल में यह दिखाई देने लगा है कि हमारी उपज कम होती जा रही है। फैक्ट्री में सीमेंट बनाने के लिए जो प्रक्रिया होती है, उसके लिए ज़मीन में बहुत गहरी खुदाई की जाती है। यह खुदाई हमारे भूमिगत जल भंडार को प्रभावित कर रही है। हमारे बुजुर्ग बताते हैं कि पहले 50-100 फीट पर पानी मिल जाता था, लेकिन अब 400 फीट पर भी नहीं मिल रहा है। सीमेंट फैक्ट्री का पानी खींचने वाला सिस्टम इतना ताकतवर है कि आस-पास का सारा जलस्तर नीचे चला गया है। अब जो पानी बचा भी है, वह फ्लोराइड से दूषित है। और, यह सब बहुत तेजी से हुआ है।

एक बेरोजगार युवा होने के चलते मैं खुद को इस मुद्दे से जोड़कर देख सकता हूं। पहले हमारे इलाके में ज़्यादातर लोग खेती पर ही निर्भर थे। ऐसे में फैक्ट्री लगने से नौकरी के अवसर दिखे थे लेकिन वहां पर भी ज़्यादातर काम मशीनों और कुशल श्रमिकों के लिए है। स्थानीय युवाओं के पास इन कुशलताओं की कमी है जिससे हमें सिर्फ साधारण नौकरियां ही मिल सकती हैं। वहीं, स्थानीय लोगों के लिए अब खेती में अलग तरह की परेशानियों का सामना कर रहे हैं क्योंकि पानी की कमी से खेतों में उनकी फसलें सूख रही हैं।

सीमेंट फैक्ट्री से रोजगार की उम्मीदें तो हैं लेकिन क्या यह उन खेतों की कीमत पर सही है जो पीढ़ियों से हमें जीवन दे रहे हैं? गांव के बुजुर्गों का कहना है कि अगर इसी तरह पानी की समस्या बढ़ती रही तो खेती तो जाएगी ही, लोगों को भी पलायन के लिए मजबूर होना पड़ेगा। इस समस्या का हल क्या है? क्या फैक्ट्री के पानी के उपयोग पर नियंत्रण नहीं होना चाहिए? क्या सरकार जल संरक्षण के लिए कोई ठोस कदम उठाएगी?

मेरे जैसे बेरोजगार युवाओं के लिए यह सोचना जरूरी हो गया है कि रोजगार पाने के साथ-साथ हमारे गांव और खेती को बचाने के लिए हम क्या कर सकते हैं।

रामचंद्र स्वामी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और अपने इलाके में युवा मंडल चलाते हैं।

अधिक जानें: बिहार के बक्सर में भू जल कैसे दूषित हो रहा है पढ़िये इस लेख में।

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