वन गुज्जरों के घरों की कीमत पर चारधाम परियोजना

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वन गुज्जरों की नौकी बस्ती_वन गुज्जर बाढ़
वन विभाग वन गुज्जरों को इस इलाके का स्थायी निवासी नहीं मानता है। | चित्र साभार: निकिता नाइक

साल 2023 में, जब बारिश समय से थोड़ा पहले आ गई और सामान्य से अधिक मात्रा में पानी बरस गया तो गंगा नदी का जल स्तर एक सप्ताह के भीतर ही बढ़ गया – आमतौर पर नदी के जलस्तर को इस अनुपात में बढ़ने में लगभग एक महीने का समय लग जाता है। इतनी भारी वर्षा के कारण बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो गई। इससे उत्तराखण्ड के हरिद्वार जिले में नौकी बस्ती के नौ घर बह गए। इस इलाक़े में लगभग 100 घर हैं। हालांकि हरिद्वार में बाढ़ कोई नई घटना नहीं है लेकिन चरवाहे और अर्ध-खानाबदोश समुदायों से आने वाले वन गुज्जरों की इस बस्ती नौकी पर इससे पहले बाढ़ का इतना गंभीर असर कभी भी देखने को नहीं मिला था।

वन गुज्जर, इसका दोषी भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) द्वारा चारधाम राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना के लिए बनाई गई रिटेनिंग दीवारों को मानते हैं। इसी बस्ती में रहने वाले यकूफ बताते हैं कि ‘सौ साल से पानी नहीं आया इतना, इस साल बारिश भी बहुत हुई और रास्ता भी बन रहा है। उन्होंने बांध लगाया है, आप देखें तो बाजू से जाने वाली नदी सूखी है और सारा पानी हमारे घरों में आ गया है।’

बाढ़ की स्थिति में संभावित नुकसान का आकलन करने के लिए एनएचएआई आमतौर पर लक्षित क्षेत्र के मानचित्र को ध्यान में रखता है। इस मामले में भी, उन्होंने पानी के बहाव को दूसरी दिशा में मोड़ने के लिए भूमिगत चैनल बनाये हैं। हालांकि क्षेत्र के आधिकारिक मानचित्र में इस बस्ती का जिक्र नहीं है क्योंकि वन विभाग वन गुज्जरों को इस इलाके का स्थायी निवासी नहीं मानता है। नौकी बस्ती को आधिकारिक तौर पर वन गुज्जर समुदाय से संबंधित क्षेत्र नहीं माना गया है। हालांकि वे भूमि के इस टुकड़े पर अपने अधिकारों के लिए सक्रिय रूप से अभियान चला रहे हैं।

इस इलाके में बाढ़ की स्थिति दो दिनों तक बनी रही और तीसरे दिन जाकर उन्हें आसपास के गांवों और स्थानीय सामुदायिक संगठनों से थोड़ी बहुत मदद मिली। इसी इलाके में रहने वाले गुलाम रस्सोल कहते हैं कि ‘सब लोग अपना अपना घर बचाने में जुड़ गये। कोई मिट्टी की बोरियों का बांध लगा रहा है, कोई पानी निकाल रहा है, कुछ लोग सब होने के बाद बाहर आके नदी पल्ली (दूसरी) तरफ मोड़ने की कोशिश में जुड़ गये।’

बाढ़ के बाद, जब आपदा प्रबंधन समिति आई तो समिति के लोग, वन गुज्जरों से मिलने के बजाय आसपास के गांवों में चले गए। यहां तक कि क्षेत्र में बाढ़ राहत कोष से मिलने वाली मुआवजे की राशि इन गांव पंचायतों को दे दी गई। हालांकि इस गांव के लोगों ने भोजन और अन्य संसाधनों से वन गुज्जरों की मदद की थी लेकिन यह समुदाय अब भी सरकार की नजर में अस्तित्वहीन ही बना हुआ है।

निकिता नाइक 2022 इंडिया फेलो रही हैं और आईडीआर की #जमीनीकहानियां की कंटेंट पार्टनर भी हैं।

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