बिहार में किसानों के लिए पॉपलर की खेती करना आसान क्यों नहीं है?

Location Iconबेगूसराय जिला, बिहार
ट्रैक्टर से खेती करता किसान_नकद खेती
किसान अतिरिक्त आमदनी के लिए पॉपलर खेती के साथ-साथ ईख, गेहूं, पपीता आदि की खेती भी कर सकते हैं। | चित्र साभार: राहुल सिंह

बिहार के बेगूसराय जिले में रहने वाले शैलेंद्र कुमार चौधरी हमेशा से आधुनिक पद्धतियों से खेती करना चाहते थे। साल 2014 में, वे अपने पिता के साथ हरियाणा के यमुनानगर गए जहां उन्होंने चिनार (पॉपलर) के पेड़ों के कई तरह के उपयोग देखे और उनके बारे में जाना। पॉपलर का प्रमुख इस्तेमाल प्लायवुड बनाने में किया जाता है। साथ ही, पेंसिल की लकड़ी, स्लेट का फ्रेम, बंदूक का बट और खिलौने बनाने में भी इसका उपयोग होता है। इसके अलावा, इसका जलावन भी अच्छा होता है। किसान को इस लकड़ी की कीमत पांच से सात रुपये किलो तक मिल जाती है। पेड़ लगाने के पांचवे साल में यह बेचने के लिए तैयार हो जाती है।

यह सब देखकर शैलेंद्र ने अपने गांव अहियापुर में पॉपलर की खेती करने का निर्णय लिया और 25 एकड़ जमीन में इसकी खेती शुरू की। शैलेंद्र बताते हैं कि ‘शुरुआत में हमने अपनी खेतिहर भूमि पर पॉपलर के करीब 10 हजार पेड़ लगाये। इनमें से लगभग आठ से साढ़े आठ हजार पेड़ जीवित बचे। पहली खेप के पेड़ों को मैंने वर्ष 2021 में बेचा और उसको बेचने से मुझे इतना मुनाफा हुआ कि मेरी बेटी की शादी का खर्च उसी पैसे से निकल गया।’

शैलेंद्र अपने खेत में लक्ष्मी वेराइटी के पौधे लगाते हैं जो वे इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट प्रोडक्टिविटी, (आइएफपी, रांची) से लाते हैं। अपने अनुभवों के आधार पर शैलेन्द्र बताते हैं कि पॉपलर के लिए ऐसी भूमि उपयुक्त होती है जहां पानी का जमाव नहीं होता हो। वे कहते हैं कि ‘किसान अतिरिक्त आमदनी के लिए पॉपलर खेती के साथ-साथ ईख, गेहूं, पपीता आदि की खेती भी कर सकते हैं जो मैं भी अपने खेतों में लगाता हूं।’

शैलेंद्र, पॉपलर की लक्ष्मी वैरायटी के पौधे के सर्टिफाइड ग्रोवर हैं और इसके लिए उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट प्रोडक्टिविटी, रांची से प्रमाण पत्र हासिल किया है। इसका मतलब है कि वे पॉपलर की नर्सरी तैयार कर पुनर्रोपण के लिए अन्य किसानों बेच सकते हैं और यह अनुमति उन्हें सरकार की तरफ़ से दी गई है।

अहियापुर के ही एक और सर्टिफ़ाइड ग्रोवर, किसान संजय कुमार चौधरी भी चिनार या पॉपलर की खेती करते हैं। संजय कहते हैं कि ‘सागवान-महोगनी के पौधे हम लगायेंगे तो उसकी लकड़ी का आर्थिक उपयोग हमारे बच्चे करेंगे क्योंकि उन्हें तैयार होने में लंबा वक्त लगता है। लेकिन पॉपलर का उपयोग हम खुद ही करेंगे और एक बार कर भी चुके हैं। अगर हर साल हम कुछ-कुछ पौधे लगाते रहेंगे तो साल दर साल हमारे लिए आय का जरिया खुलता जाएगा।’

बिहार सरकार पॉपलर के लिए एक अलग योजना चला रही है जिसके तहत किसानों को 10 रुपये की जमानत राशि पर इसके पौधे दिये जाते हैं। पटेढ़ी बेलसर ब्लॉक, वैशाली में पड़ने वाले पड़वारा गांव के 56 वर्षीय किसान पवन सिंह बताते हैं कि वर्तमान में सरकार द्वारा 10 रुपये मूल्य पर हमें पौधे दिये जाते हैं और फिर तीन साल बाद कुल लगाये गये पौधों में 50 प्रतिशत या उससे अधिक के जीवित रहने पर 60 रुपये बोनस और 10 रुपये लागत मूल्य सहित वापस किये जाने का प्रावधान रखा गया है। लेकिन इसमें दिक्कत यह है कि किसान को पौधों के लिए आवेदन करने से लेकर पौधे लाने तक लगभग 10 दिन का वक्त लग जाता है। इस दौरान पौधों की देखरेख अगर सही से न हो तो उनको जीवित रखना मुश्किल हो जाता है जिससे किसानों को नुकसान होता है। ऐसे में इस पूरी प्रक्रिया को तेज़ी से करने की आवश्यकता है।

कुछ किसानों से बात करते हुए पता चला कि जिन किसानों के पास दो हेक्टेयर या उससे कम ज़मीन है, उनके लिए पॉपलर की खेती करना उतना व्यवहारिक नहीं है। अब इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि बिहार में इसे बेचने के लिए कोई उचित मार्केट नहीं है और ज्यादातर बड़े किसान अपनी फसल बेचने के लिए हरियाणा के यमुनानगर जाते हैं। वे बताते हैं कि ऐसे में छोटे किसानों के लिए अपनी फसल दूसरे राज्य में ले जाकर मुनाफा कमाना एक तरह से नामुमकिन है क्योंकि माल भाड़े में ही उनका काफी सारा पैसा चला जाता है।

पॉपलर की खेती, कम समय में किसानों की आजीविका को बढ़ाने का एक अच्छा स्रोत तो है लेकिन अभी इस राह में कई चुनौतियां हैं।

राहुल सिंह एक स्वतंत्र पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं। वे पूर्वी राज्यों में चल रही गतिविधियों, खासकर पर्यावरण व ग्रामीण विषयों पर लिखते हैं।

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