स्पीति घाटी में सिंचाई, महिलाओं के जिम्मे होने के क्या मायने हैं

Location Iconलाहौल और स्पीति जिला, हिमाचल प्रदेश

हिमाचल प्रदेश की स्पीति घाटी के दायरे में आने वाले किब्बर गांव में खेती के दौरान सिंचाई का ज़िम्मा महिलाओं पर होता है।

फसलों की सिंचाई एक तय चक्र के अनुसार की जाती है। मिट्टी की जुताई के कुछ सप्ताह बाद, महिलाएं खेतों से खरपतवार चुनकर हटा देती हैं और उसमें सूखी यालो (स्थानीय जंगली घास) फैला देती हैं। ऐसा करने से मिट्टी का बहाव रुकता है और उसकी जल-धारण क्षमता बढ़ जाती है। इसके बाद युरमा आता है जो सिंचाई का पहला चक्र होता है। युरमा के पहले दिन, केवल अमचिसों (डॉक्टरों) और देवता (गांव के देवता) के खेतों की ही सिंचाई की जाती है। इस दिन गांव के प्रत्येक घर की महिलाएं सिंचाई में भाग लेती हैं।

दूसरा दिन ऐसे परिवारों के लिए रखा जाता है जिसमें पिछले साल कोई गंभीर रूप से बीमार था या किसी की मृत्यु हुई थी, या फिर उस घर में गर्भवती महिलाएं हैं जो खेतों में काम नहीं कर सकती हैं। तीसरा दिन टिपिंग लैंगज़ेट, यानी कि उन परिवारों के लिए होता है जिन्होंने जल चैनलों के रखरखाव में भाग लिया है। बाक़ी के बचे खेतों की सिंचाई तीसरे दिन के बाद की जाती है।

महिलाएं ही सिंचाई-चक्र के दूसरे और तीसरे दिन को तय करती हैं। वे ही स्पीति की एक पवित्र चोटी कनामो की पिघली हुई बर्फ से आने वाले पानी के दैनिक वितरण का भी प्रबंधन करती हैं। खुल्स का उपयोग करके पानी को खेतों तक पहुंचाया जाता है। खुल्स लंबे प्राकृतिक चैनल होते हैं जो चट्टानों से बने होते हैं और सदियों से स्पीति की घाटियों में पाये जाते हैं। शुरुआत में इसे जौ और काली मटर की सिंचाई के लिए बनाया गया था, लेकिन समय के साथ इस क्षेत्र में हरी मटर उगाने के लिए यहां की महिलाओं ने इस सिंचाई व्यवस्था में फेरबदल करके इसे बेहतर बनाया है।

प्रत्येक वर्ष, दो महिलाओं को खुल के प्रबंधक के रूप में चुना जाता है। वे खुल की प्रभारी होती हैं और यह सुनिश्चित करती हैं कि सभी खेतों को उनके हिस्से का पानी मिले और पानी वितरण से जुड़े किसी भी विवाद का समाधान किया जाए। महिलाओं पर खेतों में क्यारियां बनाने की ज़िम्मेदारी भी होती है। क्यारियां, मिट्टी के ऐसे बंधान हैं जो पानी के प्रवाह को दिशा देने में मदद करते हैं और भूमि की प्राकृतिक ढलान के आधार पर सावधानीपूर्वक बनाए जाते हैं। 

किब्बर की एक महिला किसान लोबजांग कहती हैं कि ‘यदि आप उन्हें बहुत जल्दी पानी देते हैं तो पौधे प्यासे हो जाते हैं और उन्हें अधिक पानी की ज़रूरत पड़ने लगती है। आपको उन्हें सही समय पर और सही मात्रा में पानी देने की ज़रूरत होती है।’  लोबजांग यह भी बताती हैं कि कई पीढ़ियों से इस सिंचाई व्यवस्था में बदलाव नहीं किया गया है। छोटी लड़कियों द्वारा खेत के कामों में मदद करना शुरू करते ही माताएं अपनी बेटियों को सिंचाई का ज्ञान देने लगती हैं।

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें।

रंजिनी मुरली हम्बोल्ट-यूनिवर्सिटी एट ज़ू बर्लिन में पोस्ट-डॉक्टरल वैज्ञानिक हैं। यह मूलरूप से हिमकथा पर प्रकाशित आलेख का संपादित अंश है।

अधिक जानें: राजस्थान में बोरवेल और भूजल के बारे में विस्तार से जानने के लिए इस लेख को पढ़ें। 


और देखें


दिल्ली की फेरीवालियों को समय की क़िल्लत क्यों है?
Location Icon पश्चिम दिल्ली जिला, दिल्ली

जलवायु परिवर्तन के चलते ख़त्म होती भीलों की कथा परंपरा
Location Icon नंदुरबार जिला, महाराष्ट्र

क्या अंग्रेजी भाषा ही योग्यता और अनुभवों को आंकने का पैमाना है?
Location Icon अमरावती जिला, महाराष्ट्र

राजस्थान की ग्रामीण लड़की यूट्यूब का क्या करेगी?
Location Icon अजमेर जिला, राजस्थान,जयपुर जिला, राजस्थान