आशा सहयोगिनी की मुख्य जिम्मेदारी होती है कि वे महिलाओं को गर्भावस्था से लेकर प्रसव तक, संबंधित सरकारी नीतियों और स्वास्थ्य सेवाओं से जोड़ें। आशा सहयोगिनियों की आय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा महिलाओं और नवजात बच्चों से जुड़ा होता है। जब किसी बच्चे का जन्म सरकारी स्वास्थ्य केंद्र या निजी चिकित्सा संस्थान में दर्ज किया जाता है तो आशा सहयोगिनी को प्रोत्साहन राशि मिलती है। लेकिन राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के उदपुरा गांव में आशा सहयोगिनी इस प्रोत्साहन राशि से वंचित हो रही हैं।
असल में उदपुरा या आसपास के गांवों में आशा सहयोगिनियों के बुलाने पर सरकारी एंबुलेंस गांव से 40 किलोमीटर दूर सामुदायिक केन्द्र, विजयपुर से आती है। सड़कें खराब होने के कारण उदयपुरा तक ना तो एंबुलेंस समय पर पहुंचती है और ना ही दूसरी जरूरी स्वास्थ्य सेवाएं। इस देरी के कारण अगर प्रसव में मुश्किल आ जाए तो प्रसूताओं को और 2 घंटे का सफर तय करके जिला अस्पताल चित्तौड़गढ़ भेजा जाता है। हालांकि अब 20 किलोमीटर दूर नया सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, घटियावली बन गया है, जो न केवल सड़कों से ठीक प्रकार से जुड़ा है बल्कि इससे जिला अस्पताल चित्तौड़गढ़ भी काफी नजदीक है। परंतु हमारा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, उदपुरा आज भी सरकारी रिकार्ड के अनुसार विजयपुर से जुड़ा है, इसलिए 108 नंबर पर कॉल करने पर एम्बुलेंस वहीं से आती है।
यही वजह है कि गांव में बहुत सारे परिवार घर पर ही प्रसव करवाते हैं। नतीजतन, आशा सहयोगिनियों को जच्चा बच्चा की देखभाल के बदले मिलने वाली प्रोत्साहन राशि नहीं मिलती।
सरकार ने साल 2016 में राजश्री योजना शुरु की थी। जिसके तहत बालिका के जन्म पर माता-पिता को छ: किस्तों में कुल 50,000 रुपये दिए जाते हैं। लेकिन यह फायदा घर पर प्रसव करवाने वाले परिवारों को नहीं मिलता।
हालांकि, समय पर सरकारी एंबुलेंस ना पहुंचने की स्थिति में कुछ लोग निजी टैक्सी की व्यवस्था करते हैं जिसमें उनका बहुत पैसा खर्च होता है।
चंदा शर्मा, आंगनवाड़ी केन्द्र एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र उदपुरा में आशा सहयोगिनी के रूप में कार्यरत हैं।
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