हर साल मानसून के दौरान कम से कम एक दिन ऐसा ज़रूर होता है जब ओडिशा के केंदुझर जिले के जंगलों में लोक गीत सुनाई पड़ते हैं। नज़दीक से देखने पर पता चलता है कि वहां के स्थानीय लोग गीत गाते हुए और कुछ बीज छीटते हुए जंगलों से गुजर रहे हैं।
पिछले तीन वर्षों से इस ज़िले के सभी 85 गांवों के लोग वन महोत्सव मना रहे हैं। यह महोत्सव दरअसल जंगलों से लिए गए संसाधनों को वापस जंगलों को लौटाने का एक प्रयास है। वन महोत्सव एक सामूहिक बीजारोपण और वृक्षारोपण उत्सव है। इस अभियान के तहत अति पिछड़े जनजातीय समूह के लोग जुलाई में मानसून आने के लगभग दो या तीन महीने पहले से जंगलों से बीज इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं। यह वह समय है, जब कटहल, जामुन और कुसुम जैसे स्थानिक बीज सबसे आसानी से उपलब्ध होते हैं। बीजों को एकत्रित करने के इस काम में गांवों की महिलाएं और बच्चे सक्रिय रूप से शामिल होते हैं। वे सिर्फ़ बीज ही नहीं बल्कि जंगलों में वृक्षों के आसपास प्राकृतिक रूप से उपजने वाले छोटे-छोटे पौधों (लत्तरों) को भी जमा करते हैं।
बीज के एकत्रित हो जाने के बाद गांव के लोग सामूहिक रूप से इस बात का फ़ैसला करते हैं कि फिर से बीज लगाने की प्रक्रिया कहां और कब की जाएगी। चुने हुए दिन पर, वे एक साथ जंगल जाते हैं और इकट्ठा किए बीजों को बिखेरते हैं। ग्रामीणों ने यह सुनिश्चित करने के लिए पहले से नियमों का एक सेट तैयार किया है कि बीजों वाले हिस्से को चराई, जंगल की आग और पेड़ों की अवैध कटाई से बचाया जाए।
चंकि मानसून के दौरान गांव के पुरुष खेती के काम में व्यस्त रहते हैं इसलिए जंगलों में बीजारोपण की इस पहल का नेतृत्व महिलाएं ही करती हैं। पहले वे जंगल की ओर निकलती हैं और रास्ते भर बीजों को बिखेरते चलती हैं। अपना मनोबल उंचा रखने के लिए, ये औरतें पारंपरिक लोकगीत भी गाती हैं। जंगल से वापस लौटते समय भी लोकगीत गाए जाते हैं। शाम को वापस गांव लौटने पर समुदाय के लोग मिलकर सामूहिक भोज का आयोजन करते हैं।
इस प्रथा की शुरुआत ओडिशा के कोरापुट ज़िले में समरा खिल्लो नाम के एक व्यक्ति ने की थी। उन्होंने बीज इकट्ठे करके, अपने परिवार वालों की मदद से पूरे जंगल में बिखेरे थे। नतीजतन, इस इलाक़े का जंगल दो-तीन सालों की अवधि में ही पहले से बहुत अधिक सघन हो गया। इस घटना से अन्य गांवों और ज़िलों के लोगों को भी प्रेरणा मिली। साल 2022 में जिले के सभी गांवों में लोगों ने जंगल से लगभग 20 क्विंटल स्थानीय बीज इकट्ठे किए हैं। इस क्षेत्र में 20 से अधिक किस्मों के बीज लगाए गए हैं और यह उम्मीद की जा रही है कि इससे यहां रहने वाले लोगों को बहुत अधिक लाभ होगा।
कार्तिक चंद्र प्रुस्टी जंगलों पर सामूहिक भूमि अधिकारों को सुविधाजनक बनाने और ओडिशा के दूरस्थ आदिवासी क्षेत्रों में स्थानीय लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को मजबूत करने के विषय पर काम करते हैं।
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अधिक जानें: यह लेख पढ़ें और जानें कि कैसे ओडिशा में महिलाएं चक्रवातों से निपटने के लिए जंगल को फिर से उगा रही हैं।
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