आजीविका
November 9, 2022

असम की महिला किसानों की सफलता का नुस्ख़ा है मशरूम लड्डू

कामरूप महानगर जिला, असम
2 मिनट लंबा लेख

अक्तूबर 2019 में असम के सोनापुर गांव में डिमसा कॉपरेटिव सोसायटी की सचिव डैजी ठकुरिया को एक फ़ोन आया। यह फ़ोन उनके और उन महिला किसानों के लिए प्रयासों की एक श्रृंखला की शुरुआत थी जिनके साथ वह काम करती हैं। उन्हें यह फ़ोन उस समाजसेवी संस्था से आया था जिनके साथ काम करके वह मशरूम की खेती के विभिन्न तकनीकों के बारे में सीख रही थीं। इस समाजसेवी संस्था को असम राज्य आजीविका मिशन के निदेशक द्वारा दिल्ली में 2019 के सरस आजीविका मेला में असम फूड स्टॉल का प्रबंधन करने के लिए आमंत्रित किया गया था। उन्हें मेले में शामिल होने वालों के लिए मशरूम से बने स्वादिष्ट व्यंजनों की ज़रूरत थी।

मशरूम विकास फ़ाउंडेशन नाम के एक समाजसेवी संस्था की सह-संस्थापक प्रांजल बरुआ कहते हैं कि “कॉपरेटिव की महिलाओं ने हमें बताया कि उन्हें लारू और पीट्ठा (असम के लोकप्रिय व्यंजन) बनाना आता है।”

मशरूम से बनने वाले लारू और पीट्ठा के बारे में पहले किसी ने नहीं सुना था, लेकिन महिलाओं ने आगे बढ़कर नारियल और खोया के साथ उनकी कई किस्में बनाईं। उन्होंने रंग और स्वाद देने के लिए चुकंदर के रस, गाजर के रस और पालक के रस में लारू को डुबोया। डैजी ने हमें बताया कि “हम लारू और पीट्ठा बनाने से पहले मशरूम को महीन-महीन काट कर सुखा लेते हैं और फिर उन्हें पीस कर लारू और पीट्ठा तैयार करते हैं। हम लोग चिपचिपे चावल और मशरूम को मिलाकर खीर और मोमो भी बनाते हैं।”

असम के व्यंजनों के ये नए स्वरूप बहुत ही लोकप्रिय हुए और व्यापार मेले में इससे लगभग 3,54,000 रुपए की कमाई हुई। प्रांजल ने कहा कि “टाइम्स ऑफ़ इंडिया के एक रिपोर्टर ने लारुओं की तस्वीरें ली जिन्हें बाद में अख़बार के मुख्य पृष्ठ पर प्रकाशित किया गया था। उसके बाद ही जल्द ही लोगों ने स्टॉल पर आकर ‘असम के लड्डू’ की मांग शुरू कर दी और भारी मात्रा में ख़रीदने लगे।” उस साल मेले में उन लोगों ने लगभग 8,000 लारु बेचे थे।

डिमसा कॉपरेटिव सोसायटी की महिला किसान अब अपने लारुओं और पीट्ठा के साथ दिल्ली से केरल जाती हैं और यह अब लोगों के बीच बहुत ही लोकप्रिय हो गया है। समय के साथ मशरूम का इस्तेमाल अन्य चीजों के साथ पीज्जा और पापड़ आदि में भी होने लगा है। डैजी कहती हैं कि “हालांकि शुरुआत में मशरूम की खेती से होने वाली आय बहुत ज़्यादा नहीं थी लेकिन हमने इसे जारी रखा क्योंकि मेले में आने वाले लोग इसे लेकर बहुत उत्साहित थे। इसके अलावा हम मशरूम के स्वास्थ्य लाभों के बारे में भी जानते थे। अब आय बढ़ गई है और हम अन्य महिला किसानों को प्रशिक्षित करने का काम भी कर रहे हैं।”

जैसा कि आईडीआर को बताया गया है।

प्रांजल बरुआ मशरूम डेवलपमेंट फ़ाउंडेशन के सहसंस्थापक हैं; डैजी ठकुरिया डिमसा कॉपरेटिव सोसायटी की सचिव हैं।

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें

अधिक जानें: ग्रामीण ओडिशा की अनूठी पोल्ट्री शेयरिंग सिस्टम  के बारे में जानें।

अधिक करें: उनके काम के बारे में विस्तार से जानने और उनका समर्थन करने के लिए प्रांजल बरुआ से mdfassam@gmail.com पर संपर्क करें।

आगे पढ़िए
आगे देखें